Saturday, May 31, 2008

113/100 ?

११३/१०० ? हाँ भई, यही अंक दिए हैं दसवीं के एक छात्र ने अपने आप को ! हुआ यूँ कि वे अपना गुजराती का पर्चा समाप्त कर चुके थे। शायद दोबारा भी पढ़ चुके थे। अभी भी आधा घंटा बचा हुआ था। अब इस समय का क्या उपयोग करें, सोच रहे थे। अचानक उनके मस्तिष्क में यह विचार कौंधा कि अध्यापकों को प्रश्नपत्र जाँचने में कैसा लगता होगा। सो उन्होंने सोचा क्यों ना स्वयं जाँचकर इसे महसूस किया जाए। सो वे जुट गए अपना ही पर्चा जाँचने में। समय का यह सदुपयोग कर वे अपना पर्चा जमा करवाकर चले गए।


परीक्षकों ने भी पर्चे जाँचे। परन्तु इस पहले से जाँचे हुए पर्चे पर ध्यान नहीं गया। जब सुपरवाइज़र की बारी अंक जोड़ने की आई तो हमारे मेहनती बालक के अंक ११३ बन रहे थे। दोबारा जोड़ा गया फिर भी वही मुर्गे की तीन टाँग ! अब पाँच परीक्षकों को बुलाया गया। सबने कहा ऐसे अंक तो उन्होंने नहीं दिए। तब जाकर उनके मस्तिष्क में बल्ब जला कि शायद यह बालक का स्वयं का काम हो। उन्हें बुलाया गया। उन्होंने स्वयं का पर्चा जाँचना स्वीकार किया और बताया कि उन्होंने तो ऊब से निपटने के लिए ऐसा किया था।


खैर, कारण जो भी रहा हो, फिलहाल तो वे २०११ तक परीक्षा में नहीं बैठ सकते। वैसे बहुत से छात्र शायद चाहेंगे कि ऐसे बालक को पर्चे जाँचने के काम में ही लगा दिए जाए।


घुघूती बासूती

11 comments:

  1. बेचारा .... अति उत्साह का मारा....

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  2. बताईये बेचारे ने तो उनका काम ही हल्का किया था. :)

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  3. अपने आप को जांचने में हम सभी इतने ही उदार होते हैं। बालक को क्या दोष दें!

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  4. तुलसी या संसार में...भांति भांति के लोग...

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  5. दी गई सजा हमारी शिक्छा व्यवस्थता की असंवेदनशीलता का परिचय है. क्या जो कुछ बच्चे ने बाल मनौविग्यान के चल्ते किया वह सचमुच ऎसा हि गुनाह कि उससे एक बच्चे को पढने से वंचित कर दिया जाये. २०११ का मतलब वंचित कर देना ही है. हमारी शिक्छा व्यवस्थता में अनुशासन के नाम पर सजा का ही रूप दिखायी देता, अनुशासन की प्रेरणा का कोई संवेदनशील पाठ पढाया ही नही जाता. सिर्फ़ और सिर्फ़ क्रूरता ही हम बच्चों के भीतर भर रहे होते हैं.

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  6. ओह्ह्ह्ह यह तो लेने के देने पड़ गए ..समय का सदुपयोग करना भारी पड़ा ...

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  7. क्या खूब! वैसे काश, बेचारा 13 अंक कम देता खूद को... :)

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  8. आहा बालक तरक्की करेगा जीवन मे ......

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  9. हंस तो सकता नही इस बात पर क्योंकि बेचारे ने नासमझी में अपना ही तीन साल खराब कर लिया।
    पर कोई बीच का रास्ता निकालना था शिक्षा बोर्ड को।

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  10. डॉक्टर साब से पूरी तरह सहमत हूँ.
    तरक्की की प्रचुर संभावनाएं है.
    नेता भी बन सकता हैं.
    अच्छा और रोचक प्रसंग प्रस्तुत किया.

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  11. waah...bahut hi badhiya baalak se milwaya aapne. guni hai bachcha...

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