Thursday, June 26, 2008

पति पत्नी की लड़ाई में कोई क्या करे?

उसका फिर फोन आया। दो साल से आता ही रहता था। हर बार इधर उधर की बात करने के बाद केवल एक ही बात कहती थी, मैडम आपसे बात करनी है। हाँ करो ना, मैं सुन रही हूँ। सब ठीक तो है ना! हाँ ठीक है। मैं एक दिन आऊँगी आपके पास। फिर वही घुमा फिराकर स्कूल की बातें। सदा यह लगता रहता था कि कुछ कहना चाहती है। एक दिन घर आई भी तो तब जब मैं हाथ में ताला लिए दरवाजे से बाहर जा रही थी। कम्पनी के मेहमान चाय पर मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। घर आई मेहमान को जाने दूँ या कम्पनी में आए मेहमानों को प्रतीक्षा करवाऊँ? दोनों ही स्थितियां गलत थीं। फिर भी आओ अन्दर आओ कहकर पानी पूछा। क्या बात है? कैसे आना हुआ? देखो मुझे बाहर जाना है, फोन करके आतीं तो यह न होता। थोड़ी देर बात कर सकती हूँ। तभी गेस्ट हाउस से फोन आ गया। मेहमान खाने की मेज पर पहुँच मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं।


वह जानती है इन मेहमानों के महत्व को। सो बोली कोई बात नहीं, आप जाइए, मैं फिर आऊँगी। फिर भी मैंने कहा ,मैं कार मंगवा दूँ घर छुड़वाने को? मुझे लगता है तुम्हें कुछ आवश्यक बात करनी है। इन मेहमानों के जाते ही मुझे फोन करके बात करने आ जाना।


बात आई गई हो गई। वह फिर नहीं आई। फोन पर कभी कभी बातें होती रहीं। सदा लगता था कि वह कुछ कहना चाहती है। एक दो बार उसके घर भी गई। परन्तु सदा कोई ना कोई पड़ोसिन मुझे आया देख मिलने को पहुँच जाती। हमारे भी घर आइए कहकर खींचकर अपने घर भी ले जाती। जहाँ हम रहते हैं वहाँ के कुछ अलिखित नियम होते हैं। अपना व्यवहार सबसे समान रखना होता है। किसी विशेष व्यक्ति से मोह, प्रेम नहीं दिखा सकते। यदि एक के घर गए तो सबके घर जाना चाहिए। सो किसी के घर केवल सही अवसर पर ही जा सकते हैं, जैसे, किसी खुशी या दुख में, या किसी के बीमार होने पर। या फिर जब उसने कई लोगों को अपने घर बुलाया हो, कोई जन्मदिन, हल्दी कुमकुम या फिर भजन कीर्तन, कथा आदि के लिए। अन्यथा जब उसके पति की अगली पदोन्नति होगी तो उसका श्रेय उसके काम को ना मिलकर मित्रता को दिया जाएगा।


फिर दो तीन महीने पहले उसका फोन आया। उस बार मैंने स्वयं कहा कि देखो तुम कुछ कहना चाहती हो। हर बार नहीं कह पाती। इस बार कह ही दो। तब उसने बताया कि वह अपने पति से परेशान है। सुनता नहीं, झगड़ा करता है, आरोप लगाता है, हर समय लड़ने पर उतारू रहता है। बच्छी के सामने लड़ाई करता है। बच्ची उसकी बेहद कमजोर व बीमार सी रहती है। मैंने भी ध्यान दिया था कि वह कुम्हला गई है। अब कारण समझ आया। लड़ाई क्यों होती है पूछने पर उसने कहा कि कारण वह भी नहीं जानती। वह पूछती रहती है कि उसकी गल्ती क्या है परन्तु वह बताता नहीं। मैंने पूछा हाथ तो नहीं उठाता ना। तो वह बात गोल सी करती हुई बोली कि नहीं परन्तु खींचना, हाथ मरोड़ना, धक्का आदि देता है, कि उसकी बाँहों में नील पड़ जाते हैं। मुझे क्या करना चाहिए तो पता नहीं था। परन्तु पूछा कि साथ रहना चाहती हो या अलग हो जाना। तो बोली क्या करूँ समझ नहीं आता। मैंने पूछा घर में बात की है, अपने माता पिता व उसके माता पिता को बताया है तो वह बोली हाँ। क्या वे लोग तुम्हारी सहायता करेंगे, पास रखेंगे पूछने पर बोली माता पिता रखेंगे। मैं क्या कहूँ समझ नहीं आ रहा था। उससे कहा कि हाथ मत उठाने दो। रोक लिया करो। कह दो कि हाथ उठा तो तुम कानूनी कार्यवाही करोगी। नौकरी मत छोड़ना। आगे की जो तुम पढ़ाई कर रही हो वह जारी रखना। लोगों से मिलती रहो, क्लब आओ, अपना व बेटी का ध्यान रखो, झगड़े से बचो। जिन कारणों से झगड़ा होता है उन कारणों को हटाने क कोशिश करो। बेटी के सामने झगड़ें तो बोलना कि बाद में बहस करना, बच्ची के सामने नहीं।


कल फिर फोन आया। वह गर्भवती है। दुर्घटना हुई है। वह ससुराल व मायके गई थी। वहीं पता चला। वहाँ सबने गर्भ गिराने से रोक लिया। यहाँ होती तो कुछ कर पाती। अभी भी एक माह तक और यह किया जा सकता है। वह बोली कि वहाँ भी लड़ाई होती थी। तलाक देने को कह रहा था। माता पिता ने पहले तो भेजने से मना किया परन्तु ऐसा कुछ नहीं होगा व तलाक की बात गुस्से में कही कहकर उसने वापिस बुला लिया। वह बोली कि मैं खाना बनाती हूँ और वह खाना नहीं खाता, बाहर खा आता है। मैंने कहा बाहर खाता है तो खाए। तुम स्वयं खाओ व बच्ची को खिलाओ। हाथ मत उठाने दो। तलाक की बात अच्छे से कर लो। वह अपना निर्णय ले ले। यदि तलाक की बात करनी है तो बच्चे को संसार में लाने को मना करो। यदि मारपीट करना चाहे तो घर से बाहर चली जाओ। ताकि बात सब तक पहुँच सके और फिर कोई कार्यवाही की जा सके। वह कहती है कि उसकी कोई दीदी वकील है सो मैंने कहा उससे ही सलाह करो व पति की उससे बात करवाओ। मैंने घरेलू हिंसा कानून के बारे में भी उसे दीदी से बात करने को कहा। परन्तु यह सब तो तब की बात है जब कोई विवाह तोड़ने का मन बना चुका हौ। जबर्दस्ती तो कानून का भय दिखाकर कोई किसी के साथ जीवन नहीं निर्वाह कर सकता।


अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे में कोई क्या कर सकता है। ध्यान रहे मैं समाजसेविका नहीं हूँ। न ही कानून जानती हूँ। जब तक वह खुलकर न कहे और पति को यह ना बता दे कि उसने मुझसे बात की है तब तक उसके पति से इस विषय पर बात नहीं कर सकती। मेरा कोई अधिकार नहीं है। यदि वे घर से बाहर कोई तमाशा नहीं करें तो मेनेजमेंट भी कुछ नहीं कह सकता क्योंकि यह उनका निजी मामला है। सबसे बड़ी बात यह है कि मैंने केवल उसका पक्ष सुना है। उसके पति का अपना पक्ष होगा जो मैं नहीं जानती। स्त्री है, दुखी है अतः मुझे भी दुख है, परन्तु बिना पति की बात जाने उसे अपने मन में कसूरवार भी घोषित नहीं कर सकती। बाहर से देखने में वह भला मानस दिखता है व उसका सबसे अच्छा व्यवहार है। परन्तु कोई व्यक्ति बाहर के जीवन में क्या है और अपने परिवार, विशेषकर पति /पत्नी से कैसा व्यवहार करता है यह कोई नहीं जान सकता। यह बात केवल भुक्तभोगी ही जान सकता है।


असमंजस में हूँ।


घुघूती बासूती

13 comments:

  1. Anonymous6:01 pm

    aap bilkul sahi soch rhi hai. dono ki baton ko sunkar hi koi hal nikala ja sakta hai.

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  2. ठीक कह रही हैं, आप !

    मेरी स्व० दादीजी इस मसले पर एक उक्ति कहा करती थीं, कि
    ... .. .. ... .. ....... ....भदेस भोजपुरी की ठेठ गालियों से
    सराबोर इस लोकोक्ति को तो यहाँ संपादित कर, चाह करके भी
    नहीं प्रकाशित किया जा सकता ।

    सच कह रही हैं !
    मैं भी असमंजस में हूँ !

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  3. दुबई में ही एक छात्रा की माँ जो सालों से बैंक में कार्यरत हैं... उनकी भी यही कहानी है ....लेकिन वे मानती हैं कि असफल पति को शायद मन ही मन वे स्वीकार नही कर पाती.हालाँकि लव मैरिज़ है.उत्तरी और दक्षिण भारत की दम्पति है... गाली गलौच और झगड़ॆ के कारण बेटी पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है लेकिन अलग होने की बात सोच भी नही सकती...यह सुन कर मै भी असमंजस मे हूँ ..

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  4. घरेलू हिंसा हर जगह एक लाइलाज रोग है ओर शायद इसका सबसे ज्यादा बोझ एक नारी को उठाना पड़ता है...शादी निभाने की भारतीय संस्क्रति ,बच्चो की लिए सोचना ...परिवार ...मइके में तिरस्कार ...मैंने कितने शराबी पतियों को देखा है जिनके कारण उनकी पत्नियों का जीवन नर्क बना रहता है.....कई बार मेरे पास पढ़ी लिखी अपने पति से भी ज्यादा सुशील,सुंदर महिलाए आती है ओर मर पीट के निशान को झूठ बोलती है की गिर गई है.....दुःख होता है.....एक बार एक गरीब महिला बोली...पति डंडे से मरता है ..उसकी गोद में ६ महीने का बच्चा था,क्या कहूँ ?

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  5. जो भुगते वही इस दर्द को जाने ..इलाज इसका है भी सच बात तो दोनों ही जाने

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  6. कुछ भी कहना मुश्किल है जी।

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  7. यहाँ तो झगड़ा भी अभी तक गर्भ में है और फ़िर भी बात काफ़ी आगे निकल चुकी है। उन देवी जी को बच्चे को दुनियाँ में लाने से पहले इस पार या उस पार होने का निर्णय कर लेना चाहिये… जबतक समस्या और निर्णय निजी हैं तबतक तो सुप्रीम कोर्ट भी कुछ नहीं कर सकती।

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  8. मैं भी असमंजस में ही हूँ।

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  9. मैं भी असमंजस में हु लेकिन बहुत ज्यादा नही.... क्यों उस समय का इन्तेज़ार किया जाए जो दुखद और बुरा हो.. उससे पहले का इलाज जरुर थोड़ा अधिकारमाय वाला ना हो लेकिन.... उसके पति से बात की जा सकती है... बिना ये कहे की उसकी पत्नी ने ये बात बताये हैं... आपको ऐसा महसूस हुआ.. बस ऐसा कुछ कर के.... सबसे बड़ी चीज है इस असमंजस से निकलना.....

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  10. भुक्तभोगी ही इस तरह की पीड़ा समझ सकता है...किंतु ऐसी स्तिथि में सबसे बड़ा फ़र्ज़ घरवालों का बनता है, खासकर लड़की के माता पिता का....अपनी जाई बेटी को झूटी इज्ज़त के लिए या समाज के डर से , भोगने के लिए छोड़ देना या फिर आगे बढ़कर उसे मानसिक मुक्ति प्रदान करना....हम और आप सिर्फ़ दुःख व्यक्त कर सकते हैं ,क्योंकि हमारी वो सुनेगी क्यों ?सहारा तो माँ-बाप को ही आगे बढ़कर देना होगा...इसीसे असमंजस की स्तिथि भी सुलझेगी....और बच्चों को ऐसे परिवेश में रखना जहाँ दोनों माता-पिता तो साथ रहते हैं किंतु हवा इतनी तनावपूर्ण और दुखदायी हो ,ये भी नयासंगत नहीं...तो फिर बेटी की किस खुशी के लिए ऐसे पुरूष के साथ रहा जाएँ...बेटी के मन में भी पुरूष की जो छवि अंकित हो रही है और माँ की घुटन को कम करने की या समझने की जो स्तिथि बन रही है , वो क्या कम डरावनी है ?........

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  11. काश कन्या के माता पिता और ये दोनोँ मिलकर हल निकाल पायेँ -
    दुख होता है ऐसी घटनाओँ के बारे मेँ सुनकर !
    - लावण्या

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  12. इलाज है पर मुशकिल है मैरिज कांउसलर की जरूरत है, पर पति कभी भी इसके लिए तैयार न होगा, ऐसी हालत में औरत को अकेले मैरिज कांउसलर से सलाह लेनी चाहिए, एक बार नहीं कई बार , सबसे पहले उसे अपने मन की बात समझना पड़ेगी, सिर्फ़ समाज बुरा मानता है या लोग क्या कहेगे ऐसा सोच कर पति के साथ रहना ठीक नहीं होगा। आर्थिक असुरक्षा का भी प्रशन होगा, नहीं तो किसी समाज सेवी संस्था जैसे महिला मुक्ति संघ का सहारा लेना होगा, बच्ची अगर होस्टल भेजने लायक है तो होस्टल भेज देना चाहिए, पति को ऑफ़िस में कोई कुंठा का सामना करना पड़ता है क्या? फ़ैकटरी में सोशल वेलफ़ैअर डिपार्टमेंट का सहारा लिया जा सकता है।

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  13. घरेलू हिंसा एक ऐसी स्थिति है जिसके बारे में कहीं भी बताने के पहले एक स्त्री हज़ार बार सोचती है, क्योंकि अक्सर इल्जाम उसी पर लगता है, या नसीहत उसी को दी जाती है...पुरूष इस बारे में बात तक नहीं करना चाहता. सोचने की बात है की भीषण मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहते हुए एक औरत किस तरह से घर में रह सकती है...और इस समस्या का समाधान निकालना बड़ा मुश्किल है. मेरे ख्याल से पहली ही बार जब ओई पुरूष हाथ उठाये विरोध करना चाहिए ताकि वह दूसरी बार ऐसे करने को सोच भी न सके क्योंकि एक बार उसे हाथ उठाने की आदत पड़ जाए तो फ़िर मामला बहुत मुश्किल हो जाता है.

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