Thursday, March 22, 2007

यादें .............एक कविता

यादें
यादें तो मन्द पवन झोंकों सी हैं
जैसे हों ठंडी मादक ये पुरवाइ
यादों को न कोई रोक सका है
ये तो हैं बैरन बिल्कुल हरजाई ।

कभी ये आती लेकर संग अपने
एक मधुर सी मुस्कान अधर पर
कभी ये ही ले आती हैं बरबस
कुछ ओस की सी बूँद पलक पर ।

तोड़ा भी है इसने मन को
कुछ भीगी सी आद्र आहों से
जोड़ा भी इसने ही टूटे मन को
कुछ मीठी भूली बिसरी बातों से ।

इनमें ही फिर बँध जाती हूँ
प्रियतम की बाँहों के घेरे में
इनमें ही तो लौट बाँध लेती हूँ
उन्हें अपने झीने से आँचल में ।

ये ही तो वे हैं जो ला डाल देती
गोद प्यारी नन्ही बिटिया को
ये ही तो लौटा लाती हैं फिर से
मेरे और उसके बीते बचपन को ।

कुछ सिमटी सी कुछ लिपटी सी
यादें ही तो विरहा के गीतों में हैं
कुछ खट्टी किन्तु कुछ मीठी सी
ये तो प्रिय की हर धड़कन में हैं ।

इनकी ही तो चौखट पर जा हम
भीने मन अपना शीश झुकाते हैं
इनके ही आँगन में जा प्रेम पुष्प
अर्पित कर स्मृति दीप जलाते हैं ।

घुघूती बासूती

10 comments:

  1. Anonymous7:59 pm

    वैसे तो कवीताएं मेरी समझ से बाहर हैं, शुक्र है कि आपने मेरी समझ मे आने वाली ये कवीता लिखी :-)

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  2. Anonymous8:18 pm

    ये ही तो वे हैं जो ला डाल देती
    गोद प्यारी नन्ही बिटिया को
    ये ही तो लौटा लाती हैं फिर से
    मेरे और उसके बीते बचपन को ।

    यादों की इतनी सुदंर अभिव्यक्ति, छू लेने वाली कविता है।
    घुघूती बासूतीजी आपके प्रश्नों के उत्तर पर हैं, कृपया जाँच कर परिणाम घोषित कर दें।

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  3. एक खूबसूरत कविता के लिये बधाई!!

    यादों को न कोई रोक सका है
    ये तो हैं बैरन बिल्कुल हरजाई ।

    -बहुत खूब!!

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  4. Anonymous9:23 pm

    Someone created man out of mud, at least we can turn the null of life into something precious , even for a short while...what we have ,is memories . sweet and sour ...tenderness of spiral thoughts and suddenly we get a thread, what we lived :)

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  5. Nice one..
    Ek sunder prastuti..kabhi kabhi inhi yaadon ke sahaare aadami apni puri jindgi akele gujaar deta hae bina kisi shikayat ke.,

    badhayee.

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  6. Ghughootee jee,
    Maine bhee aapke pooche prashno ke Uttar likhe hain -- Kripya Jaanch kijiyega.
    Dhanyawaad !
    http://antarman-antarman.blogspot.com/2007/03/blog-post_1582.html

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  7. कभी ये ही ले आती हैं बरबस
    कुछ ओस की सी बूँद पलक पर ।

    सुंदर भाव लिये है आपकी कविता...बधाई ..

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  8. भोर की पालकी बैठ कर जिस तरह, इक सुनहरी किरण पूर्व में आ गई
    सुन के आवाज़ इक मोर की पेड़ से, श्यामवर्णी घटा नभ में लहरा गई
    जिस तरह सुरमई ओढ़नी ओढ़ कर साँझ आई प्रतीची की देहरी सजी,
    चाँदनी रात को पाँव में बाँध कर, याद तेरी मुझे आज फिर आ गई

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  9. धन्यवाद शुएब जी,अतुल जी, उड़न तश्तरी जी, अभीजीत जी,मोहिन्दर जी, लावण्या जी, रीतेश जी,व राकेश जी।
    घुघूती बासूती

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  10. कुछ सिमटी सी कुछ लिपटी सी
    यादें ही तो विरहा के गीतों में हैं
    कुछ खट्टी किन्तु कुछ मीठी सी
    ये तो प्रिय की हर धड़कन में हैं ।

    bahut khoob ..sach mein yaade hi jeene ko khubsuart bana deti hai
    bahut accha laga aapka yah likha hua ..

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