तुम सच नहीं हो सकते
तुम सच कैसे हो सकते हो
मैं स्वप्न देख रही थी
तुम चुपके से
मेरे स्वप्न से निकल कर
मेरे संसार में आ गए
आए ही नहीं तुम
मेरे संसार में छा गए।
क्यों, यह ना तुमने बतलाया
ना मैंने पूछा
बस, सच यही है
कि तुम मेरी कल्पनाओं
को अपनी कूची से भरते गए
भरते गए, भरते गए
तब तक.
जब तक मैंने पूछा नहीँ कि
तुम कौन हो, कहाँ से आए हो
क्यों आए हो।
फिर तुमने बताया कि तुम
मेरी कल्पनाओं की उड़ान हो
तुम ही हो वह
जो मुझे पँख देता है
मेरी कल्पना को उड़ान देता है
मेरे चित्रों को रंग देता है।
मैं मंत्रमुग्ध सपनों के इस कलाकार
और उसकी कूची को देखती रही
समय समय पर अपने मनमाने रंग
चित्रों में भरने की जिद करती गई
उसने रंग भरे मेरे कहने पर
किन्तु उन रंगों में वह शेड
अपने ही मन के भरता रहा।
अब हाल यह हो गया है
रंग मेरे अपने हैं किन्तु
शेड उसके हैं
मनमानी मेरी है
किन्तु जिद उसकी है
जीवन मेरा है किन्तु
जिजीविषा उसकी है।
जीती मैं हूँ
थोड़ा मरता वह है
मरती मैं हूँ
जीवन्त वह हो जाता है
रोती मैं हूँ
गीली आँख उसकी है
सोती मैं हूँ
स्वप्न वह देखता है
ओ मेरे सपनों के व्यक्ति
कह तो दो ना यह
केवल एक सपना है,
मुझे प्रतीक्षा है जागने की
उसे प्रतीक्षा है मेरे सोने की।
घुघूती बासूती
तुम सच कैसे हो सकते हो
मैं स्वप्न देख रही थी
तुम चुपके से
मेरे स्वप्न से निकल कर
मेरे संसार में आ गए
आए ही नहीं तुम
मेरे संसार में छा गए।
क्यों, यह ना तुमने बतलाया
ना मैंने पूछा
बस, सच यही है
कि तुम मेरी कल्पनाओं
को अपनी कूची से भरते गए
भरते गए, भरते गए
तब तक.
जब तक मैंने पूछा नहीँ कि
तुम कौन हो, कहाँ से आए हो
क्यों आए हो।
फिर तुमने बताया कि तुम
मेरी कल्पनाओं की उड़ान हो
तुम ही हो वह
जो मुझे पँख देता है
मेरी कल्पना को उड़ान देता है
मेरे चित्रों को रंग देता है।
मैं मंत्रमुग्ध सपनों के इस कलाकार
और उसकी कूची को देखती रही
समय समय पर अपने मनमाने रंग
चित्रों में भरने की जिद करती गई
उसने रंग भरे मेरे कहने पर
किन्तु उन रंगों में वह शेड
अपने ही मन के भरता रहा।
अब हाल यह हो गया है
रंग मेरे अपने हैं किन्तु
शेड उसके हैं
मनमानी मेरी है
किन्तु जिद उसकी है
जीवन मेरा है किन्तु
जिजीविषा उसकी है।
जीती मैं हूँ
थोड़ा मरता वह है
मरती मैं हूँ
जीवन्त वह हो जाता है
रोती मैं हूँ
गीली आँख उसकी है
सोती मैं हूँ
स्वप्न वह देखता है
ओ मेरे सपनों के व्यक्ति
कह तो दो ना यह
केवल एक सपना है,
मुझे प्रतीक्षा है जागने की
उसे प्रतीक्षा है मेरे सोने की।
घुघूती बासूती
किसी की जाग किसी का स्वप्न!!
ReplyDeleteसुंदर रचना!
जागने और सोने का यह कैसा खेल है!! नैराश्य भरी अनुभूति क्यों?
ReplyDeleteबहुत मजबूत रचना.
ReplyDeleteसुन्दर सपना के साथ एक मजबूत रचना
ReplyDeleteआपके कल्पनाओं की उड़ान तो मास्टर पीस होती ही है
ReplyDeleteहार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (11-04-2015) को "जब पहुँचे मझधार में टूट गयी पतवार" {चर्चा - 1944} पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जिसे दिल ने अपना मान लिया उसे दर्द तो होता है ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..
स्वप्न में सब कुछ संभव है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत !
ReplyDeleteकितना झूठा स्वप्न है न
ReplyDeleteस्वप्न तो स्वप्न ही है.झूठा हो या सच्चा, देखते समय तो सच्ची अनुभूतियाँ ही होती हैं.स्वप्न झूठा हो सकता है अनुभूति नहीं.
Deleteसुन्दर 👌👌👌
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