आज माँ को नब्बेवाँ साल लगा है। उनकी पसन्द के व्यन्जन बनाए हैं। उन्हें पता नहीं कि क्या क्या। थोड़ा सरप्राइज जो करना है। आज वे बच्ची हैं, मैं हूँ माँ। परसों रसोई में थी जब उनकी पुकार सुनाई दी। मैं उनके पास गई, पूछा कुछ चाहिए माँ? वे बोलीं नहीं। फिर बुलाया क्यों था? वे बोलीं, नहीं बुलाया नहीं था, मैं तो केवल घुघूति घुघूती बोल रही थी। वही तो बुलाना होता है माँ। वे न जाने क्या सोचती हुई मुझे देखने लगीं।
बड़ी बिटिया व जवाँई आए हुए थे। आने से पहले ही बार बार फोन पर कह चुके थे कि आपलोग नाटक आदि के टिकट खरीद लो, हम नानी के पास रहेंगे आप बाहर हो आना। हम बच्चों के पास भी रहना चाहते थे सो उनकी राय नहीं मानी और उनके साथ ही समय बिताया। वे चाहते थे कि मैं कुछ आराम कर लूँ, या कम भागदौड़ करूँ। सो नानी के लिए दूध, नाश्ता, खाना आदि रसोई से उनके कमरे तक ले जाते। उन्हें दवा देते। उनके पास बैठते भी।
माँ को अपनी नातिन व उसके पति के साथ मजा तो बहुत आ रहा था। बेटी की बेटी, प्यारे जवाँई का जवाँई साथ थे तो उन्हें मजा क्यों न आता? वे उनके साथ सूर्यास्त देखतीं। जितने दिन भी बच्चे यहाँ रहे वे नानी के साथ नियम से सूर्यास्त देखते। किन्तु एक समस्या थी। क्योंकि खाना आदि देने वे जा रहे थे और मेरा ध्यान भी बच्चों में बँटा हुआ था अतः वे मुझे कम देख पातीं। और वे परेशान हो जातीं। बच्चों से कहतीं, घुघूती को भेजो।
बिटिया हँसती, आकर मुझे बुलाती। बोलती कि आपकी बेबी आपको याद कर रही है। कहती कि बच्चा कितना ही मौसी, मौसा, दीदी, जीजा से खेल ले, गप्प मार ले किन्तु उसे माँ की तो याद आएगी ही! अन्त में तो वह यही कहेगा कि माँ /मम्मी चाहिए, मुझे मेरी माँ चाहिए। तब आप उसे बहला नहीं सकते। कहती कि माँ अब आप नानी की माँ बन गई हो।
यह बिल्कुल सच है। मैं कामवाली से सहायता लेना चाहूँ, उससे उनका काम करवाऊँ तो वे उसे मेरे पास भेजती हैं कहकर कि मेरी बेटी को बुला लाओ। जाने पर चाहे यही पूछें कि मेरे पैर तकिए पर ठीक से हैं न? तकिए पर न रखने से या नीचे लटकाकर बैठने से वे सूज जाते हैं। पट्टा ठीक बँधा है ना (एक बार गिरने के बाद से रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के बाद से उन्हें यह पहनना पड़ता है। ) या फिर रात को चादर ओढ़ाने को, अब मुझे सुला दो कहने को। जिस माँ ने आपको बड़ा किया जब वे चादर का भार अपने हाथों न उठा पाएँ और आपको चादर उन्हें ओढ़ानी पड़े, दिन रात ऐसा करो, वैसा मत करो कहना पड़े तो भूमिका उलट जाती है, बेटी माँ बन जाती है, माँ बेटी बन जाती है।
वे फटाफट उपन्यास खत्म करती जाती हैं। मैं उन्हें कहती हूँ कि दोपहर के खाने तक केवल समाचार पत्र पढ़िए। जब यह कहती हूँ तो लगता है कि बेटियों को टोक रही होऊँ। वे उपन्यास रख देती हैं। कुछ देर बाद जाती हूँ तो फिर उन्हें उपन्यास पढ़ता पाती हूँ। मुझे कम्बल के अन्दर टॉर्च के उजाले में, खिड़की पर बैठ चन्दमा की किरणों के प्रकाश में कहानियाँ, उपन्यास पढ़ती अपनी बेटियाँ याद आती हैं। वे बत्ती बुझा मुझे मूर्ख बना छिपछिपकर पढ़ती थीं। मैं उन्हें वापिस सुला या बत्ती जलाकर प्रसंग खत्म कर सोने को कह छिपछिपकर मुस्कराती थी। दी भी तो पीलिया, टॉयफॉइड होने पर डॉक्टर के मना करने पर बिस्तर के नीचे पढ़ने की सामग्री पत्रिका, उपन्यास रख छिपछिपकर पढ़ती थीं। माँ को भी तो मैं बचपन से कहती सुनती आई हूँ कि रोटी किसके साथ खाऊँ? सुनने वाला सोचे कि दाल सब्जी खत्म हो गई जबकि खत्म केवल पुस्तक हुई होती थी। बेटियाँ भी कुछ पॉपकॉर्न के दाने या एक टुकड़ा चॉकलेट का खाने के लिए भी तो पहले कोई पुस्तक वैसे ही ढूँढती थीं जैसे कोई दंतहीन अपने नकली दाँत। आज उनकी नानी को भी उनकी ही तरह ही टोकती, सुलाती हूँ। यह सब देख कोई भी सहज ही आनुवांशिकी के प्रताप को मानेगा ही!
प्रकृति हमें माँ युवावस्था में बनाती है। अपवाद छोड़ दें तो अधिक से अधिक चालीस की उम्र तक। सो मेरी उम्र तक आते आते बच्चे स्वावलम्बी हो जाते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर माँ बनना थकान व उलझन भरा तो है ही साथ ही साथ मजेदार भी। यह अनुभव कभी माथे पर शिकन लाता है तो कभी होंठों पर मुस्कान! और हाँ, साथ में भाई व अन्य उन सबको विशेषकर बहुओं को जो वृद्धों का ध्यान रखती हैं मन ही मन एक सलाम!
घुघूती बासूती
बुजुर्ग भी बच्चों समान ही होते हैं । पहले मां बच्चे का ध्यान रखती है , फिर बच्चों को मां का ध्यान रखना पड़ता है । यही जीवन चक्र है । लेकिन मात पिता क़ी सेवा करना हमारा परम धर्म है । आपको बहुत बधाई और मां को जन्मदिन क़ी शुभकामनायें ।
ReplyDeleteसलाम से सहमत !
ReplyDeleteमाताजी को उनके जन्म दिवस पर चरण स्पर्श, दूर से ही सही.
ReplyDeleteमाँ को प्रणाम ,और उनकी इस माँ को भी !
ReplyDeleteमाँ को प्रणाम और जन्मदिवस की उन्हें ढेरों बधाई...!
ReplyDeleteआप सबका आभार और मैं अभी उन्हें आप सबकी टिप्पणियाँ और अपना लेख पढकर सुनती हूँ.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
जब तक मां-बाप रहते हैं तब तक हमेशा सुरक्षित होने का अहसास रहता है और लगता है कि अरे अभी तो हम बच्चे हैं. अमूल्य निधि हैं मां-बाप. बधाई.
ReplyDeleteआपका लेख पढ़कर कुछ मन भीज गया, माँ को जन्मवार बहुत बहुत मुबारक !
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी सी पोस्ट...
ReplyDeleteमुझे याद है..आपने मेरी एक किस्तों वाली कहानी का प्रिंट आउट निकाल कर माँ को पढ़ने के लिए दिया था..और मैने कहा था...,'शायद उन्हें पसंद ना आए..कॉलेज स्टुडेंट की थीम है'
तब आपने कहा था.."अरे, मेरी माँ हर तरह की कहानियाँ पढ़ती हैं..और बहुत एन्जॉय करती हैं...'..अब जब आपके टोकने पर भी फ़टाफ़ट उपन्यास ख़त्म करती जाती हैं..तो पता चलता है ..कितनी रूचि है उनकी पढ़ने में....:)
माँ को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं
शुभकामनाएं और बधाई। भावनाओं से भरा लेख..
ReplyDeleteआपका ममत्व पूरी पोस्ट में शुरु से आखिर तक ज्हलक रहा है।'ईदगाह' में चिमटा पा जाने के बाद बूढी अमीना की आंख भर आती है ,हामिद को गले लगाती है और तब प्रेमचन्द बताते हैं कि रोल कैसे परस्पर बदल गया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट! आपकी मां जी को जन्मदिन और अच्छे स्वास्थ्य के लिये मंगलकामनायें।
ReplyDeleteजी भर आया.................
ReplyDeleteशायद माँ के विषय में कुछ भी लिखा हो पढ़ कर बेटियों का जी भर ही आता है..............
माँ को अनंत शुभकामनाएँ और ढेर सा प्यार.............
और आपको भी......आप उन्हें इतना प्यार जो दे रही हैं....
सादर
अनु
माँ को मेरा प्रणाम कहिएगा और साथ साथ जन्मदिन की बहुत बहुत बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें भी !
ReplyDeleteमन भीग आया यह पोस्ट पढ़ कर :)
ReplyDeleteमैं छोटी थी तो माँ से कहती थी अक्सर "ममी, जब मैं बड़ी हो जाऊंगी और आप छोटी हो जोगी तब यह और तब वह ..... " क्या जानती थी की सच ही ऐसा हो जाता है | आप खुशकिस्मत हैं जो अपनी "बेटी" माँ की माँ बन पा रही हैं |
माँ को मेरा भी प्रणाम कहिएगा साथ साथ जन्मदिन की बहुत बहुत बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें भी दीजिएगा !
ReplyDeletemaan ko janmdin ki shubhkamnaye...aapka prem aur samrpan sarahneey hai..
ReplyDeleteमाँ को चरण स्पर्श, जन्मदिन के लिए हम सब की तरफ से हैप्पी बड्डे गा दीजिये और जो लिंक दे रहें हैं दिखा भी दीजियेगा...
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=osKLrBxqkuA&feature=related
ReplyDelete♥
~*~प्रथमतः पूज्य मां'जी को जन्मदिन की बधाइयां और शुभकामनाएं !~*~
आदरणीया घुघूती बासूती जी
प्रणाम है आपको और मां'जी को !
आपकी पोस्ट मुझे अपनी-सी लगी…
मेरी माताजी भी 80-82 वर्ष की हैं … … और बहुत सारी बातें मैं ज़्यादा अच्छी तरह समझ पाया हूं ।
मेरी मां को तो पढ़ना-लिखना भी नहीं आता … समझा जा सकता है कि उनका दिन कैसे कटता होगा …
लेकिन वे दिन में आठ-आठ बार याद रख कर अपनी दवा लेने के साथ-साथ लगातार टांके-तीबे ,
हाथ से पुराने कपड़ों की बिछाने की गद्दियां , थैले , बटुए और जाने क्या-क्या बनाती रहती हैं ।
(एक बार उन्होंने कामवाली/अपने(मां के)घुटनों की मालिश करने वाली को अपने हाथ से बनाए कुछ थैले और रुमाल दिए तो मेरी आंखें भर आईं …
मैंने उससे तुरंत वापस ले लिए … वो इनकी क़ीमत क्या जान सकती थी !!)
मेरी धर्मपत्नी की मदद के लिए कई बार सब्जियों को सुधारना , लोहे की घोड़ी के सहारे दासे पर बैठ कर अपने कपड़े धोने का काम भी जब-तब करती रहती हैं …
… और अब तो मेरी सवा दो साल की पोती के साथ खेलना-खिलाना भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा है । :)
आपका लेख पढ़ना बहुत अच्छा लगा … बुजुर्गों की आवश्यकताओं को समझने का सौभाग्य भी विरलों को ही मिलता है …
आपके प्रति मेरे मन में श्रद्धा भाव हैं…
बेटे-बहू की जगह …पता नहीं बेटी होने के बावजूद आपके जिम्मे मां'जी की सार-संभाल कैसे !?
हां, इस पोस्ट में माताजी का ताज़ा फोटो होता तो और भी अच्छा लगता …
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
आप खुशकिस्मत हैं कि वे आपके पास हैं ....
ReplyDeleteहम जी न सकेंगे दुनिया में
माँ जन्में कोख तुम्हारी से
जो दूध पिलाया बचपन में
यह शक्ति तुम्ही से पाई है
जबसे तेरा आंचल छूटा,हम हँसना अम्मा भूल गए
हम अब भी आंसू भरे तुझे, टकटकी लगाए बैठे हैं !
ईश्वर उन्हें दीर्घायु दे ...
माँ को प्रणाम !
ReplyDeleteवृद्धों को भी बच्चों जैसी आत्मीयता चाहिये, यदि हम याद रखेंगे तो हमारे बच्चे भी याद रखेंगे।
ReplyDeleteमां का जन्मदिन आपके सारे परिवार को शुभ हो ...घर में बड़े बुजुर्गों का रहना ....बरगद की छाया सा होता है सब गुलज़ार रहता है, किताबो से उनका प्यार बेहद मासूम सा लगा .... लगा गले लगा लूं ....
ReplyDeleteमाँ के जन्मदिन पर माँ से ही पाना है - उनका आशीर्वाद
ReplyDeleteमाताजी को सादर प्रणाम तथा उन्हे जन्मदिन की ढेर सारी शुभ कामनाएं...
ReplyDeleteVRIDHON KI ATMIYATA BANI RAHE YAHI JIVAN KA PRASAAD HAI.
ReplyDeleteराजेन्द्र स्वर्णकार जी, आपकी अपनत्व से भरी टिप्पणी के लिए आभार।
ReplyDeleteमेरी माँ भाई व मेरी दोनों की ही हैं। अपने मन से वे हम दोनों के पास जहाँ मन करे वहाँ रह लेती हैं। बराबरी का बिगुल मैं केवल यूँ ही नहीं बजाती। यह बराबरी माता पिता के मामले में भी मानती हूँ। माता पिता के साथ रहने से बेटियाँ क्यों वंचित हों?
आपकी माताजी भी स्वयं को व्यस्त रखने में लगी रहती हैं और इसीसे उनका स्वास्थ्य सही बना रहेगा। देखिए वे अपने को कितने कलात्मक कामों में उलझाए रखती हैं। उन्हें प्रणाम। माँ भी तीन चार साल पहले तक सैर को जाती थीं, अपना थोड़ा काम भी कर लेती थीं। किन्तु अब नहीं कर पातीं। बस वे चलती फिरती, पढ़ती रहें तो सब ठीक रहेगा।
घुघूती बासूती
माँ को प्रणाम और जन्मदिवस की उन्हें ढेरों बधाई...!
ReplyDeleteसर्वप्रथम मां को जन्मदिन की ढेरो बधाई। मुझसे जब भी कोई मेरी बहु के लिए पूछता है तो मैं कहती हूं कि यह मेरी मां है। क्योंकि हमारे बुढापे में यही हमें मां की तरह देखभाल करेगी।
ReplyDeleteमां की मां बनना कितना अनोखा अनुभव है.....पिता का पिता तो खैर आदमी कभी नहीं बना पाता....वैसे कहते भी हैं कि बाप तो बाप होता है.....पर मां का आंचल मिले तो हम अक्सर बच्चे ही बने रहते हैं..चाहे कितना भी बड़े हो लें..इस बीच में ऐसा अनोखा अनुभव तो अलग ही होता है। पढ़कर चेहरे पर मुस्कान खिल गई..आभार।
ReplyDeleteविनत नमन और हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसहस्त्रों वर्ष की आयु पाएं माता श्री
सुलभा-गिरीश बिल्लोरे
माँ जी को जन्म दिवस पर प्रणाम!
ReplyDeleteघुघूती जी,
ReplyDeleteआप माँ हैं और आपके पास माँ भी है.
सच में आप बहुत खुशकिस्मत हैं.
उम्र के इस पड़ाव तक माता पिता में से किसी एक का भी साथ मिलना मेरी नज़र में किस्मत की बात है.
ईश्वर से यही प्रार्थना करूँगा की आपकी ईजा अच्छे स्वास्थ्य के साथ शतायु हों ..
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ReplyDeleteHey mom !...Belated happy Birthday !
खट्टी-मीठी----मीठी-खट्टी---चरपरी और इस्पायसी (spicy) यादों को ताज़ा कर दिया इस भावुक करने वाले आलेख ने।
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शब्द नहीं
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