Friday, June 27, 2008

पानी

डूब रही हूँ गहरे काले पानी में
गहरा,काला,गंधाता,गंदला पानी
रोके हुए हूँ साँसों को
मृत सा कर दिया है चेतना को
पकड़ रही हूँ तिनकों सा सड़े पानी को
फिसल रहा है हाथों से तिनकों सा
वही गहरा,काला,गंधाता,गंदला पानी।


परन्तु इस दशा में भी प्रश्न
वही शत्रु प्रश्न आता है मन में
क्या डूबते हुए भी
क्या बिल्कुल मरते हुए भी
नाक में भरे होने पर पानी के
क्या सूँघा जा सकता है गंधाए हुए पानी को?


शायद हाँ,या शायद ना
परन्तु मेरी तो रग रग में
भर रही है जो यह गंध
उसे तो झुटला नहीं सकती मैं।

पानी जो जीवन है
पानी जो शीतल भी है
पानी जो मुझमें व तुममें भी है
क्यों वह ही जीवन देने की बजाय
गंधाने लगता है
डुबाने लगता है
सतरंगी या बेरंगी होने की बजाय
क्योंकर वह काला हो जाता है?


इसी पानी में तो था कभी नशा कितना
इसी पानी ने कभी निखारा था मुझे
इसी पानी में कभी निहारा था मैंने स्वयं का चेहरा
यही पानी आज क्यों है विष से बुझा?


डूब तो रही हूँ
परन्तु चाहूँगी पाना डूबने से पहले
अपने सारे प्रश्नों के पानी से उत्तर
वही पानी जो कभी कलकल कर गाता था गीत कई
वही पानी जो शीतलता से लुभाता था कभी
वही पानी जो नशे में अपने डुबाता था कभी
वही पानी जो छुअन से अपनी
इक कंपन सा दे जाता था
वही पानी जो निखारता था कभी
जिसमें देख स्वयं का प्रतिबिम्ब
कभी कितना था इतराया मैंने।


आज जाते जाते, डूबते उतराते
मुझे बता दे ओ पानी,
कहाँ छिपाया था तूने यह रूप अपना?
क्यों न दिखाया यह रूप तब जब
मोहित हो समाई मैं तेरे बाहुपाश में
या फिर आज भी छिपाए ही रहता
मैं यूँ ही जी लेती भ्रांतियों में
कुछ तो बता दे मुझे मेरे जाने से पहले
क्यों सिखाया तूने मुझे पीना तुझको
क्यों बुलाया तूने पहलू में मुझे अपने?


घुघूती बासूती

13 comments:

  1. राम राम आप कहा झाकने पहुच गई,किसने राय दी की आप भारतीय राजनीती मे झाके, इतनी ज्यादा गंदगी की अनूभूती तो कही और हो ही नही सकती जी , गिन्नीज बुक मे आये गंदे नाले मे भी नही जी, तुरंत रास्ता बदलिये , हमे आपकी सेहत की चिंता है :)

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  2. जो ठहरेगा वो तो सड़ांध मारेगा ही… चाहे पानी हो या ईश्वर। और जो बहकर भी काला पड़ रहा है उसका जवाब तो मनुष्य ही दे सकता है, पानी नहीं। जिसकी कारस्तानी, उसकी जवाबदेही।
    शुभम।

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  3. Anonymous4:59 pm

    पानी जो जीवन है
    पानी जो शीतल भी है
    पानी जो मुझमें व तुममें भी है
    क्यों वह ही जीवन देने की बजाय
    गंधाने लगता है
    डुबाने लगता है
    सतरंगी या बेरंगी होने की बजाय
    क्योंकर वह काला हो जाता है?

    sawal ke jawab nahi hamare paas,magar jo bhi prashna hai sab hi ke man ko satate hai,gahan ya gudh kahun,ek sarthak kavita ke liye badhai.

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  4. महेन जी से सहमत.. ठहरेगा वो तो सड़ांध मारेगा ही..
    आपकी लेखनी रही

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  5. बहता पानी निर्मला, पड़ा गंदिला होय !

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  6. Anonymous6:39 pm

    इसी पानी में तो था कभी नशा कितना
    इसी पानी ने कभी निखारा था मुझे
    इसी पानी में कभी निहारा था मैंने स्वयं का चेहरा
    यही पानी आज क्यों है विष से बुझा?
    bhut sundar paktiya.jari rhe.

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  7. डूब तो रही हूँ
    परन्तु चाहूँगी पाना डूबने से पहले
    अपने सारे प्रश्नों के पानी से उत्तर

    कुछ सवालों के जवाब मुश्किल हैं ..पानी चलता हुआ ही जीवन देता है अच्छे भाव लिखे हैं आपने इस रचना में

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  8. आज जाते जाते, डूबते उतराते
    मुझे बता दे ओ पानी,
    कहाँ छिपाया था तूने यह रूप अपना?
    क्यों न दिखाया यह रूप तब जब
    मोहित हो समाई मैं तेरे बाहुपाश में
    या फिर आज भी छिपाए ही रहता
    मैं यूँ ही जी लेती भ्रांतियों में
    कुछ तो बता दे मुझे मेरे जाने से पहले
    क्यों सिखाया तूने मुझे पीना तुझको
    क्यों बुलाया तूने पहलू में मुझे अपने?


    achha laga aapka ye pahlu bhi....

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  9. इसी पानी में तो था कभी नशा कितना
    इसी पानी ने कभी निखारा था मुझे

    सुंदर अभिव्यक्ति . .......धन्यवाद्

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  10. आपकी रचना सोचने के लिए विवश करती है। एक सार्थक कविता पढवाने के लिए शुक्रिया।

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  11. आज जाते जाते, डूबते उतराते
    मुझे बता दे ओ पानी,
    कहाँ छिपाया था तूने यह रूप अपना?
    क्यों न दिखाया यह रूप तब जब
    मोहित हो समाई मैं तेरे बाहुपाश में

    बहुत गहराई से लिखी गई नज़्म दिल को सोचने पर मजबूर करती है....बहुत सुंदर

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  12. इसी पानी में तो था कभी नशा कितना
    इसी पानी ने कभी निखारा था मुझे
    इसी पानी में कभी निहारा था मैंने स्वयं का चेहरा
    यही पानी आज क्यों है विष से बुझा?
    बहुत सुंदर कहा है आपने.. बहुत अच्छे

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  13. कविता तो बहुत सुंदर है पर क्या सच में प्रतीकों के माध्यम से राजनीति की गंदगी की तरफ़ इशारा है?

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