ये दर्द ही मेरा मित्र और मेरा साथी है,
सबने छोड़ा मझधार बस दर्द ही मेरा साथी है।
छूटे वे सब लोग जो कितने प्यारे थे,
संगी साथी,माँ,बहन और भाई जो हमारे थे
वो लोग,वो रिश्ते,वो नाते जो सब सहारे थे,
वो प्यार जिसके लिये हम सबकुछ हारे थे,
वो बचपन के खेल जो कितने न्यारे थे,
वो जवानी का खुमार जिसपर हम सबकुछ वारे थे।
गुजरे वो सब दिन जब सोने सा रंग हमारा था,
हिरणी सी थी चाल,मृगनयनी नाम हमारा था,
बादल से थे बाल,चन्द्रकिरण सा रूप हमारा था,
मुट्ठी में थी किस्मत,सारा संसार हमारा था,
नन्हें पैरों की आहट,बच्चों की किलकारी से गूँजता घर हमारा था,
पीपल के खनकते पत्तों, घण्टियों की गूँज सा हास्य हमारा था।
कितने सपने आँखों ने देखे,कितने अरमान हमारे थे,
तब भी होती थी रात पर आसमान में कितने तारे थे,
मीठे थे तब आँसू, न आज से तब वे खारे थे,
होते थे तब भी झगड़े, पर वे पल कितने प्यारे थे,
बिखरे थे तब भी सपने पर मिलकर ही वे संवारे थे,
न होती थी जीत, पर ना वह, ना हम हारे थे।
ना होता था दर्द, ना दर्द से हमारा नाता था,
खुशहाली थी सब ओर और दिल कैसे गीत गाता था,
प्रेम रस से भरा था मन, प्रेम गीत मन गुनगुनाता था,
कब होती थी रात, कब नया दिन आता था,
हर दिन, हर पल एक नयी खुशी लाता था,
यही तो था वो प्यार जो मन में कमल खिलाता था।
और आज,
ये दर्द ही मेरा मित्र और मेरा साथी है,
सबने छोड़ा मझधार, बस दर्द ही मेरा साथी है।
दर्द ही है नाव, दर्द ही हमारा माझी है,
सबने छोड़ा मझधार, ये दर्द ही साथ हमारे बाकी है।
घुघूती बासूती
Wednesday, March 28, 2007
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सुन्दर और ईमानदार..!!
ReplyDeleteये क्या हुआ? आप तो ऐसी न थीं...वैसे, भाव की गहराई बहुत है..एक अद्वितीय रचना. बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे तरीके से दर्द का मर्म बताया है आपने, मुझे ये लाइनें बहुत अच्छी लगी:
ReplyDeleteये दर्द ही मेरा मित्र और मेरा साथी है,
सबने छोड़ा मझधार, बस दर्द ही मेरा साथी है।
दर्द ही है नाव, दर्द ही हमारा माझी है,
मुझे एक कविता भी याद आयी है, अपनी साथी चिट्ठाकार, रमा जी की लिखी हुई :
कौन किसके दर्द में कोई रोता है?
आदमी अपना दर्द खुद ही ढ़ोता है॥
वे आए हाल पूछने औपचारिकता वश।
बस इसके बाद उनका अता-पता न होता है॥
हंसने वाले के साथ सभी हंसते हैं ।
रोने के लिए किसका जिगर बड़ा होता है?
न रखो जमाने से हमदर्दी की उम्मीद कोई।
क्योंकि जमाना सदा ही बेदर्द होता है ॥
अगर मिटाना हो दर्द तो एक दर्द और ले लो।
हर दर्द का इलाज बस यही होता है ॥
-रमा द्विवेदी जी
बहुत बढिया रचना....
ReplyDeleteकिसी ने ये भी कहा है
कुछ गीत तो दुनिया की खातिर सुर ताल में गाये जाते हैं
कछ गीत (दर्द) मगर तन्हाई में, खुद को भी सुनाये जाते हैं
ये दर्द ही मेरा मित्र और मेरा साथी है,
ReplyDeleteसबने छोड़ा मझधार, बस दर्द ही मेरा साथी है।
yah dard hi toh hai jo dil mein kuch tadap kuch aag si jaga jaata hai ....bahut sundar rachna ,,
आह, ये दर्द!
ReplyDeleteइस आह को क्यों चाहिए एक उम्र असर होने तक?
इस आह को नहीं चाहिए कोई उम्र असर होने तक।
दर्द नशा है इस मदिरा का
ReplyDeleteविगत स्मृतियाँ साक़ी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो
आए मेरी मधुशाला.
बच्चन जी की पंक्तियाँ याद आ गईं. बहुत सुंदर.
अनामदास
Sir Bahut khoobsurat pryas hain..
ReplyDeleteashish
ashishjaipuri.blogspot.com
इतनी सारी चीजों को खोने के बाद मिला हुआ दर्द तो कितना बेशकीमती होगा , कवि को उस दर्द में जो आनन्द निहित आनन्द की तलाश करनी चाहिये।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना।
ReplyDelete-पीयूष
दर्द ! तुम्हारा आभारी हूँ
ReplyDeleteतुम न होते तो जीवन में
है उल्लास कौन कह पाता
एक पपीहा पीहू पीहू कहता
फिर थक कर सो जाता
लेकिन मेरे अतिथि, तुम्हारे
कदमों का चुम्बन पाते ही
मेरे मन की अँगनाई इक
निर्धन की जागीर बन गई
दर्द ठसक से हममें रहता है.
ReplyDeleteहमें ही खाता है, हमें ही रुलाता हैं.
हमसे गीत गवाता है.
नचाता है.
इसके फन्दे से जितना जल्दी हो, निकलिये.
यह साथी है - यह गफ़लत मत पालिये.
इस असुर के संग की आदत मत डालिये.
दर्द हमें ही खाता है
ReplyDeleteहमें ही रुलाता है
हममें ठसक से रहता है
बेगारी कराता है
गीत गवाता है
जाने क्या रिश्ता-नाता है
खुशी चाहे जरा सी हो - पकड़ लीजिये
न हो तो ईजाद कर लीजिये
इस गम का साथ न कीजिये.
आपकी ये कविता पढ़ कर मुझे अपनी पसंदीदा कविता की ये पंक्तियाँ याद आ गईं ।
ReplyDeleteओ उदासी की किरण भटकी हुई क्या कह रही तू
धुँधलके के पार निस्सार सी क्यूँ बह रही तू
प्रीत का कोई वचन है
नित निभाना प्रणय प्रण है
नयन में सपना जगा है
दर्द भी लगता सगा है
Get disentangled from sorrow as early as possible. Take it from me, Dard is the asur (demon) which lives in you, eats you and makes you invent fine poetry in its praise.
ReplyDeleteInvent happiness if it is not there. Cling to whatever little quantity it is in. Sing in the praise of happiness - a flower, a child, anything. Keep distance from Dard!
'दर्द' को परिभाषित करती एक बहुत ही उम्दा कविता, और सब लोगों की टिप्पणी देखकर मुझे भी ये कहना है--
ReplyDeleteदर्द होता है, फिर भी नही कराहते हो!
आदमी हो, क्यूँ हैवान होना चाह्ते हो?
कहते हो कि कुछ भी नही चाहिये तुम्हे!
आदमी हो, क्यूँ भगवान होना चाह्ते हो?
The tears that never were cried,
ReplyDeleteCan heal our lives if we pause.
But if we recover our stride,
In sadness we'll live with our flaws.
Abhi
कविता में पीड़ा है।
ReplyDeletesunder aur bhavpurn kavita ke liye badhai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबेहतरीन कविता, ye दर्द ही है जो अंत तक यारी निभाता है..
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