Friday, January 11, 2008

खिलखिलाता प्यार

मेरा प्यार खिलखिलाता है जाड़ों की धूप सा ,
तेरा प्यार सहमा हुआ है जाड़ों की बर्फ सा ,
मेरा प्यार तो लिपटा हुआ है अमरलता सा ,
ना डरता है बस मानता है तुझे अपना सा।


लेती हूँ जीवन रस तुझसे,
लेती हूँ मैं सहारा तुझसे,
फिर भी तू है घबराया मुझसे,
न कहूँगी प्यार नहीं है तुझसे ।


मैं बनती बादल तेरे आँगन में बरसती हूँ,
मैं बन बिजली तेरे आकाश में थिरकती हूँ,
बन पवन मैं कभी भी तेरे बाल उड़ाती हूँ,
फिर बन सपना मैं तेरे मन को सहलाती हूँ ।


तू सागर है शक्तिमान असीम अनोखा ,
मैं मीठी नदिया जिसे मानव ने रोका,
तू टकरा तट से ढूँढे मिलने का मौका,
मैं तोड़ बाँध आ जाती दे सबको धोखा ।


घुघूती बासूती

16 comments:

  1. बड़ा खूबसूरत है आपका प्‍यार

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  2. प्यार तो वैसे भी सुबह की ओस की तरह नाजुक-नरम होता है, तिस पर आपकी बेहतरीन कविता.. साधुवाद

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  3. मैं मीठी नदिया जिसे मानव ने रोका...
    एक कड़वे सच का आइना हैं ये पंक्तियां।

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  4. आपकी कविता प्यार के स्वरूप को दर्शाती हुई है।

    अति सुन्दर ।

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  5. बड़ी नाजुक सी बल खाती कविता है.

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  6. क्या बात है!
    सुंदर!

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  7. अच्‍छी कविता है.

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  8. आप के प्यार को सौ सलाम।

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  9. आपकी कविता की आखिरी दो पंक्तियां बहुत कुछ कहती हैं !! एक परिपक्व कविता पढवाने के लिए धन्यवाद !!

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  10. प्रेम का बहुत सुन्दर रूप

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  11. अच्छी बहुत अच्छी कविता.
    सुंदर भाव और सुंदर शब्द चित्रण.

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  12. Anonymous11:41 pm

    तू टकरा तट से ढूँढे मिलने का मौका,
    मैं तोड़ बाँध आ जाती दे सबको धोखा

    बढिया........

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