Saturday, March 08, 2008

शेर, चरवाहे भारवाड़ और गोफेण



रास्ते में दो तीन लोग अकेले जाते दिखे । एक टॉर्च तक उनके हाथ में नहीं था । मैं अभी भी शेरों के बारे में सोच रही थी । वैसे ऐसा नहीं कि हम जंगली जानवरों से नहीं मिले हों । हम भी सौराष्ट्रा की ही एक और जगह में 'दीपड़े'को कुछ मीटर की दूरी से जाते हुए देख चुके हैं । दीपड़ा क्या होता है व उस घटना के विषय में और कभी ।
चलिये अपने ड्राइवर का नाम बता देते हैं । जब बात ड्राइवरों की निकली है तो अलग अलग जगह के अलग अलग ड्राइवरों की कभी ना कभी तो होगी ही । सो ये वाले हैं भ. सिंह । उम्र में काफी कम सो हम बहुत बार बेटा ही कहते हैं । कल हम जानकारी प्राप्त करने के मूड में थे । सो उससे पूछा..
"तुम कह रहे थे कि यदि गाँव में शेर आ जा तो गाय बैंस को अन्दर बान्ध देते हो । तुम्हें पता कैसे चलता है कि शेर आया है ?"
"गाय भैंसे असहज हो जाती हैं । बैचेन होकर यहाँ से वहाँ खूँटे से बन्धी चलने लगती हैं । यदि कोई शेर को देख ले तो शोर मचाकर अड़ोसी पड़ोसी को भी सावधान कर देता है ।"
"यदि दिन का समय हो और वे बाहर चर रह हों तो ?"
"भैंस तो अधिक डरती नहीं । यदि अधिक भैंसें हों तो एक घेरा बना लेती हैं । गायें भी उस घेरे के अन्दर सुरक्षित रहती हैं । शेर भैंस पर सामने से हमला नहीं करता । पीछे से ही करता है । सो वे मुकाबला करती हैं । गाय बेवकूफ व डरपोक होती है । वह भागने लगती हैं, इसीलिये मारी जाती हैं ।"
"
ये जो भेड़ चराने वाले होते हैं ये क्या कहीं भी डेरा डाल देते हैं ?"
"हाँ ।"
"रात भर बाहर खुले में सोने में उन्हें डर नहीं लगता ? अपनी भेड़ों व बकरियों की रक्षा कैसे करते हैं ?
वे दिन भर अकेले घूमते भले ही हैं परन्तु रात को अपने परिवार के पास चले जाते हैं ।"
"कैसे? कहाँ ?"
"वे अपने परिवार के साथ एक जगह से दूसरी जगह डेरा डालते हैं । आमतौर पर यदि किसी का खेत खाली हो तो वहाँ डेरा डाल देते हैं । वहीं उनका परिवार रुकता है और वे दिन भर भेड़ बकरियों को चराते हैं। रात को वे अपने डेरे में चले जाते हैं।"
"वहाँ सुरक्षा केसे होती है ?"
"वे चार लकड़ियाँ धरती पर गाड़ देते हैं । इनसे जार (मछली पकड़ने का जाल जैसा ) व रस्सी बाँध कर घेरा बनाते हें । भेड़ बकरियों को उसी घेरे में रात को बन्द कर देते हैं । पुरुष लोग इसके बाहर दो या अधिक कोनों में सोते हैं । आग भी जलाए रखते हैं । ये अधिकतर गाँवों में रुकते हैं तो शेर आदि कम ही आते हें ।"
"यदि आ जाए तो?"
"ये अपने पास गोफेण रखते हैं । गोफेण से ये पत्थर इतनी तेज गति से फेंक सकते हैं कि वह गोली की तरह जाता है । लगता भी बहुत जोर से है । सो आमतौर पर इन्हें जंगली जानवरों से कोई भय नहीं रहता । शेर आता है तो भेड़ बकरियाँ और ये दूर से ही बास पहचान जाते हैं और गोफेण से पत्थर फेंककर भगा देते हैं । इनका निशाना भी पक्का होता है ।( गोफेण का चित्र मेंने अपने महाराज भ. भाई से पूछकर बनाया है। यह एक कपड़ा होता है जिसकी दो तरफ बिल्कुल बराबर लम्बी रस्सी बन्धी होती है। एक तरफ की रस्सी के अन्त में एक गोल लूप बना होता है जिसके अन्दर सबसे छोटी उँगली जाती है। दूसरी तरफ की रस्सी के अन्त में गाँठ होती है । कपड़े में एक पत्थर रखते हैं । फिर लूप के अन्दर छोटी उँगली डालते हैं और गाँठ को भी उसी हाथ में पकड़ लेते हैं । रस्सी को जोर जोर से सिर के ऊपर घुमाया जाता है । फिर सही समय पर सही दिशा देख गाँठ को हाथ से छोड़ देते हैं। पत्थर छूटकर गोली की तरह जाता है।
किसान भी अपनी फसल की रखवाली में गोफेण का उपयोग करते हैं । चिड़िया भगाने के लिये वे पत्थर की जगह मिट्टी के ढेले का प्रयोग करते हें । मिट्टी का ढेला टूटकर बड़े क्षेत्र में तेजी से बरसता है और चिड़ियों को उड़ा देता है । इसे चला तो कोई भी सकता है परन्तु अनाड़ी से पत्थर किसी भी दिशा में चले जाता है क्योंकि उसे छोड़ने का समय एकदम सही होना चाहिये । यहाँ फ़िज़िक्स भी आ गया । )"

"क्या तुम भी इन चरवाहों को अपने खेत पर ठहराते हो?"
"हाँ । जब फसल कट जाती है तो सभी लोग इन्हें ठहराना पसन्द करते हैं । हम तो रुपये और बाजरा देकर इन्हें अपने खेत पर बुलाते हैं ।"
"क्यों?"
"जहाँ भेड़ बकरियाँ ठहरती हैं वहा खाद बहुत हो जाती है ।"
"कितना पैसा देते हो ?"
"एक रात रुकने का तीन सौ रुपये और पाँच किलो बाजरा तो देना ही होता है ।"
"वाह!"
"तभी तो जब फसल कटती है तो ये गाँवों में आ जाते हैं । इनके परिवार घोड़ों,गधों और ऊँटों पर सामान लादकर साथ चलते हैं ।"
घर आ गया था सो बात यहीं खत्म हो गई। आज सुबह भ. भाई से और पूछताछ की । जो जानकारी मिली वह यह है.....
""भैड़ का तो ऊन मिलता है, बकरियाँ क्यों पालते हैं ?"
भेड़ व बकरी का दूध बेच देते हैं । बकरों को कसाई को बेच देते हैं । आजकल तो बकरे के बहुत पैसे मिलते हैं ।"
"क्या वे मीट खाते हैं ?"
"ये लोग रबाड़ी या भारवाड़ जाति के होते हें । पहले तो शाकाहारी होते थे परन्तु आजकल कई लोग मीट खाने लगे हैं "।
सोचती हूँ कि नयी जानकारी मिल गई । गोफेण के बारे में सोचती हूँ व फ़िज़िक्स के बारे में सोचती हूँ । घुमाने पर क्या सेन्ट्री फ्यूगल फोर्स बना ? पत्थर सीधे टैन्जेन्ट पर जाता है । क्या यही सब शब्द थे ? मुझे किताब में बना चित्र भी याद आ रहा है । बहुत वर्ष हो गए पढ़ाई छूटे हुए । फिर भारवाड़ भी तो बिना पढ़े फ़िज़िक्स का इतना बढ़िया उपयोग कर रहे हैं । भैंस की वीरता से उसके प्रति आदर बढ़ गया । यह भी ध्यान आया कि लोग अपनी बिटिया के बारे में अच्छा बोलना चाहते थे तो कहते थे वह तो गाय है । हम्म, गाय सी सीधी ! तभी तो संसार के शेर उसे पचा जाते हैं । गाय से तो भैंस होना ही बेहतर है । मुकाबला तो करती है वह !
घुघूती बासूती

5 comments:

  1. बेटी-बहू नहीं चाहिए, गाय-भैस जैसी। चहिए गोफेण वाली। शेर पर सवा सेर।

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  2. प्रकृति और इंसान के बदलते रिश्तों की कहानी इतनी रवानगी से अभी तक नही पढ़ी थी। कल और आज की पोस्ट पढ़ने के बाद लगा कि आपका संस्मरण अद्भुत है। भेड़ों को खेतों में बैठाने का चलन हमारे उत्तर प्रदेश में भी चला करता था। लेकिन रासायनिक खादों के आने के बाद सारा कुछ खत्म हो गया। ज़रूरत है हमारे ग्रामीण अंचलों में फैली इस जीवन पद्धति को नया रूप देकर सहेजने की। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों को लूटने से फुरसत मिले तब तो...

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  3. हमारा ग्रामीण जन जीवन आपस में कितनी मजबूती से जुडा से हैं इसकी बेहतरीन तस्वीर आपके पोस्ट से मिल रही है। इसको बडे ही आसान शब्दों में आपने बयान कर दिया है।

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  4. सही!!
    पन ये दिनेश जी की बात मेरे घर वाले सुन लेंगे तो गड़बड़ हो जाएगी!!
    दिनेश जी क्यों मरवा रहे हैं ;)

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  5. एक ही पोस्ट में कई गायों को फ़िजिक्स पढ़ा दी, अब जी गाय तो होती है सीधी सादी, इत्ती फ़िजिक्स तो पल्ले न पड़ी पर ये समझ गये कि भैसों से दोस्ती करना लाभदायक होता है। सो कर लेगें।

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