Saturday, June 30, 2007

मन.............एक कविता

मन

उड़ा रे, मेरा मन उड़ चला
तितली से ये पंख लगाकर,
अभी पास ही तो था ये मेरे
अब साथ चल पड़ा है तेरे ।

मन है कोमल मन है चंचल
मन है स्निग्ध मन है शाश्वत,
यह है कभी बालक सा सरल
तो कभी है विप्लवी किशोर ।

बन हिरण कभी कुलाँचे भरता
कभी बन मयूर नाचा करता,
ये ना जाने कोई भी बन्धन
बस सुनता मन का क्रन्दन ।

अभी यहाँ है तो अभी वहाँ है
ढूँढो इसे न जाने ये कहाँ है,
तुझसे मिलने ये चला था
तेरी राहों में खो गया है ।

मन ना जाने कब किस
मन को सहला आता है ,
न जाने किस पल को वह
किस मन को बहलाता है ।

अपने अन्तः की तेरे मन से
कितनी बातें कर आता है ,
जा पास तेरे, तेरे मन की
कितनी बातें सुन आता है ।

अपनी आँखों से तेरे सारे सपने
चुपके चुपके से देख आता है ,
तेरे मन की आँखों को अपने
सपने जाने कब दिखा आता है ।

घुघूती बासूती

15 comments:

  1. अति सुन्दर अभिव्यक्ति...आनन्द आ गया. बधाई आपको/

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  2. सुंदर,

    मन का मन बहुत अच्छे तरीके से अभिव्यक्त किया है आपने!

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  3. वाह!!! बहुत सुंदर रचना ..

    मन ना जाने कब किस
    मन को सहला आता है ,
    न जाने किस पल को वह
    किस मन को बहलाता है ।

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  4. Anonymous11:18 am

    आश्रय
    सारी जिन्दगी
    मैं सिर छिपाने की जगह
    ढूँढ्ता रहा ,
    और अन्त में
    अपनी हथेलियों से
    बेहतर दूसरी जगह नहीं मिली ।
    सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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  5. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ।

    और बडे दिन बाद कविता लिखी ।

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  6. अब ये मुशकिल काम है ,कि आप्की कविताओ पर टिप्पणी करना
    फ़िर भि मुझे ये लाईने बहुत अच्छी लगी
    अपने अन्तः की तेरे मन से
    कितनी बातें कर आता है ,
    जा पास तेरे, तेरे मन की
    कितनी बातें सुन आता है ।

    अपनी आँखों से तेरे सारे सपने
    चुपके चुपके से देख आता है ,
    तेरे मन की आँखों को अपने
    सपने जाने कब दिखा आता है ।

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  7. क्योकी आपकी सारी कविताये ही एक से बढ कर एक होती है

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  8. वाह बहुत सुंदर रचना मन पर..और साथ ही बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने हमारी बात मान कर इस बार कविता भेजी...:)

    शानू

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  9. एक अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद

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  10. Anonymous3:59 pm

    :)

    अभी यहाँ है तो अभी वहाँ है
    ढूँढो इसे न जाने ये कहाँ है...

    ढूँढ़ते रह जाओगे :)

    बहुत सुन्दर, बधाई!!!

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  11. मन की परतों को यूं बेपरदा करना कठिन है। प्याज़ को छिलते जाईये, अंतिम परत तक पहुंच जायेंगे, पर मन की अंतिम परत॰॰॰॰॰ये मन के अलावा हम भी नही जानते॰॰॰॰
    सुन्दर अभिव्यक्ति जो मन की कुछ बातों को कह गई ।
    आर्यमनु

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  13. ये घुघुती बासुती क्या है,( मैं नया हूं), स्पष्ट करें ।

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  14. आर्यमनु जी , धन्यवाद ।
    आपके मेरे नाम को लेकर किये प्रश्न का उत्तर http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007_02_01_archive.html में पाया जा सकता है ।
    घुघूती बासूती

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  15. मन ही तो है जो हमें हमारे अस्तित्व से परिचित कराता है.अच्छी भावात्मक कविता.

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