tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post4105733476534460082..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: काकेश जी से विनती........काले कौओं का इन्तजाम कीजिए !ghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-31819338247036049482011-07-25T13:43:04.831+05:302011-07-25T13:43:04.831+05:30purane din yaad aa gaye ! thanks for letting those...purane din yaad aa gaye ! thanks for letting those old days come alive again !Jyoti Joshi Mitterhttps://www.blogger.com/profile/00088602036877610144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-44160556564636494962007-04-23T01:16:00.000+05:302007-04-23T01:16:00.000+05:30बहुत ही बढ़िया लिखा है. अच्छा लगा पढ़कर. देर से आ पा...बहुत ही बढ़िया लिखा है. अच्छा लगा पढ़कर. देर से आ पाया और अब तो राजा साहब भी लिख चुके हैं. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-36808813879789018772007-04-19T22:30:00.000+05:302007-04-19T22:30:00.000+05:30सुंदर प्रयास है…निश्चित ही एक पर्यावरणीय समस्या मु...सुंदर प्रयास है…निश्चित ही एक पर्यावरणीय समस्या मुख उठाए सामने दस्तक दे रही है और हम सारे अनभिज्ञ बने है…नई विचार का प्रेरणापरक लेख पढ्ने को मिला…।बधाई!!Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-48258359561829126812007-04-18T18:14:00.000+05:302007-04-18T18:14:00.000+05:30बहुत अच्छे सुंदर कविता है,..हम तो काले कौवो से बहु...बहुत अच्छे सुंदर कविता है,..हम तो काले कौवो से बहुत परेशान है,..काश वो आपकी पुकार सुनकर<BR/>जल्दी ही चले जाएं जहाँ सम्मान ना मिले वहाँ कौन रहना चाहता है,...<BR/>सुनीता(शानू)सुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-70850156885064931432007-04-18T14:45:00.000+05:302007-04-18T14:45:00.000+05:30बढ़िया रचना।लेकिन प्रियंकर जी से मैं सहमत हूं , जब ...बढ़िया रचना।<BR/>लेकिन प्रियंकर जी से मैं सहमत हूं , जब हम छोटे थे तो हमें सुबह या शाम कौव्वों का कलरव सुनाई देता था, इधर बरसों हो गए सुने हुए, अब तो ले देकर कहीं एक कौव्वा भी दिख जाए तो बहुत है। हमारे यहां की युनिवर्सिटी में एक शोध छात्र/छात्रा ने इस बारे में शोध भी किया थाSanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-75524800278999099522007-04-18T14:40:00.000+05:302007-04-18T14:40:00.000+05:30कविता में अपनी लेखनी कमजोर है वर्ना एक कविता गौरैय...कविता में अपनी लेखनी कमजोर है वर्ना एक कविता गौरैया पर जरूर बनती है. उसने हमें जनम से इतने बडे तक साथ दिया पर अब न जाने कहां गायब हो गयी है.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-14350982516361910082007-04-18T14:07:00.000+05:302007-04-18T14:07:00.000+05:30बचपन में जैसे ही कौआ घर के आंगन में काँव काँव करता...बचपन में जैसे ही कौआ घर के आंगन में काँव काँव करता हम किसी मेहमान के आने की प्रतीक्षा करने लग जाते.लेख अच्छा लगा .Poonam Misrahttps://www.blogger.com/profile/08526492616367277544noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-8658013262583426892007-04-18T12:01:00.000+05:302007-04-18T12:01:00.000+05:30आपका लेख पढकर मुझे लता जी का गाया ,हृदयनाथ मंगेशकर...आपका लेख पढकर मुझे लता जी का गाया ,हृदयनाथ मंगेशकर के निर्देशन में , ये भजन याद आ गया <BR/>उड जा रे कागा .....Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-40198448315801490272007-04-18T11:54:00.000+05:302007-04-18T11:54:00.000+05:30कौवा लोक संस्कृति से गहराई से जुड़ा पक्षी रहा है। ...कौवा लोक संस्कृति से गहराई से जुड़ा पक्षी रहा है। मिथिला की संस्कृति में भी कौवों से जुड़े पर्व और लोकगीत हैं। लेकिन पर्यावरण और पारिस्थितिकी में आए व्यतिक्रम के कारण कौवे तेजी से विलुप्त होते जा रहे हैं। <BR/><BR/>आपने इस पोस्ट और पैरोडी के माध्यम से कौवों को इतनी बेकली से याद किया, वे धन्य हो गए होंगे। मेरे ननिहाल में एक गृहस्थ साधु हुआ करते थे, नाम था काग बाबा। कौवे उनके कंधे या सिर पर विराजमान रहते। बाबा जहां जाते, कौवे हमेशा साथ रहते थे। मुझे बड़ा अजीब लगता कि कौवे जैसे कर्कश बोली वाले पक्षी से उनका इतना लगाव कैसे है। <BR/> <BR/>लेकिन अब समझ में आ रहा है कि कौवों का हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रहा है।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-78864210154864848852007-04-18T11:41:00.000+05:302007-04-18T11:41:00.000+05:30कुमाऊँ के काले कौओं की तरह पूर्वांचल में होली पर,'...कुमाऊँ के काले कौओं की तरह पूर्वांचल में होली पर,'सिरहाने से कागा जा भागा,मोरा सैयाँ अभागा ना जागा' गाया जाता था ।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-1252279281162986572007-04-18T11:37:00.000+05:302007-04-18T11:37:00.000+05:30कुछ कौवे मेरे शहर में भी भेज देना, यहाँ सालों से क...कुछ कौवे मेरे शहर में भी भेज देना, यहाँ सालों से काग महाराज के दर्शन नहीं हुएAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-14066583169164945212007-04-18T11:24:00.000+05:302007-04-18T11:24:00.000+05:30धन्य हैं काक महाराज! जिनकी इतनी प्रतीक्षा है. पैरो...धन्य हैं काक महाराज! जिनकी इतनी प्रतीक्षा है. पैरोडी-प्रार्थना तो कमाल की है.<BR/><BR/>पर यह सिर्फ़ हंसी की बात नहीं है आपने एक बहुत महत्वपूर्ण पर्यावरणीय समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है. कौवे और गिद्ध जैसे पक्षियों का न दिखना या कम होना आने वाले पर्यावरणीय संकट की ओर इशारा करते हैं. बायो-डायवर्सिटी -- जैव-विविधता -- को बचाये रखने का भी एक संदेश है . अब क्या कौवे 'सुभाषितानि' ( काक चेष्टा बको ध्यानम .....) और दोहों ( आदर दै दै बोलियत बायस बलि की बेर) , मिथकों ( जयंत ) और लोक-साहित्य में ही बचेंगे .<BR/><BR/>बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-75570820508982338512007-04-18T09:19:00.000+05:302007-04-18T09:19:00.000+05:30तनी उचर-अ-हो कागा हमार अंगना । भोजपुरी के बिदेसिया...तनी उचर-अ-हो कागा हमार अंगना । भोजपुरी के बिदेसिया शैली का यह गाना । अब न कौआ उड़ता है न मेहमान आते हैं । घुघुती जी कौओ को ले आइये । कहीं से भी । हमारा मन भी किसी मेहमान के आने की दस्तक के लिए इन कौओं को उड़ाने के लिए मचलता हैravishndtvhttps://www.blogger.com/profile/02492102662853444219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-79401617723514805732007-04-18T06:14:00.000+05:302007-04-18T06:14:00.000+05:30धन्यवाद ..पहले तो इसलिये कि आपने इस नाचीज को अपने ...धन्यवाद ..पहले तो इसलिये कि आपने इस नाचीज को अपने शीर्षक में जगह दी . और फिर विनती भी कर डाली ..आपको विनती नहीं आदेश देना है घुघुती जी .. आपको शायद मालूम नहीं कि हमारी (कौवा) बिरादरी में घुघुति को ज्यादा सम्मान की नजर से देखा जाता है .घुघुति ग्रे है और कौवा काला. अब ये तो नहीं मालूम की हम वहां कौओं को भिजवा पांएगे की नहीं ( क्योकि मुए कौवे मोदी जी से खफा हैं ) लेकिन हां उतरैणी की घुघुतिया जरूर मना लेंगे एक पोस्ट के माध्यम से.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-91892660991680982322007-04-18T05:09:00.000+05:302007-04-18T05:09:00.000+05:30जमाना बीत गये वो डमरू, वो चक्र, वो अनार, वो डायमंड...जमाना बीत गये वो डमरू, वो चक्र, वो अनार, वो डायमंड रूपी शकरपारे खाये हुए, मुद्दत हो गयी काले कौआ गाये हुए। आपने फिर से याद दिला दिया।Anonymousnoreply@blogger.com