माँ पूछती हैं कि इतना क्यों कुढ़ती हूँ स्त्री मुद्दों पर !
हाँ, मैं कुढ़ती हूँ। गलत होता देखती हूँ तो उसे अपना भाग्य मान स्वीकार नहीं करना चाहती। बहुत कुछ स्वीकार किया है स्त्री ने, अब और नहीं। गलत को गलत ही मानना होगा, चाहे गलत करने वाला स्त्री हो या पुरुष। अधिक नहीं कर सकते तो गलत को गलत तो कह ही सकते हैं हम सब। जब हम गलत को गलत कहना शुरू करेंगे तब ही शायद किसी दिन गलत होना रुक पाएगा। जानती हूँ कि मैं नारे नहीं लगाऊँगी, जुलूस नहीं निकालूँगी किन्तु अपने आस पास होते गलत पर 'ये तो होता ही है,' या 'हाँ हमारे समाज की यही रीति है' कहकर उसपर सही की मुहर तो नहीं लगाऊँगी।
भाग १
स्त्री का मूल निवास बदल गया।
बहुत वर्ष पहले पढ़ी थी यह समस्या। एक स्त्री नौकरी करती थी। उसे उसके संस्थान की तरफ से वर्ष में एक बार छुट्टियों के लिए यात्रा भत्ता मिलता था। उसके माता पिता रहते थे गोआ में और वह नौकरी करती थी उत्तर भारत में अपनी ससुराल से २० कि मी दूर। संस्थान का नियम था कि यात्रा भत्ता केवल स्थाई आवास(जहाँ के मूल निवासी हो) तक जाने के लिए दिया जाएगा। उनके अनुसार उसका घर विवाह के बाद उसका ससुराल था न कि मायका अतः केवल २० कि मी का दिया जाएगा न कि गोआ तक का।
इसे कौन न्याय कहेगा ? क्या विवाह के बाद गोआ उसका मूल निवास नहीं रहा? क्या उससे उसकी संस्कृति भी जबर्दस्ती छीन ली जाएगी ? उसके मन प्राण में बसा समुद्र, समुद्र तट व गोआ और वहाँ की भाषा व संस्कृति क्या अब उसकी नहीं रह गईं ?
मुझे भी प्रायः यह कहा जाता है कि अब तुम कुँमाऊनी नहीं हो, पति के प्रदेश व जाति की हो। यदि ऐसा होता तो क्यों कुँमाऊ शब्द सुन मेरा मन चहक उठता है? क्यों आज भी वहाँ की सुगन्ध मेरे नथुनों में भरी पड़ी है? जिस दिन मेरे अन्दर के कुँमाऊ को निकाल सको उस दिन मुझे बताना कि मैं कहाँ की हूँ।
अब तो खैर शायद यात्रा भत्ता नियम बदल गए हैं किन्तु यह नियम बनाने वाले ने क्या सोचकर बनाया होगा ? यह नियम हमारे समाज की मानसिकता दर्शाता है।
घुघूती बासूती
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aap hee nahee ham sabhee kuDhte hai.
ReplyDeletethose who are not married also face many problems like
ReplyDeleteeven neices and nephews say on face this is "nana s home " we have not come to you home
so the problem is not related to just married or unmarried
but related to woman who HAVE NO HOME
the conditioning is very deep and is carried forward from genration to genration
who made this rule sometimes i wonder
हमारे समझ में एक बात आ रही है. इस तरह की समस्याओं में मानसिकता की अहम् भूमिका रहती है. गृह यात्रा सुविधा और आराम कर घूम आने के लिए भी आजकल नियोक्ता द्वारा किराये पर हुए खर्च की प्रतिपूर्ति की जाती है.
ReplyDeleteइस पोस्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रहा हूँ। पर आप के कुढ़ने का कारण पता है। आप समाज को एक दूसरे रूप में देखना चाहती हैं, जब वह वैसा नहीं होता और बहुत अधिक विपरीत दिखाई देता है तो आप कुढ़ती हैं। पर यह कुढ़ना ही आप का सर्वोत्तम गुण भी तो है।
ReplyDeleteआज जब मेडेन नेम पर महिलाऐं चल रही हैं...उस वक्त पीछे मुड़ कर देखना...जरुरत कम ही बचेगी,, नो कमेंट इस मुद्दे पर हमेशा की तरह..इतना कहने के बाद भी.
ReplyDeleteऔर जिस जगह को अब उस का कहा जा रहा है विवाह के बाद, वहाँ का प्यार? वो भी तो कितना सुंदर है। और बेचारा आदमी भी...उसे भी कहाँ अपने ससुराल को घर कहने दिया जा रहा है, जवाँई है, रेस्पेक्टेड गेस्ट यू नो... शायद वो भी कुढ़ रहा हो। (ये भी तो सिक्के का एक पहलु हो सकता है?)
ReplyDeleteबहुत से ऐसे नियम बनाये हुए थे और हैं जो कि स्त्री और पुरुषों में अंतर दर्शाते हैं ....कुढ़न तो होती ही है इस तरह से
ReplyDeleteनियम कायदे मालूम नहीं इसलिए केवल हाँ में हाँ और ना में ना कहना गलत होगा.
ReplyDeleteशादी के बाद ससुराल घर होता है, इसमें गलत क्या है? समस्या सोच में है. "पति का घर" को ससुराल या नया घर सोच कर देखें तो उतना "अत्याचार" नहीं लगेगा.
अब बहुत ज्यादा सम्भावनाएं इस बात की है कि नर-नारी दोनो ही अपने अपने घर त्याग कर नया घर बसाते है.
यहाँ हो सकता है, आप खेत की बात कर रही हो और मैं खलिहान की :)
संजय जी से सहमत
ReplyDeleteअगर जीत के लिए जोश रखते हैं, देश के लिए मरने का जज्बा रखते हैं तो अन्याय के खिलाफ अत्याचार के खिलाफ गुस्सा रखना कोई गलत बात नहीं...आपने शुरूआत की अच्छा लगा, आस पास से शुरूआत करो,,जहां में होली होली सुधार हो जाएगा. लगे रहो..हम साथ हैं.
ReplyDeleteएक बार मन किया समझदारों की तरह नो कमेन्ट करके गुजर जायूं ....बचपन में था तो सोचता था की भाई दोज,राखी .मामा का शादी में भात देना ...अलग अलग त्योहारों पे लड़की के घर सामान देना क्यों है ?क्यों शादी के बाद भी भाई को कुछ रीतिया निभानी पड़ती है....बाद में समझ आयी.हिन्दू धर्म में लड़कियों को चूँकि पहले सम्पात्ति में अधिकार नहीं मिलता था इसलिए ये प्रावधान रखा गया ..समय के साथ हिन्दू धर्म में बदलाव आता गया ....हम जिस समाज में रहते है उस सामय की भौगोलिक ,सामाजिक सरचना के हिसाब से उसकी स्थिरता के लिए नियम बनाए जाते है ...निसंदेह उस घर पर स्त्री का उतना ही अधिकार है ...पर आज भी क्यों ऐसा है जब हम बहनों को विदा करते है मां रोते हुए उनके गले लगकर कान में यही कहती है ..अब वही तेरा घर है बिट्टो .....तो क्या वे गलत कहती है ?
ReplyDeleteसोचिये यदि पुरुष भी अपनी ससुराल के लिए यात्रा भत्ता मांगने लगे .आखिर वो भी तो घर हुआ ....तो क्या सरकार पे दोहरा बोझ नहीं होगा ....
सच मानिए मै उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब मां अपनी बहू से भी वही अपेक्षा रखेगी जो अपनी पुत्री से रखती है ...हम अगर अगली पीढी... अपनी संतानों को एक बेहतर इंसान बनाये तो शायद समाज की बेहतरी में थोडा योगदान दे सकेगे....
मेरा भारत महान, ओर भारत के नेता और उनके नौकरशाह भारत से भी महान ..!
ReplyDeleteहमारे समाज में बहुत से ऐसे नियम मिल जायेंगे जो स्त्री और पुरुषों में अंतर दर्शाते हैं ..कुछ पर कुढ़न हो सकती है......कुछ समय की जरूरत भी...........पर धीरे धीरे इस में परिवर्तन आ रहा है...............और आगे भी आएगा ............... बस समयानुसार ऐसे मुद्दे उठाने की है................
ReplyDeletebahut sahi prashan uthaya hai aapne.aise prashan sabhi ko pareshan karte hain
ReplyDeleteडाक्टर अनुराग जी ने लिखा है..."सच मानिए मै उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब मां अपनी बहू से भी वही अपेक्षा रखेगी जो अपनी पुत्री से रखती है "...ये मेरा भी सपना है...देखें कब पूरा होता है...सुना है कभी कभी सपने पूरे हो जाते हैं...इसी उम्मीद में...
ReplyDeleteनीरज
इस बात पर तो हम सभी कुढते हैं, लेकिन कुढने से बेहतर है कि इस तरह के विषयों पर ग्रुप बनाए जाएं और आंदोलन खड़े किए जाएं ताकि कोई पाजिटिव परिणाम आ सके
ReplyDeleteयू मे बी करेक्ट। बट, कुढ़ना कोई समाधान नहीं।
ReplyDeleteकुमायूं की बात पर ये कुमायूनी चेली मन प्राण से आपके साथ ...
ReplyDeleteशुकर है भगवान का बात-बात पर कुढने वाले हम अकेले ही नही है और भी कोई है।
ReplyDeleteअक्सर हमारे चारों ओर जो हो रहा होता है, उसपर कुढन होती ही है। पर ये कोई समाधान नहीं, जब तक उन हालात को बदलने की कोशिश नहीं होगी, कुढन से कोई फायदा नहीं होने वाला।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
sahi me kudhana koee samaadhaan nahi hai .....achchha prasan hai
ReplyDeleteWyakti ko yah chunane ka adhikar hona chahiye ki wah kisi ek jagah ko (sasural ya mayka )apana ghar ya permanent address ghoshit kare aur usee hisab se yatrabhatta paye.
ReplyDeleteघुघुित जी, आपके चिट्ठे पर पहुँची अपने बेटे को सुनाने के लिए घुघुित बासुति ढूंढ़ते ढूंढ़ते पर उसके साथ साथ इतना कुछ पाया पढ़ने के लिए की आपका लिखा सब कुछ पढ़ती चली गई। बहुत ही सशक्त और बाँधे रखने वाला लेखन है आपका जिसकी वजह से सालों बाद आज हिंदी में लिख रही हूँ , वो भी एक ऐसी कुमाँऊनी चिट्ठेकर्ता जिन्होंने विवाह भिन्न कम्यूनिटी में किया है।
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