Monday, May 19, 2008

'क्या अगले साल मौसी को भूल जाओगी ?'

उस वर्ष उसकी दीदी की मृत्यु हो गई थी । वह बहुत परेशान, हताश व अकेला महसूस करती । उसे सोचों में खोया देख उसकी ६ वर्ष की व ३ वर्ष की बेटियाँ उसे उदासी से बाहर निकालने की कोशिश करतीं । बड़ी को तो पता था कि माँ को मौसी की याद आ रही है । वह मृत्यु को कुछ कुछ समझ पा रही थी ।

बड़ी ने छोटी बहना को भी समझा दिया था कि 'जैसे मैं तुम्हारी दीदी हूँ, तुम्हें प्यार करती हूँ, तुम्हारा ध्यान रखती हूँ, वैसे ही मौसी भी माँ की दीदी थीं । वे मर गई हैं । मर जाना माने ऐसे सो जाना कि कभी नहीं उठ पाना ।'

बहन पूछती 'यदि उन्हें हिलाएँ तो, यदि उनके ऊपर पानी डालें तो, यदि उन्हें गुदगुदी करें तो ?' दीदी समझाती, 'नहीं वे कभी नहीं उठेंगी ।'

यूँ ही बच्चियाँ भी माँ के साथ रहकर, उसकी पीड़ा को समझकर, महसूस कर मृत्यु को थोड़ा थोड़ा समझने लगीं थीं।

दिन गुजरते गए और बड़ी बिटिया का जन्मदिन आने वाला था। उस वर्ष माँ को अपने जन्मदिन की कोई भी तैयारी ना करते देख या उत्साह से मनाने की योजनाएँ ना बनाते देख उसका माथा ठनका। पहले तो सोचा कि माँ और बाबा शायद कोई विस्मयकारी गुप्त योजना बना रहे हैं। परन्तु फिर लगा कि ऐसा होता तो कुछ भनक तो उसे भी लगती। वह माँ से इस विषय में पूछने ही वाली थी कि एक दिन माँ ने बहुत उदास होकर उससे पूछा, 'गुड़िया, यदि इस वर्ष हम तुम्हारा जन्मदिन नहीं मनाएँ तो तुम्हें बहुत बुरा तो नहीं लगेगा ?' कुछ पल माँ को ध्यान से देखकर उसने पूछा,'क्यों माँ? क्यों नहीं मनाएँगे?' माँ बोली, 'बेटा, तुम जानती हो ना मौसी नहीं रहीं। एक वर्ष तक हम कोई त्यौहार नहीं मनाएँगे। कोई पार्टी नहीं करेंगे।'

'क्यों माँ ? क्या इसलिए कि तुम उदास हो ?' माँ ने कहा, 'हाँ, इसीलिए।' बिटिया ने पूछा,'तो क्या हम अब कभी पार्टी नहीं करेंगे ?' माँ बोली,'ना बेटा, ऐसा नहीं है। हम अगले साल से पार्टी भी करेंगे त्यौहार भी मनाएँगे।'

'क्यों माँ, क्या अगले साल आप मौसी को भूल जाओगी ? क्या अगले साल आप उनको यादकर दुखी नहीं होओगी ?'

बिटिया का यह गहरा प्रश्न सुन माँ को अपनी मूर्खता पर आश्चर्य व बिटिया के जीवन दर्शन से भरे प्रश्न पर गर्व हुआ। वह बोली,'तुम ठीक कह रही हो। अगले साल क्या मैं मौसी को कभी भी नहीं भूलूँगी। परन्तु हर वर्ष तुम दोनों बच्चों के जन्मदिन व अन्य त्यौहार भी मनाती रहूँगी। इस वर्ष भी मनाऊँगी। हम उन्हें भी उनके हर जन्मदिन पर याद करते रहेंगे।'

इससे पहले कि वह बिटिया को चूमती, बिटिया ही माँ के गाल को चूमकर 'माँ रोना मत, हम तुम्हारा ध्यान रखेंगे' कहकर बहन का हाथ पकड़ खेलने चली गई।

घुघूती बासूती

18 comments:

  1. बहुत हृदयस्पर्शी कहानी. मन भर आया.

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  2. जीवन अक्षुण्ण है, वह कुंड में भरे पानी की तरह है जिस में निकलने के पहले ही उस से अधिक पानी किसी स्रोत से आता रहता है। जीवन का यह स्रोत जीवन ही है। जीवन कभी नहीं मरता, चलता रहता है, निरंतर......

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  3. हंसी और दुख के पल अगर एक साथ आए तो दुःख को याद करते हुए हमे खुशी के बाहों में जाना चाहिए.

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  4. बहुत ही सह्जता से एक गम्भीर सवाल को छेडता है ये आलेख.

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  5. हमारे स्वजन,
    हमारी स्मृत्तियोँ मेँ
    हमेशा जीवित रहते हैँ ..
    - लावण्या

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  6. Anonymous11:45 am

    बच्चों से सीखना है , बहुत कुछ ।

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  7. सहजता से ही बच्ची ने कितनी सटीक बात कही।

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  8. बच्चों के सवाल कई बार हमें सोचने को मजबूर कर देते हैं. ......बहुत खूब !

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  9. Anonymous2:09 pm

    मर्मस्पर्शी !

    वर्ड्सवर्थ ने तो लिखा भी है : 'चाइल्ड इज़ द फ़ादर ऑफ़ मैन' . बच्चे कई बार ऐसी सीख दे जाते हैं कि हमारी समूची सोच बदलने लगती है .

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  10. संवेदनशील विषय को कथा के माध्यम से बड़ी खूबसूरती से उठाया है आपने. कठोरतम क्षणों में भी जीवन आशा का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, बच्चे कभी कभी बडी सीख दे जाते हैं.

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  11. वाकई अदभुत अंदाज से आपने अपनी बात कही है....ओर बचपन ही आज की दुनिया मे मासूम रह गया है खरा ओर सच्चा ....

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  12. बहुत मर्मस्पर्शी कहानी है और सहजता के साथ एक सन्देश छोड़ती है....बहुत बढ़िया.

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  13. बहुत खूबसूरती और सादगी से आपने अपनी बात कही है, कई बार बच्चे हम से ऐसी बात कह जाते हैं कि दिल बस सोच में पड़ जाता है कि हमारी संवेदनशीलता कौन ले गया, समय, हालात या हम ने ख़ुद ही उसे कहीं खो दिया,....बहुत खूब...

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  14. Anonymous10:59 am

    बच्चे कभी कभी बहुत पते की बात कह जाते हैं और हमारे लिये छोड जाते हैं एक प्रश्न-चिन्ह.

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  15. sachmuch bahoot sunder aur marmsparshi rachna hai, bahoot kuch sochne ko majboor kar deti hai.

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  16. हाँ हम बडे हो जाते है,बच्चे हमेशा अच्छे रहते है। अपने अन्दर एक बच्चा जिदां रखना चाहिए।मर्मस्पर्शी है।

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  17. सचमुच कई बार बच्चे हमारी आँखें खोल देते हैं। इस हृदयस्पर्शी रचना का ऑडियो http://radioplaybackindia.blogspot.com/2015/01/kya-agle-saal-by-ghughuti-basuti.html पर उपलब्ध है।

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