Wednesday, May 23, 2007

हमारे कान उमेठने वालों से एक अपील

नोट: यह लेख रियाजुल हक़ जी के लेख हम असहिष्णु समाज का हिस्सा नहीं हो सकते पर टिप्पणी के रूप में लिखा गया है ।

सही कह रहे हैं आप। मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ। बस एक कमी रह गई है, उस पर भी ध्यान दें तो लेख पूरा हो जाएगा व धर्म, जाति, प्रान्त निरपेक्ष भी हो जाएगा । इस विषय में हजरत जी के कार्टून बनाने वालों का विरोध करने वालों, सलमान रुशदी की सैटानिक वर्सेज पर पाबंदी लगाने वाली सरकार (वह हिन्दुत्व वाली न थी), डेरा सच्चा सौदा का विरोध करने वालों, डा विंसी कोड फिल्म का विरोध करने वालों के भी नाम आते तो हमें लगता आप सभी असहिष्णुओं के कान समान रूप से उमेठते हैं। तब शायद हमारे कान यह दर्द आसानी से सह लेते। हम तो अपने कान स्वयं ही उमेठ लेते हैं और दूसरों के छोड़ देते हैं, सो अब आप बाँकी सबके कान भी उमेठिये तब हमारे कानों को कुछ राहत मिलेगी। आजकल वे कुछ अधिक ही खींचे जा रहे हैं कुछ अपने हाथों व कुछ बाँकी संसार के हाथों।

जहाँ तक गुजरात का प्रश्न है तो वह कक्षा के उस शरारती बच्चे जैसा हो गया है जो इतना बदनाम हो गया है कि शरारत कोई भी करे, दो धौल उसे जमाकर शिक्षक अपने अनुशासन की इति समझ लेता है। ऐसा सब करते समय लोग दिल्ली व आधे उत्तर भारत को भूल जाते हैं जहाँ एक नेता की हत्या के लिए हजारों सिक्खों को मार दिया गया था। क्यों बार-बार उस बर्बरता को याद नहीं किया जाता? अब जब गुजरात पर ऊँगली उठाइये तो यह न भूलियेगा कि राजधानी की तरफ तीन ऊँगलियाँ उठ रही हैं। याद रखिये इसी गुजरात ने एक पूरे के पूरे धर्म को तब अपने यहाँ शरण दी जब किसी और धर्म वाले उन धर्मावलम्बियों को उन्हीं के अपने देश में अपना धर्म का पालन करते हुए जीने नहीं दे रहे थे। हाँ, मैं पारसियों की बात कर रही हूँ। यदि गुजराती सहिष्णु न होते तो आज पारसियों का नामों निशां संसार से मिट गया होता। यदि यह बात पुरानी है तो फिर मनु की बात, खजुराहो की बात भी पुरानी है। अवगुणों के साथ गुण भी याद रखिये।

बुरा बुरा ही होता है, चाहे इसका नाम न.मो. हो या रा.गाँ, चाहे वे हिन्दुत्व वाले हों या काँग्रेसी या किसी और दल के या किसी और धर्म के। गाँव व मोहल्लों में टी.वी. देखने पर पाबंदी लगाने वालों का भी नाम आना चाहिये, स्त्रियों को जबरन सिर या मुँह ढकने पर मजबूर करने वालों की भी भर्त्सना होनी चाहिये। तभी सिद्ध होगा कि आप सब असहिष्णुओं का विरोध करते हैं।

-घुघूती बासूती

पुनःश्च: टी वी पर समाचार दिखाया जा रहा था कि किसी नए नाम वाली हिन्दुओं की रक्षा करने वाली संस्था, गुट या जो भी हो, ने नामों की एक लिस्ट जारी की है, (लगता है खुमैनी से सीखे हैं, नहीं-नहीं कार्टून वाले किस्से से सीखे हैं), लिस्ट में दिये लोगों को मारने पर २५ लाख रूपये मिलेंगे। लेने किसके पास जाना है यह पता नहीं दिया। अब तो हमारे कानों की क्या, नाक की भी खैर नहीं। चलिये लग जाइये मरोड़ने!
- घुघूती बासूती

26 comments:

  1. Anonymous7:41 am

    ये हुई ना बात..बहुत सही लिखा है....हमेशा की तरह....

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  2. बहुते सही दिया है, वाह!!! बधाई

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  3. घुघूति जी
    मैं आपको इमेल करना चाह रहा था पर वह मिली नहीं। इसलिये टिप्पणी द्वारा बता रहा हूं। इसे प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं है।
    किसी भी लेख को संदर्भित करने के लिये यह लिखें। जैसे कि आप ' हम असहिष्णु समाज का हिस्सा नहीं हो सकते' को संदर्भित करना चाह रहीं थी तो आप इस तरह से लिखें,
    हम असहिष्णु समाज का हिस्सा नहीं हो सकते
    इसके साथ inverted comma यानि कि "" के बीच उस पेज के संदर्भ को लिखें यानि कि
    http://hashiya.blogspot.com/2007/05/blog-post_22.html

    यदि यह आपको पहले से मालुम था तो माफी चाहूंगा। मेरा इमेल यह है। यदि आप चाहेंगी तो मुझसे ईमेल से भी बात कर सकती हैं।

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  4. Anonymous7:51 am

    एकदम सही

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  5. आपके गद्य की मार्मिकता और धार का मैं कायल हूँ.. आपने कहा है तो चूक हो रही है.. ऐसा मेरा मानना है.. और उसे ठीक किये जाने की ज़रूरत है.. मैं खुद भी इसका खयाल रखूँगा और रियाज़ सहित दूसरे मित्रों को भे यही सलाह दूँगा कि आपकी बात पर कान दें..
    आपके ईमेल की तलाश मैंने भी की थी जब आपकी टिप्पणी को पोस्ट के रूप में चढ़ाने के लिये आपकी अनुमति चाह रहा था..

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  6. सटीक!!!

    और हां एक बार मैं भी आपके प्रोफ़ाइल पर आपका ई-मेल पता ढूंढने की असफ़ल कोशिश कर चुका हूं!

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  7. बिल्कुल सही और सटीक ।

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  8. Anonymous9:16 am

    यह आपने लिखा है? प्रणाम स्वीकारें.
    यही अगर संजय बेंगाणी लिखता तो वह कट्टरपंथी होता जो मोदी जैसो को नैतिक खुराक पहूँचाता है.
    जो मुझसे कहा जाता है, वही आपके लिए लिख रहा हूँ...
    ऐसे लोगो के लेख मत पढ़ीये, अपने आप लिखना बन्द कर देंगे. धैर्य रखें. इनका कोई एजेंडा नहीं है, विवाद पैदा कर प्रचार पाना चाहते है. अपना समय नष्ट न कर अच्छे कार्यो में अपनी उर्जा लगाएं. और सबसे उपर, आपको यह शोभा नहीं देता.
    कैसा लगा? सदा ऐसा ज्ञान सुनता रहा हूँ, आज दे कर अच्छा लग रहा है. :)

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  9. बहुत सुन्दर घुघुति जी,


    शायद इस पोस्ट से बजारू लोगों की आँखे खुलेगी

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  10. हमारे और तुम्‍हारे की शब्‍दावली में बात करना ठीक नहीं है। 'हम' यानी कौन और 'तुम' यानी कौन।‍ किसी के नाम में उसके पूरे व्‍यक्तित्‍व, पहचान और विचार को समेट देना, उसके साथ नाइंसाफी होगी। असहिष्‍णुता का परिचय 'हम' दें या 'तुम'-दोनों गलत है। हत्‍या का फरमान डेनिश कार्टूनिस्‍ट के लिए हो या फिर हुसैन या चन्‍द्रमोहन के लिए- गलत है। मैं ज्‍यादा नहीं कहना चाहता मेरी राय www.dhaiakhar.blogspot.com पर देखी सकती हैं। पर जब किसी एक घटना पर बात हो रही हो तो हम यह नहीं कह सकते कि आप उस वक्‍त नहीं बोले तो अब क्‍यूं बोल रहे हैं। उम्‍मीद मेरी टिप्‍पणी को 'हम' या 'तुम' के दायरे में नहीं देखा जायेगा।

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  11. Anonymous10:42 am

    साधो नासिर; हम का मतलब है गैर गुजराती और तुम का मतलब है "किसी गुजरात के किसी बडोदरा या और किसी शहर के रहने वाले लोग"।

    विस्तार में पता करना हो तो "ब्लाग जगत की राखी सांवत" साधु अविनाश का ब्लाग पढ़े। आपको हम और तुम का फर्क पत लग जायेगा।

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  12. आपकी पोस्ट को पढने के लिये काफी होमवर्क करना पड गया. फिर आपकी पोस्ट समझ आई. आपकी तर्क शक्ति काबिले तारीफ है. सहिष्णुता का पाठ पढाने वाले लोग लगता है हिन्दु धर्म को अलग करके बाकी सभी धर्मों के विषय में सहिष्णु बने रहने का पाठ बढाते हैं पर उन्हें यह भी समझना चाहिये कि हिन्दु धर्म सनातन धर्म यदि सहिष्णु और दूसरों की विचारधारा को सम्मान देने वाला नहीं होता तो सनातन धर्म की धरती पर नये धर्मों का जन्म ही खतरे में पड जाता सिख धर्म, बौध धर्म सनातन धर्म की धरती पर जन्मे और बडे हुए हैं.

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  13. नहीं नासिरुद्दीन भाई बिल्कुल नहीं । यदि हम सब हम ही रहें तो ठीक रहेगा । किन्तु जब बार बार गुजरात के बारे में बात की जाती है जो भी काफी पुरानी पड़ गई है तो फिर इन सब असहिष्णुताओं के विषय में क्यों नहीं । मैंने यही कहा है कि सब तरह की असहिष्णुता के विरुद्ध बोलिये, मैं तो बहुत पहले ही बोल भी चुकी । जब किसी एक धर्म, समुदाय या राज्य के पीछे लट्ठ लेकर पड़ जाओ तो यह कुछ सन्तुलित नहीं लगती । सन्तुलित तब लगती है जब सबके बारे में बात की जाए । यदि केवल यह कहा जाए कि हमें असहिष्णु नहीं होना चाहिये तो बेहतर लगेगा । पर यह हिन्दुत्व का राग कुछ अधिक ही हो गया है । क्या आप यह नहीं सोचते कि इस राग से हम कट्टर पंथियों के हाथ ही मजबूत करते हैं । यदि मुझ जैसी अधार्मिक व्यक्ति भी यह सुन सुनकर परेशान हो गई और यह सोचने पर मजबूर हो गई कि सब तरह की असहिष्णुता व कट्टरपंथी का विरोध क्यों नहीं होता केवल एक धर्म का क्यों तो आप धार्मिक लोगों का कष्ट समझ सकते हैं ।
    यदि आपको कष्ट हुआ तो क्षमा चाहती हूँ । पर सब तरह की असहिष्णुता के विरुद्ध हम सब, मैं हम, तुम, आप, मिलकर सबके मेरे, हमारे, आपके, तुम्हारे जो भी असहिष्णु हों के कान खींचे तो सायद अच्छा रहेगा । बस एक तरह के कान ही नहीं । यहाँ हम आप तुम मैं सब एक हैं, सबका दुख दर्द एक सा है ।
    घुघूती बासूती

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  14. Anonymous11:12 am

    आखिर आप भी इस चक्कर में फँस ही गए। आप का क्या सोचना है इससे कुछ होगा? कुछ लोग आपके समर्थन में टिप्पणी लगा जाएँगे, आपकी पीठ थपथपा दी जाएगी, कुछ तर्क साथ ही कुछ कुतर्क भी आएँगे, इससे अधिक कुछ नहीं होना है। आप किन्हें समझाने ‍की कोशिश कर रहीं हैं? आप कुछ भी कर लें कुछ नहीं होना है। यह धृतराष्ट्र का दरबार है।

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  15. आप ऐसा ही चैतन्‍य अपना गद्य बनाये रखें और खूब-खूब लिखें.. हालांकि नासिरुद्दीन वाली चिंता में मैं भी उनके साथ हूं..

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  16. बिल्कुल सही बात उठाई है आप ने।

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  17. धर्म-निरपेक्षता = अधर्म-पेक्षता???????? = पाप-पक्षता??????

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  18. बहुत ही सही लिखा घुघूती जी, लेकिन फिर भी एक बात कहूँगा कि आप अपनी लेखनी इस तरह के बेकार विवादों में न घसीटें। जैसा ऊपर संजय भाई और अतुल जी कह चुके कुछ लोगों का मकसद बस बेकार के झगड़े खडे़ करना है, सार्थक बहस में इन लोगों का विश्वास नहीं। अतः मेरा अनुरोध है कि आप अपनी शानदार लेखनी को इनकी साजिश का शिकार न बनने दें। बाकी आप खुद समझदार हैं।

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  19. Anonymous8:32 pm

    मुझे शक है, आप कवि होकर इतनी समझदारी की बात कैसेकर रही हैं

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  20. मैडम,
    मैं आश्चर्यान्वित हूँ कि इसप्रकार के विवादों को जन्म देना या पड़ना दोनो ठीक नहीं हैं…। आपकी कविता में जो धार है वह मुझे यहाँ नहीं दिखी…।
    अरे कहाँ गुजरात की बाते हो रही है अपने देश को याद तो कोई नहीं करता मात्र क्षेत्रवाद को परश्रय दिया जाता है जो भारत का दुर्भाग्य है…।

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  21. Anonymous12:54 am

    Dear Ghughuti Ji


    Dear [Mr./Mrs./Ms./Dr.] [CUSTOMER'S LAST NAME]:


    It takes ability, knowledge, and talent to express ideas in a way that is both informative and Accurate. I feel fortunate to have had the opportunity to read your article about Hansiya. From the introduction to the closing remarks, the content are excellent and right on the time :) I agree with you (Ghughutiji) and Sanjay Bengaini. But I noticed a changed, earlier people use to write what readers wanted to read but now a days readers are FORCED to read the what writers are writing...so there is no point of talking about the freedom of Writers or artist, what about the freedom of readers and viewers ?..I have lots more to say but bottom line is what Sanjay said.. AVOID SUCH PEOPLE

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  22. घुघूती बासूती जी आपके चमचो के द्वारा मै यह जाना कि आप साहित्य लेखन से जुरी है. साहित्य लेखन से सम्बन्धित व्यक्ति किसी राज्य को उसके इतहास से बतलाने कि कोशिश करता है जबकि उसके सामने पुरा का पुरा वर्तमान खरा है आश्चर्य होता है आपकि सोच पर, आपके लेखन पर और शायद शक भि. कि कहि आप उसके >.....

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  23. आप की बात बिलकुल ठीक है इस तरह की बाते सिर्फ़ और सिर्फ़ कट्टर्वादियो के हाथ और तर्क को मजबूत करती है,मै आपको बताना चाहता हू ८७/८८ का उत्तर प्रदेश मे मुलायम शासन काल मे जब पूरा उत्तर प्रदेश जेल बन गया था,मै अपने कार्य से रामपुर से बरेली जा रहा था बस मे अचानक पुलिस चढी और आवाज लगाई जो राम भक्त हो नीचे आ जाये और न मै अयोध्या जा रहा था न ही मेरा जाने वालो से कोई सरोकार था ,लेकिन दोबारा राम भक्त नीचे आ जाये सुन कर नीचे उतर आया,ये अल्ग बात है की बाद मे मजिस्ट्रेट जॊ नीचे ही मौजूद थे से बात चीत के बाद मै वापस अपनी यात्रा जारी रख पाया

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  24. ghuguti ji aapne bilkul sahi baat kahi he .ienhe sirf ak taraf ki kattarata najar aati he .jabki muslim duniya me jaha kahi bhi bhumat me he unhone alpsankhyko ki jindagi nark banane me koi kasar nahi chodi.godhara to nishchya hi kalank he par 1000 logo ki bheed ka ikathha honaa fir train ki do bogiyo ko jala diya jana ddharmandhta ki parakastha he . .vastav me dharmic kattarta ak parvarti he jo jeno.iseeyo.hinduoo or musalmano me kamsha badhti huee matraa me paee jati he .

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  25. Anonymous1:47 pm

    बासूतीजी,

    प्रणाम स्वीकार करें!

    "कविता करने वाले कल्पनाओं में जिते है, उन्हें वर्तमान परिस्थितियों की सूझ नहीं होती", ऐसा मानने वाले लोगों से मेरा निवेदन है कि आपका यह आलेख पढ़ें। कट्टरपंथियों के मुख पर करारा तमाचा मारा है आपने, अच्छा लगा।

    आपका धन्यवाद!

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  26. Anonymous11:59 pm

    'Ghuguti Basuti'.....What do these words mean?

    When I was a lil girl, my grandma wld sing this rhyme to me....'Ki Khaandi...Dudh Bhaati'....

    Do these lines have any meaning....Could you throw some light?

    Thnx

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