Tuesday, March 24, 2009

स्त्री कहाँ सुरक्षित है? यदि अपने घर में नहीं तो फिर कहाँ?

मुम्बई से खबर आई है कि एक पिता अपनी पुत्री का नौ वर्ष तक बलात्कार करता रहा। तबसे करता रहा जबसे वह बारह वर्ष की हुई। अब भी करता रहता यदि अब वह उसकी सत्रह वर्ष की छोटी बहन याने अपनी छोटी बेटी का भी बलात्कार करना शुरू न करता। बलात्कार का कारण चाहे किसी तांत्रिक का यह कहना हो कि इससे उसके व्यवसाय में वृद्धि होगी या जो भी रहा हो प्रश्न तो यही उठता है कि यदि स्त्री अपने ही घर में अपनों से सुरक्षित नहीं है तो कहाँ सुरक्षित है? यदि रक्षक ही भक्षक बन जाए, यदि बाड़ ही खेत को खाने लगे तो कोई क्या कर सकता है?


घर वह जगह है जहाँ से संसार भर से त्रस्त व्यक्ति भी चैन से निश्चिन्त हो सकता है। जहाँ उसे हर तरह की स्वतंत्रता मिलती है। जहाँ वह आराम से पैर ऊपर करके या लटका के या जैसे भी बैठ सकता है। जहाँ वह कुछ भी पहनता है, कैसे भी रहता है, एक बार घर का दरवाजा बन्द किया तो बस केवल सुरक्षा का एहसास होता है। परन्तु जब समाज जिस व्यक्ति को गृहस्वामी कहता है वह अपनी ही पुत्रियों पर यूँ अपना स्वामित्व जताए तो उस पुत्री की तो घर के भीतर पाँव रखते ही रूह काँपती होगी। घर से अधिक असुरक्षित स्थान तो उसके लिए कोई हो ही नहीं सकता।


यह बात जो दुःस्वप्न से भी अधिक भयानक है पढ़कर आश्चर्य होता है कि कोई इतना भी नराधम हो सकता है। जो धन की प्राप्ति के लिए अपनी ही बारह वर्ष की बिटिया का बलात्कार करे व उस तांत्रिक से भी करवाए। स्वयं उसे उसके घर पहुँचाकर आए ! कहाँ तो पिता अपनी पुत्री की रक्षा के लिए जान भी देने को तैयार रहते हैं और कहाँ ऐसे पिता ! एक माँ स्त्री होकर यह सब होने दे। यदि यह खबर सच है तो हमारे समाज को अपना सिर लज्जा से झुका लेना चाहिए।


जिन नेट पर मिलने वाले अज्ञात लोगों से हम अपनी बच्चियों व बच्चों को खबरदार करते हैं आखिर में उनमें से ही एक अज्ञात पुरुष ने उसे इतना साहस दिलाया कि वह अपने मामा को यह सब बता पाई। भला हो उसका कि उसने उसका लाभ उठाने की चेष्टा नहीं की। कि वह उसे जीने की राह दिखाता गया। वह तो आत्महत्या करना चाहती थी।


यदि यह खबर सच न भी हो तो भी यह सर्वविदित सत्य है कि लड़कियों का अपने घर में ही अपने ही सगे सम्बन्धियों द्वारा यौन शोषण होता रहता है। यह न केवल गरीब बस्तियों में होता है किन्तु पढ़े लिखे सभ्य कहलाने वाले परिवारों में भी होता है। सभ्य परिवारों में तो अवसर भी हैं व एकान्त भी। फिर यदि इस विषय पर बच्चे माता पिता से चर्चा भी करें तो पारिवारिक सम्मान पुलिस को रपट लिखवाने में आड़े आता है। क्या परिवार का सम्मान बच्चे की सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है? जो व्यक्ति ऐसा अपराध करके एक बार बच निकलता है क्या वह अधिक आश्वस्त होकर यह अपराध बार बार नहीं दोहराएगा? इस घटना में तो जब माता पिता ही बच्ची पर यह अत्याचार कर रहे थे तो बच्ची जाती भी तो कहाँ?


क्या विकसित देशों की तरह भारत में भी बच्चों को स्कूलों में बताया जाए कि यदि परिवार में कोई उनपर अत्याचार करे तो पुलिस को फोन करो? क्या यहाँ भी अध्यापक बच्चे की शिकायत पर पुलिस को बुलाएँ और बच्चे को शुरू से बताया जाए कि अपने परिवार में होने वाले अत्याचार के बारे में अध्यापक को बताएँ? भारत में परिवार को जो पवित्र दर्जा दिया गया है जिसमें प्रायः पड़ोसी तो क्या पुलिस भी हस्तक्षेप करने के कतराती है क्या वह गलत है? क्या कोई भी संस्था चाहे वह परिवार ही क्यों न हो बच्चे से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है? सोवियत संघ व चीन में छात्रों को अपने माता पिता की जासूसी करने को उकसाया जाता था और हमें यह घृणित लगता था। परन्तु जब परिवार के रक्षक ही बच्चों का जीवन नारकीय बना दें तो बच्चे क्या करें?


पाटन में अध्यापकों द्वारा छात्रा का बलात्कार व यौन शोषण यदि दिल दहलाने वाला था तो यह किस श्रेणी में रखा जाएगा? कौन सी सजा ऐसे पिता व इसमें सहयोग देने या आँख बन्द रखने वाली माँ के लिए सही हो सकती है? वह लड़की अपने पिता को फाँसी दिलवाना चाहती है। क्या फाँसी की सजा भी ऐसे पिता के लिए पर्याप्त सजा होगी? शायद यह अपराध उन अपराधों की श्रेणी में आता है जहाँ संसार का कोई भी कानून पर्याप्त या उपयुक्त सजा नहीं दे सकता।


गौर करने की बात है कि यौन उत्पीड़न केवल बच्चियों का ही नहीं होता। लड़के भी इसका शिकार होते हैं, चाहे इसकी दर कम होती है। परिवार के सभी सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के साथ कोई ऐसा दुर्व्यवहार तो नहीं कर रहा। बच्चे अन्तर्मुखी तो नहीं होते जा रहे। शुरू से ही उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि हर गलत व्यवहार का वे विरोध करें व उनका शरीर केवल उनका है, जिसे जो चाहे जैसे उनकी इच्छा के विरुद्ध छू नहीं सकता। उन्हें विस्वास दिलाना होगा कि उनकी बातें सुनी जाएँगी, उनपर अविश्वास नहीं किया जाएगा। समाज की चाहे यह दुखती रग ही क्यों न हो इसे अब पकड़कर इसका इलाज करना ही होगा।


न्याय शीघ्रातिशीघ्र मिलना चाहिए और प्राथमिक खबर से भी अधिक खबर न्याय मिलने की प्रसारित की जानी चाहिए। इसके दो लाभ होंगे, एक तो पीड़ित बच्चा व उसका परिवार न्याय माँगने का साहस व प्रेरणा जुटा पाएगा और दूसरा यह कि लोगों को अपराध करने पर दंड अवश्य मिलेगा यह भय होगा। अपराधी को भय दिलाना व पीड़ित को साहस दिलाना न्यायपालिका व संचार माध्यमों का उद्देश्य होना चाहिए। इस सबके साथ ही पीड़ित बच्चों की समुचित मानसिक व भावनात्मक सहारे की भी आवश्यकता का ध्यान रखना होगा।


घुघूती बासूती

45 comments:

  1. कुछ लोग अपने स्वार्थ में तो कुछ लोग स्त्री देखकर अंधे हो जाते हैं, बस उन्हीं से स्त्री असुरक्षित है ।

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  2. किसी की पँक्तियों के माध्यम से बस यही कह सकता हूँ कि-

    बद नजर उठने ही वाली थी किसी की जानिब।
    अपनी बेटी का खयाल आया तो रूह काँप गया।।

    लेकिन यह आलेख तो इससे भी आगे की बात बता रहा है। पता नहीं हम किधर जा रहे हैं?

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. यह सामाजिक ह्रास का कारण भी धन का लालच किसी भी कीमत पर है . सही कहा है आपने बाड़ ही खेत को खा रही है . चारित्रिक गिरावट एक गंभीर समस्या है समाज के लिए . एक सार्थक बहस की आवश्यकता है .

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  4. Anonymous7:10 am

    बड़ा दुखद है यह सब कि बच्चियां अपने घर वालों की ही हवस का शिकार बनें!

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  5. घुघुती जी ,

    यह वाकई एक भयानक सच है कि लड़कियाँ अपने घर तक मे सुरक्षित नही हैं- जिसका सामना करने का साहस जब तक समाज जुटाएगा तब तक बहुत देर हो जाएगी।

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  6. Anonymous7:50 am

    जिस का आपने जिक्र किया जाहिर है वो मानसिक रूप से बीमार है, कुछ समय पहले किसी की तो पोस्ट में मैंने पढ़ा था जो ऐसी ही आस्ट्रिया की एक घटना भर इंडिया की बढ़ाई और विदेशियों की बुराई कर रहा था।

    इस तरह की घटनायें मानसिक रूप से विक्षत लोग करते हैं उसका देश और समाज से ज्यादा कुछ संबन्ध नही होता। आपने कहा - "क्या विकसित देशों की तरह भारत में भी बच्चों को स्कूलों में बताया जाए कि यदि परिवार में कोई उन पर अत्याचार करे तो पुलिस को फोन करो?...."

    हाँ ये बताना बहुत जरूरी है लेकिन विदेशों की तरह पुलिस क्या इंडियन पुलिस वक्त से पहुँच पायेगी, फोन पर भी और घर पर भी। यही नही अक्सर पुलिस के रूप में दिख रहे रक्षकों के भी भक्षक बनने की खबरें आती रहती हैं। भारतीय समाज में भी वही सब होता है जो किसी और समाज में, वहाँ सब कुछ खुला है और यहाँ इंडिया में दबा दबा। बस फर्क इतना है कि ये खबरें अब खुलकर आने लगी हैं।

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  7. परिवारों का एकल होना, विद्यालयों में शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों के अकेले होने के अवसर, यौन शिक्षा का नितांत अभाव, न्याय की प्रक्रिया का विलंबित होना। लोगों का एक दूसरे से मतलब न रखना आदि बहुत से कारण हैं जिन से ये घटनाएँ घट रही हैं।
    ऐसा भी नहीं कि ये आज घट रही हैं। सदियों पहले से यह क्रम चला आ रहा है। बस उन का प्रकटीकरण होने लगा है, सूचनाएँ लोगों तक पहुँचने लगी हैं।
    यह समाज के अंदर की बीमारी है, उस के अंदर से ही उसे ठीक करने का काम किया जा सकता है।

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  8. घुघुती जी ,इन आपवादिक घटनाओं पर इतना मायूस होने की जरूरत नहीं है और न ही ऐसी स्फुट घटनाओं से किसी तरह के सामान्यीकरण पर पहुंचना चाहिए ! राहत है कि अभी तो किसी अनूप शुक्ल की श्लेष भाव खबर्दारिया टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन कर रही है -मगर इसकी क्या गारंटी है कि हमेशा कोई अनूप शुक्ल ख़बरदार करने को रहेगा ही !

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  9. घुघुतीजी,
    बेहद शर्मनाक। लेकिन ये भी हमारे समाज का एक सच है।

    "शुरू से ही उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि हर गलत व्यवहार का वे विरोध करें व उनका शरीर केवल उनका है, जिसे जो चाहे जैसे उनकी इच्छा के विरुद्ध छू नहीं सकता।"

    कैसी बात कर रही हैं आप, ये तो सीधे सीधे स्कूल में यौन शिक्षा वाली बात हो गयी। इससे हमारी संस्कृति नष्ट नहीं हो जायेगी।

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  10. घोर कलयुग. इनमे से कुछ मामले ही प्रकाश में आते हैं.

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  11. bahut dukh hota hai aisi khabar padhke,shayad aap sahi hai,ladki ko police mein phone karne ki chut honi chahiye aur shiksha bhi is mamle mein deni chahiye.

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  12. लोकतंत्र वैश्या के समान हैं-महात्मा गांधी
    गांधी जी आज से सौ वर्ष पूर्व यह बाते एक पत्रकार द्वारा पुछे गये सवाल के जवाव में कहा था।गांधी की ये बाते आज कितनी प्रसागिंक हैं आप अपनी राय दे ।

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  13. स्त्री का जनम पुरुष की काम की तुष्टि के लिये ही हुआ हैं . इस बात को पुरुष ही नहीं स्त्री भी सही मानती हैं . इस सन्दर्भ मे जिसका आप उल्लेख कर रही हैं एक दूसरी स्त्री यानी एक माँ भी शामिल थी . स्त्रियाँ अपने बेटो को कभी ये नहीं सिखाती की पर स्त्री गमन . बलात्कार करना तो दूर उसके विषय मे सोचना भी अपराध हैं . हमने तो हमेशा की पुत्र की माँ को यही कहते सुना हैं " लड़का हैं उसका कोई क्या बिगाडेगा .
    और पुरुष को तो अपनी शक्ति का दभ रहता ही हैं . घर हो या बहार स्त्री का दर्जा केवल और केवल देह हैं वर्ना पिता और भाई से भी स्त्री को अलग रहने की सलाह क्यों दी जाती .आप की इस पोस्ट पर बहुत कमेन्ट आयेगे लेकिन और किसी ब्लॉग पर जहां जब भी रेप होता हैं ये कहा जाता हैं की औरते अपना बलात्कार खुद करवाती हैं कोई भी पोस्ट नहीं आयेगी . भारतीये संस्कृति एक पिंक पैंटी अभियान से धरातल मे चली गयी लेकिन इस विषय पर कहीं कोई संवाद नहीं हुआ . ये हमारे समाज की कड़वी सचाई हैं जो मीडिया की वजह से अब रोज पढ़नी को मिलती हैं . लेख बहुत लम्बा हैं बहुत सी बाते हैं ब्लॉग पर कुछ छोटा लिखे ताकि इम्पक्ट ज्यादा हो ये विनम्र निवेदन हैं

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  14. धन का लालच था या मानसिक विकृति थी ... जिसने एक पिता को यह सब करने को मजबूर किया ... कारण जो भी हो ... अन्‍याय तो एक बालिका के साथ ही हुआ ... शायद ही कोई सजा उसके दुख को कम कर पाएगी।

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  15. वाकई पीड़ादायक स्थिति है.

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  16. बेहद शर्मनाक और दुखद बात है....आपने बहुत सही मुद्दे को उठाया है और बेबाक चर्चा की है....
    नीरज

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  17. इस तरह की घटनाएं समाज में आये दिन होती रहती है , यह दुखद तो है ही साथ ही सामाजिक स्तर और नाते रिश्तों के धागे को भी कमजोर करता है । बड़ी बिडंबना है कि किसी प्रकार की आश नजर नहीं आती ।

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  18. इस तरह की घटनाएं समाज में आये दिन होती रहती है , यह दुखद तो है ही साथ ही सामाजिक स्तर और नाते रिश्तों के धागे को भी कमजोर करता है । बड़ी बिडंबना है कि किसी प्रकार की आश नजर नहीं आती ।

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  19. बीमार मानसिकता दर्शाती है यह भयानक सच्चाई ..माँ किस तरह से इन सब में शामिल हो पायी यह बहुत दुखद और हैरान करने वाला लगता है ..

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  20. स्‍त्री जब तक अपनी सुरक्षा के लिए स्‍वयं नहीं तैयार हो जाती, तब तक इस तरह के सवाल उठते रहेंगे।

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  21. घटना से ज्यादा भयावह ये बात है कि लड़की के माता पिता को इस बात का कोई पछतावा नहीं है. उन्हें कोई शर्म नहीं है कि उन्होंने ऐसा घृणित कार्य किया...यही नहीं तांत्रिक का भी कहना है की वह अपने बेटे की शादी छोटी लड़की से कर देगा, बड़ी लड़की से नहीं करने की बात पर उसने कहा "she is too used, i myself have raped her atleast 50 times" . और घुघूती जी, कल की खबरें पढ़ कर लगा की ये सब पैसे नहीं कुत्सित मानसिकता के लोगो का किया व्यभिचार है, बिसनेस में फायदे की बात तो बस मूल मुद्दे से भटकने के लिए था...बाकी details जो मैंने पढ़ी...मुझे लिखने में शर्म आती है.
    और ऐसी घटनाएं पहले भी हुयी हैं, बस प्रकाश में नहीं आ पाई हैं. आजकल मीडिया लोगो की पहुँच में है तो ऐसी खबरें मिल रही है...पर क्या न्याय मिलेगा? हम जिन विकसित देशों की बात कर रहे हैं वहां भी ऐसा घृणित कार्य करने वाले पिता को कितना मामूली दंड मिला है...कानून में फांसी "rarerst of the rare" केस के लिए होती है, कम से कम ऐसे हालत में तो न्याय होना चाहिए और जल्दी होना चाहिए ताकि बाकी लोगो में कुछ तो डर हो.
    स्कूल में हमारे शिक्षक क्या इस भरोसे के लायक हैं कि उनको घर की पीड़ा बताई जा सके...जिस तरह से समाज दरक रहा है, कौन सी ईकाई है जिसपर विश्वास किया जा सकता है?

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  22. बहुत शर्मनाक बात है ...गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए...

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  23. बेहद शर्मनाक, यह बात दिखाती है कि समाज का किस हद तक नैतिक पतन हो गया है।

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  24. Aise ghatnao ke baare mai dekh-sun ke vakai bahut afsos hota hai...

    aisa karne walo ko kari saja milni hi chahiye...

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  25. Anonymous1:33 pm

    bhai santosh ji ki tipni chokane wali hai. jaise koi pita apni santan ko gaali de raha ho.

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  26. Anonymous2:17 pm

    ऐसा ही दरिंदा पंजाब में भी था, जिसने अपनी तीन बेटियों के साथ अवैध संबंध बनाकर इंसानियत को सालों साल शर्मिंदा किया. पिता बेटी के रिश्ते का पल पल खून किया

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  27. aisi ghatanaen padh kar, man kaisa ho jaata hai, likha nahi jaa sakta, magar ye mansik beemar hi hote hai.n aur kuchh nahi

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  28. शायद यह अपराध उन अपराधों की श्रेणी में आता है जहाँ संसार का कोई भी कानून पर्याप्त या उपयुक्त सजा नहीं दे सकता।

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  29. Its only 9 years. In Austria Fritzl did the same for 24 years and he has fathered seven children (six are alive, one dead) and in turn he has got life imprisonment

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  30. पिता और पुत्री का संबंध दुनिया का सबसे पवित्र रिश्‍ता है। गंदे से गंदे लोग भी इस रिश्‍ते का लिहाज करते हैं। जो बाप के रिश्‍ते को कलंकित कर सकता है, वह इंसान है ही नहीं। ऐसे पाशविक लोगों के लिए पाशविक दंड विधान होने चाहिए। सरेआम फांसी दे देनी चाहिए, पत्‍थर मार-मार कर जान ले लेनी चाहिए, या ऐसा ही कुछ। क्‍योंकि जो अपनी बेटी के लिए खतरनाक है, वह दुनिया की सारी बेटियों के लिए खतरनाक है।

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  31. यह मुझे बहत घृणित लगता है।
    मानव में आसुरिक गर्त की और दैवीय चरमोत्कर्ष की कोई सीमा नहीं है!

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  32. ONE SWALLOW DOES NOT MAKE A SUMMER- DONT MAKE AN EXCEPTION AS A RULE.

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  33. Anonymous4:58 pm

    परस्पर सुरक्षा के भाव से ही परिवार है । ऐसे मामलों में शिकायत की गुंजाइश भी नहीं रह जाती । परिवार की 'इज्जत' के नाम पर कुकर्म छुपा रह जाता है । शिकार बच्चियां कहां जाएं ?

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  34. क्‍या अब भी हम हर गलत चीज के लिए विदेशियों को कोसते रहेंगे...जब हमारे घर में ही ऐसा हो रहा है

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  35. कोई भी टिपण्णी करने कि स्थिति नहीं है.

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  36. मन बडा दुखित हुआ...और ये भी पक्का है कि गिने चुने मामले ही सार्वजनिक होते हैं.

    महा निंदनिय राक्ष्सी कॄत्य करने वालों को सजाये मौत दी जानी चाहिये जिससे दूसरों को कुछ सबक मिले.

    रामराम.

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  37. पूजा से सहमत ..पर मुझे आश्चर्य है लोग कैसे कहतें हैं की इस एक मात्र घटना के लिए चिंतित होने की आवश्यकता नही. उन्हें बता दूँ यह पहली बार नही है जिन्हें इससे पहले की घटनाओं डिटेल चाहिए मुझसे संपर्क करें.

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  38. सवाल यह नहीं है कि इससे पहले ऐसी घटनाएं हुई या नहीं, सवाल यही है जो कि इस पोस्ट के शीर्षक में लिखा है।
    यह वाकई विचारणीय बात है कि क्यों स्त्री सिर्फ़ और सिर्फ़ इस संदर्भ में उपयोग की जाने वाली वस्तु बनकर रह जाती है
    वहां भी जहां एक पवित्र रिश्ते से जुड़ी होती है।

    वाकई विचारणीय

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  39. घुघुती जी,भारत क्या ऎसे केस पुरी दुनिया मै होते है,ओर ऎसा करने वाले दिमाग से सही नही होते, वरना ऎसा गन्दा काम कोन करता होगा, अपने ही बच्चे के संग ... ल्र्किन ऎसे मामलो मै हम पुरे समाज को दोषी तो नही कह सकते, क्योकि इस समाज मै ऎसे भी लोग है जो दुसरो की बेटियो की इज्जत बचाने के लिये अपनी जान भी दे देते है, लेकिन ऎसे मामले बहुत ही घृणित होते है, इन्हे इन्सान कहना भी भला नही लगता.लेकिन कोई कया कर सकता है ऎसे बिमार लोग हम सब के बीच इसी समाज मे छिपे है.क्या पुलिस मदद करेगी? क्या कोई समाज सेवा मदद करेगी? कोई टीचर मदद करेगा..... नही इन मै तो ओर भी बहुत ज्यादा भेडिये छिपे है, मदद एक ही तरह हो सकती है जब पुरा परिवार मिल कर रहे , दादा दादी, चाचा, सभी तो ऎसे केस शायद ही हो, ओर बच्चे अपने दिल की बात दादी दादा को मां को अपने वाप को बता सके, अपने दोस्त बना सके इन सब को, यौन शिक्षा तो पुरे युरोप मै दी जाती है, लेकिन सब से ज्यादा ऎसे केस इस युरोप मै ही होते है, इस लिये यह यौन शिक्षा भी इस का उपचार नही,सिर्फ़ ओर सिर्फ़ चरित्र ओर चरित्र निरमान ही एक उपाय है .ओर हम सब को आज इस चरित्र निरमान की शिक्षा की बहुत जरुरत है.
    धन्यवाद

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  40. समाज के सामने कई सवालों को उठाता एक सारगर्भित आलेख...लाजवाब !!
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    गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!

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  41. सबसे दुखद बात ये है की कई पुलिस थाने हिम्मत करके रपट लिखवाने आई माँ को धमका कर वापस भेज देते है ..मुझे किसी ने बताया है की "इन्सेस्ट" पर भारत में कोई स्पष्ट कानून नहीं है

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  42. पुनः आया तो बहुत ज्ञानार्जन हुआ ! मुझे एक लेख की याद है जिसमें अगम्यागम्य (इन्सेस्ट ) मामलों का प्रतिशत १ फीसदी से भी कम बताया गया था और जो रिपोर्ट नहीं होते उन्हें इससे भी कम बताया गया था -इसलिए ऐसे असमान्य व्यवहार जो कि निश्चित रूप से दंडनीय हैं हमें हमारे पूरे समाज के प्रति निराश नहीं करते ! मैंने अपनी टिप्पणी में इसी बात को रेखांकित करना चाहा था !
    मगर दुःख है लोगों को केवल अपनी कहे की पडी है !
    ईश्वर उन्हें प्रशांति दे ताकि समाज की सरंचना में उनका सार्थक योगदान सुनिश्चित हो सके !

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  43. इस पर दुख करने से कुछ न होगा। क्रोध आता है इस पर। न्यापालिका का सम्मान तो हमें करना चाहिये परन्तु ऐसे मामले तो विधि सम्मत न्याय की सीमाओं से भी दूर हैं। बस यह जान लिया जाय कि ऐसा अपराधी कहीँ मानसिक रूप से विक्षिप्त तो नहीँ (वास्तव में), यदि नहीँ तो उसे ऐसी सजा और उस सजा का अधिकाधिक प्रचार होना चाहिये, जिस इस प्रकार के जघन्य कृत्य तो क्या उनकी कल्पना भी सिहरन पैदा कर दे।

    इसके भी आगे इन अपराधों के मूल का विश्लेषण भी चाहिये और यह भी कि समाज की कौन सी ऐसी विषमताएं, अनपेक्षित महत्वाकांक्षाएं है जो ऐसे अमानुषिक व्यवहार की पृष्ठभूमि बनाती हैं और क्या इन मूल विसंगतियों निवारण सम्भव है अब? जब तक हमारे विचारों और कृत्यों में भी उच्च जीवन मूल्यों का परिलक्षण नहीँ होगा, इस प्रकार की विषमताएं व इनके आधारभूत कारण बने ही रहेंगे।
    अन्य टिप्पणियों के साथ ही मैं द्विवेदी जी व पूजा जी, भाटिया जी की टिप्पणियों से भी सहमत हूँ

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  44. ye tippani karke bhool jaane wala vishay nahi hai.. ise gaanth baandh liya gaya hai..

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  45. आह! कितना दुखद है यह। ऐसे मुद्दे पर जागरूकता लानी जरूरी है। हर किसी को अपने स्तर से इस संबंध में सहयोग करना चाहिये।

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