Wednesday, December 12, 2007

मतदान

हमने भी मतदान दिया ।
एक जमाने से बताया जा रहा है मत दान करो, मत दान करो, परन्तु हम हैं कि दानवीर कर्ण की परम्परा पर चलते हुए दान प्राप्त करने वाले या हमारे मत रूपी दान के इच्छुक की पात्रता या योग्यता को ताक पर रख हर बार मत दान करके ही दम लेते हैं ।
जीवन में और कुछ दान किया हो या ना किया हो मत तो दान किया ही है । कभी भी कोई उम्मीदवार या दल ऐसा नहीं था कि वह अपनी योग्यता व अच्छाई के आधार पर हमारे मत का अधिकारी बनता । हर बार अजीब अजीब मूल्यों वाले दलों व थाली के बैंगन से उम्मीदवार हमें मिले ।
कभी कभी लगता है कि मतदान शब्द भारत की राजनीति को ही ध्यान में रखकर बनाया गया है । शायद यह शब्द बनाने वाले लोग जानते थे कि मत पाने वाले लोग अधिकतर सुयोग्य नहीं होंगे इसलिये हमें पहले से ही आगाह कर देते हैं कि मतदान =दान मत करो । परन्तु हम तो वही कुत्ते की पूँछ हैं, कभी सीधी नहीं होती । चाहे जितना मना कर लो हम किसी ना किसी अनजाने व्यक्ति को अपना मत दे ही आते हैं । आज मतदान करने निकलते समय ही हमें दो उम्मीदवारों का नाम पता चला । तीन और भी खड़े थे , उनका नाम पता नहीं है । अब न छूटने वाली स्याही से अपनी उंगली सुशोभित कर अपनी व समाज की दृष्टि में एक जिम्मेदार व सचेत नागरिक बन गई हूँ ।
अब ऊँट के मुँह में अपने मत रूपी जीरा डाल प्रतीक्षा है कि देखें ऊँट किस करवट बैठता है। हम यह भी जानते हैं कि जिस भी करवट बैठे कोई ना कोई नागरिक तो कीड़े मकोड़ों की तरह उनके भार के नीचे दब ही जाएँगे ।
घुघूती बासूती

3 comments:

  1. Did you know that there is a system in our constitution, as per the 1969 act, in section "49-O" that a person can go to the polling booth, confirm his identity, get his finger marked and convey the presiding election officer that he doesn't want to vote anyone!
    Yes such a feature is available, but obviously these seemingly notorious leaders have never disclosed it. This is called "49-O".
    यदि आप वोट नहीं डालना चाहें तो इस अधिकार का इस्‍तेमाल कर सकती हैं. क्‍या आपको इसकी जानकारी है?

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  2. Anonymous11:53 am

    एक जिम्मेदार नागरिक होना मुबारक हो.

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  3. ये दान तो मजबूरी मे हम भी करते है. शायद करने वाले अधिकतर करते ही होंगे.
    लेकिन इससे लाभ की कोई उम्मीद बेमानी है. वैसे भी हमारी भारतीय सभ्यता है कि दान के बदले देने वाले को कुछ भी आश नही रखनी चाहिए. सो उसी परम्परा का आप और हम सब पालन करते है. और करते रहेंगे.

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