Monday, May 21, 2007

मैं जी लूँगी

मैं जी लूँगी

मैं जी लूँगी ऐसे ही
ना होने दूँगी तुमको आभास,
तुम ना चाहो तो
ना निकलेगा इक निःश्वास ।

यूँ ही अकेली जी लूँगी
ना लूँगी तुम्हारा आभार,
मैं पी लूँगी आँसू अपने
ना माँगूगी तुमसे प्यार ।

घोर अंधेरे में रह लूँगी
ना माँगूगी तुमसे थोड़ा सा प्रकाश,
यूँ ही तकती नभ को रहूँगी
चाहे खाली रह जाए मेरा आकाश ।

खाली घर में जीऊँगी पर
ना माँगूगी कभी तेरा साथ,
रीते मन को बहला लूँगी
पर ना फैलाऊँगी अपना हाथ ।

चाहे ये दीवारें मुझे चिढ़ाएँ
जीना हो जाए दुःश्वार,
सूना सा यह घर मुझे सताए
फीका सा लगे संसार ।

घुटे हुए इस जीवन को जीऊँगी
ना मानूँगी जीवन से हार,
हँस हँस कर ऐसे जीऊँगी
ना जानोगे तुम दिल का भार ।

जा अतीत में बस जाऊँगी
यादों को लगा गले से,
आँसू के मोती पिरोऊँगी
ना माँगूगी कुछ भी तुमसे ।

साँय साँय करते सन्नाटों में
मैं बीते पल की गूँज सुनूँगी,
नाग सी डसती इस विरहा में
अपने दिल की हूक सुनूँगी ।

जीवन चाहे कितना एकाकी हो
उसे वसन्त सा मैं जीऊँगी,
तुझ तक रस्ते चाहे कठिन हों
मैं तुझ तक राह बनाऊँगी ।

चाहे कितने झंझावत आएँ
मैं करूँगी तुझसे प्यार,
चाहे जो भी हो जाए
ना जाऊँगी कभी उस पार ।

घुघूती बासूती

19 comments:

  1. यह हुई न आत्म विश्वास की बात. बहुत बढ़िया, घुघूती जी. बधाई लें.

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  2. Anonymous9:59 am

    घोर अंधेरे में रह लूँगी
    ना माँगूगी तुमसे थोड़ा सा प्रकाश,...
    ...चाहे जो भी हो जाए
    ना जाऊँगी कभी उस पार ।

    आल्हादित, आशामयी
    उत्तम

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  3. हँस हँस कर ऐसे जीऊँगी
    ना जानोगे तुम दिल का भार ।

    हर पंक्ति बहुत भावप्रदान है।

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  4. आप भयानक शक्तिशाली महिला है.. आपके भाव पढ़ कर मैं आतंकित हो जाता हूँ..

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  5. Anonymous11:03 am

    साँय साँय करते सन्नाटों में
    मैं बीते पल की गूँज सुनूँगी,
    नाग सी डसती इस विरहा में
    अपने दिल की हूक सुनूँगी ।
    --- शब्द मन को छू गई। कविता लिखनी कई दिनों से छोड़ दी है। पर अब फिर लिखने को मन कर रहा है।

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  6. Anonymous1:09 pm

    सन्देह से यकीन की ओर जाती इस सुन्दर भाव-अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक साधुवाद ।

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  7. घुघूती बासूती जी,आप की यह रचना विरह व प्रतिक्षा की एक टीस को उभारने मे पूर्ण सक्षम रही है।बहुत सुन्दर रचना बन पड़ी है।बधाई।

    मैं जी लूँगी ऐसे ही
    ना होने दूँगी तुमको आभास,
    तुम ना चाहो तो
    ना निकलेगा इक निःश्वास ।

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  8. वाकई उत्‍तम रचना है...

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  9. घोर अंधेरे में रह लूँगी
    ना माँगूगी तुमसे थोड़ा सा प्रकाश,
    यूँ ही तकती नभ को रहूँगी
    चाहे खाली रह जाए मेरा आकाश ।

    कभी कभी दिल कुछ सोच रहा होता है और तभी सामने आपके जैसा लिखा हू कुछ आ जाए तो लगता है की हमारे दिल की बात जान ली किसी ने .कुछ ऐसा ही आपकी इस रचना ने मेरे साथ किया ....बहुत कुछ दिल में उमड़ रहा था इसको पढ़ के बहुत अच्छा लगा

    खाली घर में जीऊँगी पर
    ना माँगूगी कभी तेरा साथ,
    रीते मन को बहला लूँगी
    पर ना फैलाऊँगी अपना हाथ ।

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  10. Anonymous7:30 pm

    अच्छी आशावादी रचना. ऎसे ही आशावाद की आवश्यकता है ...पर कहीं कहीं बेचारगी का अहसास भी है...वैसे कह सकते हैं "कितना सुख है बंधन में".. पर सिर्फ अपनी शर्तों में...

    आप हमें सतायें ,
    सह लेंगे
    इसलिये नहीं कि आप
    हमें सता सकते हैं
    बल्कि इसलिये
    कि आपके सताने में भी
    प्यार ढूंढ लेते हैं हम

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  11. बहुत आशावादी कविता है इसका हर शब्द दिल को छू गया आपकी कविता से कितना अटल विश्वास झलकता है...
    चाहे कितने झंझावत आएँ
    मैं करूँगी तुझसे प्यार,
    चाहे जो भी हो जाए
    ना जाऊँगी कभी उस पार ।
    बहुत-बहुत बधाई

    सुनीता चोटिया(शानू)

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  12. हमेशा की तरह बहुत ही अच्छी रचना ।

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  13. यहां शब्द सिर्फ़ शब्द नहीं है, यहां एक-एक शब्द जीजिविषा और गहरे प्रेम का बोध करा रहा है।
    बधाई, विरह के घने अंधकार में प्रकाश की किरण ढूंढ़ती इस रचना के लिए

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  14. पता नहीं आप कविता किस भाव में लिखती हैं. पत्नी से जब किसी छोटी सी बात पर जब मौन लम्बा खिंच जाता है, और कम्यूनिकेशन स्वतंत्र लेखन में करने का मन करता है तो मेरे मन में कुछ ऐसे भाव आते हैं. उनमें स्नेह भी होता है और तनाव भी.
    खैर, कविता के बारे में मैं ज्यादा अधिकार से नहीं कह सकता.

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  15. Anonymous6:35 pm

    aapka man kitna vishal hai, kitna badaa kainvas hai aapke hraday ka. aapkee nichalata apne aapmen ek samvedansheel kavita hai. agar us or main hota to bahut sharminda hota. jo is kavita ka nayak hoga use sharminda hona chahiye.

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  16. विपरीत परिस्थितियों में भी आत्म-स्वभिमान को बनाये रखना बहुत मुश्किल होता हॆ.बहुत ही अच्छी रचना.

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  17. Anonymous1:50 pm

    आपकी यह कविता जबरदस्त आत्मविश्वास जगाती है, परिस्थितियाँ विपरित है, साथी का भी साथ नहीं मगर दृढ़ संकल्प! वाह! आनन्द आया...

    बधाई स्वीकार करें।

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  18. जी लूंगी....एक मुक़म्मिल विचार से पुष्ट भावों की अभिव्यक्ति है.प्र्वाह अदभुत है.आत्म-विश्वास का सोता फूट पड़ा हो जैसे.ऐसी कविताएं प्रेरणा का प्रकाश आलोकित करती है.

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