Tuesday, December 18, 2007

शादी किसकी है ?



परीक्षा का अन्तिम दिन था । अन्तिम प्रैक्टिकल देकर जब मैं निकली तो मेरे मित्र बिहार से मुझसे मिलने चन्डीगढ़ आए हुए थे । घूमते हुए उन्होंने पूछा " मुझसे शादी करोगी ? " मैंने हाँ कह दिया । अगले दिन मुझे घर के लिए निकलना था । रास्ते में दिल्ली आता था और वे दिल्ली के ही थे । सो उन्होंने मुझे ट्रेन पर चढ़ाया और स्वयं टैक्सी पकड़ दिल्ली पहुँच गए । टैक्सी घर के बाहर खड़ी की और घर में घुसते से ही सबको सूचना देते हुए बोले , " मैं शादी कर रहा हूँ । लड़की की ट्रेन दिल्ली स्टेशन पहुँचती ही होगी । ट्रेन एक घंटा रुकती है जिसे देखना है मेरे साथ जल्दी चले । " उनकी बहन, भाभी और एक मित्र दौड़ते भागते तैयार हुए और स्टेशन पहुँचे । लड़की देखी गई । मेरे मित्र को तो मेरे पूरे परिवार ने देख रखा था ।

जब उन्होंने इतना बड़ा धमाका किया था तो मैं क्यों पीछे रहती ! स्टेशन पर पिताजी को देखते से प्रणाम करते करते ही कह दिया कि मैं अमुक से शादी कर रही हूँ । पिताजी बोले विवाह का निर्णय क्या ऐसे लेते हैं ? मैंने कहा यदि पाँच वर्ष जानकर भी ना ले सकूँ तो शायद कभी भी ना ले सकूँ । खैर घर पहुँचे । माँ, भाई, भाभी तो मेरे खेमे में ही थे । सो कोई कठिनाई नहीं हुई । भाई की नई नौकरी थी । शहर अनजाना था । भाभी को पूर्ण आराम बताया गया था क्योंकि मैं बुआ बनने वाली थी । सो मैं पिताजी के साथ या कभी किसी पारिवारिक मित्र के साथ कभी शादी के कार्ड पसन्द करने जाती , कभी बरातियों को ठहराने को होटल । कभी माला वाले से बात होती कभी सजावट वालों से । कभी अकेली भी जाती । एक बार हम कार्ड पसन्द कर रहे थे तो दुकानदार ने चाय के लिए पूछा । मैंने कभी चाय पी नहीं थी । तो उसने कॉफी के लिए पूछा । मैंने फिर ना कहा । थोड़ी देर में पिताजी के लिए चाय और मेरे लिए एक कप दूध आ गया । गरम दूध पीना तो सजा लगता था । मैं मुँह बना रही थी , वह बोला कि आजकल के बच्चों को दूध पता नहीं क्यों इतना बुरा लगता है । मेरे हाथ से गरम दूध का प्याला लगभग छलक ही गया । फिर उसने पूछा "शादी किसकी है ?" मैंने कहा मेरी । उस बेचारे के हाथ से प्याला छलक गया ।
ऐसे ही मैं पिताजी के साथ होटल देखने गई । पसन्द भी आ गया । कमरे देखकर जब हम नीचे आए तो वही प्रश्न "शादी किसकी है ?" कभी कभी तो मन होता था कि एक बिल्ला लगा लूँ या प्लेकार्ड लेकर घूमूँ जिसमें लिखा हो " मेरी शादी" !

खैर , अब तो मैं कई बार किसी के पूछने से पहले ही यह बता दिया करती थी कि शादी मेरी है । समय बीतता गया और मेरी शादी भी हो गई । विदाई अगली शाम की थी । सो सारी रात मैं माँ से बात करती रही । सुबह उठी सिर धोया और रोज की तरह रोज के कपड़ों में तैयार हो गई । ससुराल वाले तो शाम को पूरा शहर घूम कर आ रहे थे । माँ भाभी के साथ लगीं थीं कि एक महिला आ गईं । बोलीं " मैं कल आ नहीं सकी । दुल्हन कहाँ है ? उसे यह छोटा सा उपहार देना है। " मैं समझ गई कि यह मुझे पहचानी नहीं हैं । मैंने कहा अभी भेजती हूँ । अन्दर गई, साड़ी पहनी , बिन्दी , चूड़ियाँ आदि पहन ली और उपहार लेने आ गई । वे बोली तुम्हारी छोटी बहन बिल्कुल तुम सी लगती है । उसे भी यूँ सजा दो तो दुल्हन लगेगी । मैंने कहा " वह तो है । बहन किसकी है ! " बाद में पता चला कि वे भाभी के पीछे मेरी छोटी बहन से अपने बेटे का रिश्ता करने को अड़ गईं थीं । वे बेचारी कहती ही रह गईं कि मेरी कोई छोटी बहन नहीं है ।


33 comments:

  1. अच्छा प्रसंग बताया आपने.
    प्रस्तुतिकरण बहुत ही सुंदर है.

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  2. बहुत दिलचस्प संस्मरण।

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  3. दिलचस्प प्रस्तुतिकरण

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  4. बढिया प्रसंग है।पढ़ कर अच्छा लगा।

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  5. मस्त!!!
    आप तो बस ऐसे ही यादों के जंगल में घूमते रहो, एक से एक संस्मरण समेटे बैठे हो।

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  6. पढ़ कर मजा आ गया। कोई तीस साल पहले मैं भी आप के जैसा ही था।

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  7. ये आपने धोखा दे दिया, वो तो कहिए कि हम तब तक पैदा न हुए होंगे वरना आपकी इन बिंदास स्‍मृतियों से लगता है कि ये टाईम स्‍पेस बीच में न आ गया होता तो हम भी कोशिश तो जरूर करते :))

    शुक्रिया अनुभव बॉंटने के लिए

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  8. काश की

    सबकी शादी इसी तरह हो

    मजा आ गया आपके इस दिलचस्‍प अंदाज का

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  9. काश की

    सबकी शादी इसी तरह हो

    मजा आ गया आपके इस दिलचस्‍प अंदाज का

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  10. आप धन्य हैं देवी

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  11. मज़ेदार

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  12. वाह क्या किस्सा सुनाया आपने ..बेबाकी और इतना प्यारा व्यक्तित्व साफ झलक रहा है --

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  13. गजब की ज़बरदस्त औरत हैं आप..! आप को पढ़कर बचपन में पढ़ी शिवानी की नायिकाओं की याद यूँ ही नहीं हो आती!

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  14. Anonymous4:59 pm

    YE SEB PADH KE MERE DIL ME LADDU PHOOT RAHE THE KI MERI SHADHI KAB HOGI :)
    BAHUT BADHIYA LIKHA AAPNE :)

    SHUAIB
    http://shuaib.in/chittha

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  15. बहुत भावनापूर्ण रचना
    दीपक भारतदीप

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  16. मजेदार... वाकई आप तो बहुत बोल्ड थीं। :)
    एक बाट और क्या तब के बच्चों को भी दूध पीना उतना ही बुरा लगता था?
    :) :)

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  17. चिट्ठाजगत में स्वजीवन पर कई लोग लिखते हैं एवं मैं उनको निश्चित पढता हूं क्योंकि उसके द्वारा मेरे चिट्ठापरिवार को समझने में बहुत मदद मिलती है. लेकिन यह लेख एकदम अलग है!

    यह वर्णन एकदम "क्लास्सिक" है एवं इसमें तथ्य, हास्य, वर्णन आदि का ऐसा मिलान हुआ है कि साल में इस तरह का सिर्फ एकाध लेख ही दिख पाता है. यदि मैं पुरस्कार बांट रहा होता तो इसे निश्चित ही पहले स्थान पर रखता.

    आपने लिखा:

    "। मेरे हाथ से गरम दूध का प्याला लगभग छलक ही गया । फिर उसने पूछा "शादी किसकी है ?" मैंने कहा मेरी । उस बेचारे के हाथ से प्याला छलक गया ।"

    दो वाक्यों में हास्य का गजब का पुट !!

    आपने लिखा:

    "बाद में पता चला कि वे भाभी के पीछे मेरी छोटी बहन से अपने बेटे का रिश्ता करने को अड़ गईं थीं । वे बेचारी कहती ही रह गईं कि मेरी कोई छोटी बहन नहीं है ।"

    जीवन के विरल अनुभव जहां एक बार और तथ्य एवं हास्य एक साथ जुड गये हैं.

    क्या अपने जीवन के बारे में या जीवन की घटनाओं के बारे में आकर्षक एवं पठनीय तरीके से लिखा जा सकता है. यदि किसी को शक हो तो इस लेख को पढ कर देखे.

    यदि किसी व्यक्ति की जीवनी को इस रीति से लिखा जाये तो अधिकतर पाठक एक बार में ही उसे गटक जायें.

    -- शास्त्री

    पुनश्च: मेरा आखिरी वाक्य आप की अगली संभावित कृति के लिये इशारा है!!

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  18. आप तो अपने पापा की बहुत प्यारी बेटी हैं....काश हर लड़की के साथ ऐसा होता.....आप तो किस्मत वाली हैं...बधाई

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  19. घुघूती जी
    आप को सलाम…अनूप जी की पोस्ट पर उनके अपनी पत्नी को मिलने के बारे में पढ़ कर मन बना था कि अपनी यादों को भी बता सकें पर सकुचा गये ये सोच कर कि पता नहीं ब्लोगर भाई इसे कैसे लें। अब आप की पोस्ट ने कुछ हिम्मत बंधा दी है। शायद हम कह सकें।

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  20. अच्‍छी कहानी बनाई. सच है क्‍या?

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  21. गजब अंदाज है बताने का और अद्भुत कथा है...

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  22. बहुत खूब....शादी का अन्दाज़ भी और उसे ब्याँ करने का भी...

    आपका नाम तो पहले भी कई बार पढा था ब्लॉगजगत में लेकिन आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आ रहा हूँ...

    अच्छा लगा यहाँ आ के...

    लगता है कि अब बार-बार आना ही पडेगा

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  23. मजा आ गया जी.

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  24. मजा आ गया जी.

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  25. दिलचस्प लगा आपका संस्मरण और प्रेरणादयक भी.आपके चिट्ठे पर आपके संस्मरण पडकर आपके व्यक्तितव से प्रभावित हूँ.

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  26. बहुत ही दिलचस्प लगा यह आपका लिखा हुआ ...बहुत अच्छे से आपने हमे ख़ुद अपनी यादो के साथ बाँध लिया ..:)

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  27. मेरे ब्‍लाग पर आने के लिए शुक्रिया

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  28. बिंदास अंदाज़ पर वारी जाऊँ

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  29. अंदाज ए बयां अच्‍छा है और मजा भी आया लेकिन यह है क्‍या? कहानी या आप बीती?

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  30. है तो आपबीती, परन्तु अब कहानी सी लगती है ।
    घुघूती बासूती

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  31. badhiya sansmaran...kaash aise hi meri shaadi bhi ho jaye.

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