tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post1334625761526443311..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: आओ अनुशासित करने के लिए बच्चों को दागें!ghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-81613115040143448492010-08-18T16:55:11.962+05:302010-08-18T16:55:11.962+05:30ये सारी ख़बरें पढ़, लगता है...अच्छा हुआ टी.वी. देखना...ये सारी ख़बरें पढ़, लगता है...अच्छा हुआ टी.वी. देखना बहुत कम कर दिया है...कैसा अमानवीय कृत्य है यह??...इन मासूम बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार?...लानत है उक्त महिला के साक्षर होने पर भी. उन्हें तो बर्खास्त ही कर देना चाहिए.ये सारे लोग सिर्फ अपनी कुंठाएं निकालते हैं और अपनी शक्ति के मद में चूर...ऐसे कृत्य कर जाते हैं.<br /><br />सही कहा आपने , बच्चों का तो स्वभाव ही है चंचल होना। जो बच्चा चुपचाप बैठा है वह या तो बीमार है या फिर विषादग्रस्त। अब हम उन्हें जब स्कूल में एक ही बेंच पर घंटों बैठे रहने को कहते हैं तो यह नदी के पानी को बहने से रोककर बाँधने सा है।rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-34222312480409268232010-08-18T13:54:39.582+05:302010-08-18T13:54:39.582+05:30मेरे पास यह कहने वाले अभिभावक आए हैं : ’यह शैतान ह...मेरे पास यह कहने वाले अभिभावक आए हैं : ’यह शैतान है खूब पीटिएगा”अफ़लातूनhttp://shaishav.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-91718556951058530572010-08-17T17:35:34.809+05:302010-08-17T17:35:34.809+05:30bahut shrmnak hai ye kritya..bahut shrmnak hai ye kritya..HBMediahttps://www.blogger.com/profile/04747085073618372025noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-41683705096864621922010-08-14T09:52:09.773+05:302010-08-14T09:52:09.773+05:30ये तो दरिन्दगी है मगर ये भी सत्य है कि न तो धैर्य ...ये तो दरिन्दगी है मगर ये भी सत्य है कि न तो धैर्य और सहन शीलता बच्चों मे रही है न ही अभिभावकों मे और न ही अध्यापकों मे। अच्छी पोस्ट के लिये बधाई।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-35731916370757901382010-08-14T09:15:37.230+05:302010-08-14T09:15:37.230+05:30केवल धैर्य की कमी के चलते यह सब होता है, घोर निंदन...केवल धैर्य की कमी के चलते यह सब होता है, घोर निंदनीय कृत्य ।<br /><br /><a href="http://kalptaru.blogspot.com/2010/08/cancer-killer-discovered-guyabano.html" rel="nofollow"> कैंसर के रोगियों के लिये गुयाबानो फ़ल किसी चमत्कार से कम नहीं (CANCER KILLER DISCOVERED Guyabano, The Soupsop Fruit)</a>विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-21593752405311808822010-08-13T23:24:10.004+05:302010-08-13T23:24:10.004+05:30सातवी कक्षा को वो दिन मुझे अभी तक याद हैं जब मेरे ...सातवी कक्षा को वो दिन मुझे अभी तक याद हैं जब मेरे अंग्रेजी के सर श्री अरोरा ने मेरी इतनी धुनाई की, कि मेरे गाल लाल हो गये, कान सूज गये!! सर पीटने के लिए पूरे स्कूल में जाने जाते थे!! कोई उनका विषय जानता हो या नही, ये जरुर जानता था कि वो पिटाई कितनी करते हैं! उस समय तो एक अन्य अध्यापक ने आकर भी उन्हें समझाया था!! <br />उनकी वो पिटाई मुझे आज भी बुरी लगती हैं, बच्चो को इतना नही मारना चहिये, पर अगले चार वर्षो में उनका प्रेम इतना बरसा कि मुझे लगता हैं वो मेरे सबसे अच्छे गुरु थे!!<br /><br />बच्चो की हलकी फुलकी पिटाई हो तो चलता हैं, पर उनके कोमल शरीर को दागना, उन पर दस्तर फेकना, उनको धुप में मुर्गा बनाना ये अत्याचार हैंYashwant Mehta "Yash"https://www.blogger.com/profile/02457881262571716972noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-60214895077224492212010-08-13T21:14:35.567+05:302010-08-13T21:14:35.567+05:30निन्दनीय के अतिरिक्त कोई शब्द नहीं है।निन्दनीय के अतिरिक्त कोई शब्द नहीं है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-49547553483964964482010-08-13T18:49:53.224+05:302010-08-13T18:49:53.224+05:30निंदनीय .....
कैसे कोई मासूम फूलो के साथ ऐसे बर्त...निंदनीय ..... <br />कैसे कोई मासूम फूलो के साथ ऐसे बर्ताव कर सकता है ?Coralhttps://www.blogger.com/profile/18360367288330292186noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-39190656817530625862010-08-13T14:49:44.319+05:302010-08-13T14:49:44.319+05:30एक कलाकार प्रवति के पिता को देखा था मैंने वो अपने ...एक कलाकार प्रवति के पिता को देखा था मैंने वो अपने घर की दीवारों को बहुत साफ सुथरा रखने के पक्ष में रहते थे उनके अपने बच्चे जब स्कूल जाने लगे तो वे दीवार्रोपर भी पेन्सिल से लिखने लगे जिससे उन्हें बहुत गुस्सा आता |एक दिन उन्होंने नुकीली पेन्सिल की नोक अपने ही बच्चे के नर्म गाल पर गड़ाई और लम्बी रेखा सी खिंची और कान उमेठते हुए कहा देखो तुम्हे दर्द होता है न ?ऐसे ही दीवार को भी दर्द होता है और वो गन्दी भी दिखती है तुम्हारे इस गाल की तरह |बच्चा भी रोया नहीं दुसरे दिन से आक्रोश में उसने कलर पेन्सिल भी चलाई दीवार पर |और तो और पेशे से इंजिनियर ऐसे पिता को ट्यूशन पढ़ने का शौक था |<br />शिक्षक बच्चो को हिंसक बनाते जा रहे है ? उनके साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे है ?क्या उनको शिक्षा देने का अधिकार है ?<br />ऐसे बहुत सारे सवालों पर prkash dalti sarthk postशोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-16716729097051208192010-08-13T14:17:42.522+05:302010-08-13T14:17:42.522+05:30निंदनीय - कुकृत्यनिंदनीय - कुकृत्यAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-60396639725572567162010-08-13T12:25:05.757+05:302010-08-13T12:25:05.757+05:30जी बच्चो के साथ ये स्कुल में हुआ तो सब ने जाना कुछ...जी बच्चो के साथ ये स्कुल में हुआ तो सब ने जाना कुछ माँ बाप भी बच्चो के साथ ऐसा ही करते है वो भी आज के समय में| जब मैंने इसे देख तो मेरे तो रोंगटे खड़े हो गये जब एक माँ और एक दुसरे बच्चे के पिता को मैंने बच्चे को माचिस कि तीली से डरते देखा मै ने पुछा ये क्या है तो मुझे बताया गया कि बच्चो को एक बार तीली से चटका (दाग) दो तो वो डर जाते है और जब आप कि बात ना माने तो बस तीली दिखाओ डर जाते है | ये सजा मुम्बई में काफी आम है माध्यम वर्गीय परिवारों में | समस्या ये है कि लोगों में धैर्य कि कमी है जो बच्चो के देखभाल के लिए सबसे आवश्यक है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-46617817873239935092010-08-13T00:36:02.303+05:302010-08-13T00:36:02.303+05:30मन खराब हो जाता है ऐसी खबरों को पढ कर या देख कर. ल...मन खराब हो जाता है ऐसी खबरों को पढ कर या देख कर. लेकिन केवल मन खराब हो जाने से क्या होगा? ऐसे क्रूरतम व्यक्तित्वों की मौजूदगी मिटाई नहीं जा सकती. ये अपनी उपस्थिति दर्ज़ करते रहते हैं समय-समय पर, और हम हर बार दुखी हो के रह जाते हैं. कितने विवश हैं हम?वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-28414823063439243182010-08-12T23:49:37.107+05:302010-08-12T23:49:37.107+05:30आमतौर पर अध्यापक इतने क्रूर नहीं होते इसलिए इसे अप...आमतौर पर अध्यापक इतने क्रूर नहीं होते इसलिए इसे अपवाद की तरह लेना चाहिए, पर दुःख इस बात का है कि ऐसे अपवाद बढते जा रहे हैं. इसका कारण शायद यही है कि स्कूल की अवधि बढ़ती जा रही है और अध्यापकों की ट्रेनिंग सही ढंग से नहीं होती, इसलिए वे हिंसा के बल पर बच्चों को कंट्रोल करना चाहते हैं.<br />मेरे ख्याल से अध्यापकों की ट्रेनिंग में उन्हें बाल-मनोविज्ञान ज़रूर पढ़ाना चाहिए क्योंकि सभी लोगों की सहज बुद्धि और व्यक्तित्व ऐसा नहीं होता कि वे खुद बच्चों से सही व्यवहार करना सीख जाएँ. <br />और इस प्रकार की हिंसक प्रवृत्ति वालों को हमेशा के लिए अध्यापन कार्य से वंचित कर देना चाहिए.<br />वील के बारे में मैं नहीं जानती थी. जानकर मन अजीब सा हो गया. कभी-कभी ना जानना (अज्ञान) सुखद होता है.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-52964172793721363222010-08-12T23:06:16.243+05:302010-08-12T23:06:16.243+05:30कुंठित और लुंठित दोनों ही प्रकार के लोगों को बच्चो...कुंठित और लुंठित दोनों ही प्रकार के लोगों को बच्चों से दूर रखा जाए तो अच्छा पर दिक्क़त ये है इस घंटी को बांधे कौन.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-27513149015026496712010-08-12T22:08:30.609+05:302010-08-12T22:08:30.609+05:30बहुत दुखद घटना ..विचारणीय...बच्चों को अनुशासित करन...बहुत दुखद घटना ..विचारणीय...बच्चों को अनुशासित करने के लिए इतना क्रूर कदम निंदनीय हैसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-13603331234422703522010-08-12T21:10:52.801+05:302010-08-12T21:10:52.801+05:30अच्छी पोस्ट !अच्छी पोस्ट !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-73592211746072510292010-08-12T21:05:15.889+05:302010-08-12T21:05:15.889+05:30बच्चों पर अनुशासन थोपना तो गलत है, लेकिन हमारा समा...बच्चों पर अनुशासन थोपना तो गलत है, लेकिन हमारा समाज एक संतुलित ढंग से व्यवहार कर सकता है, मुझे नहीं लगता। हम लोग या तो एक्दम इधर होते हैं या उधर। आवश्यकतानुसार सख्ती और ऐसे ही जरूरत के हिसाब से स्वतंत्रता भी जरूरी है। <br />लेकिन ये तो सरासर दरिन्दगी है।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-47280867442147243752010-08-12T20:51:18.161+05:302010-08-12T20:51:18.161+05:30दो सच्ची घटनायें सुनाते हैं।
१) संतकुमार आचार्य जी...दो सच्ची घटनायें सुनाते हैं।<br />१) संतकुमार आचार्य जी: छठी कक्षा, गणित के अध्यापक...चूंकि हम जरा गणित में दुरुस्त थे इसलिये उनकी संटी से वास्ता कम ही पडा। लेकिन अधिकतर विद्यार्थियों की उन्होने बजा रखी थी। एक बेचारे साथी अनुज सेठ (कितने दिनों बाद याद आया, कबड्डी में बडा उस्ताद था वो) से उनकी लगता था पुरानी खुन्नस थी, तो अधिकतर संटियां उसी पर टूटी। हमारे स्कूल की शहर में दूसरी शाखा भी थी, सातवीं में अनुज सेठ ने जैसे तैसे घरवालों के हाथ पांव जोडकर अपना तबादला वहां करवा लिया लेकिन हाय री किस्मत...संतकुमार जी भी इत्तेफ़ाकन उसी साल तबादला लेकर दूसरे स्कूल में जा पंहुचे...बेचारा अनुज...<br /><br />२) संतकुमारजी के बाद सातवीं कक्षा में दूसरे अध्यापक और हमारे प्रिंसीपल श्री कमलेश कुमार जी आये। अंग्रेजी और गणित पढाते थे बेहद मौजू ढंग से...वो नये नये थे और स्कूल में हमारी रेप्यूटेशन से नावाकिफ़ थे तो उनसे शुरूआती मुलाकात अच्छी न रही। हमारी कापी में कुछ गडबड थी और उन्होने हमें अपने दफ़्तर तलब किया, कुछ हाथ पे हल्की से रूलर से एक चोट भी पडी होगी लेकिन कुछ खास नहीं। फ़िर मध्यावकाश की घंटी बजी और जब तक हम उनके दफ़्तर से बाहर निकले बाहर कारीडोर में अच्छी भीड...अब भला हमारे जैसे इज्जतदार को प्रिंसीपल के दफ़्तर से निकलते देखकर बाकी मित्र सोच में थे तो हम अपनी इज्ज्त बचाते हुये मुस्कुराकर निकले कि लगे कि जैसे प्रिंसीपल साहब ने चाय पीने के लिये बुलाया हो...चैम्बर से बाहर निकल्ते हमारी मुस्कुराहट प्रिंसीपल साहब ने देख ली और वापिस बुलाकर फ़ालतू में हम पर एक रूलर और रसीद कर दिया कि पुराना दण्ड काफ़ी नहीं था...उसको हम आज तक नहीं भूले...<br /><br />लेकिन इसके बाद उनका दूसरा रूप भी दिखा...क्लास में वो पिटाई कम ही करते...और हर बार पिटाई के बाद संटी तोड डालते और बडे भावुक हो जाते...एक बार को एक लडके की पिटाई के बाद वो इतने दुखी हुये कि उनकी आंखों से आंसू तक आ गये...धीरे धीरे उनकी कक्षा में सबको आनन्द आने लगा और पिटाई बहुत कम ही होती दीवाली होली के जैसे...:)Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-5903893955191494662010-08-12T20:34:43.571+05:302010-08-12T20:34:43.571+05:30इस प्रकार के कृत्यों की भर्त्सना करता हूँ!इस प्रकार के कृत्यों की भर्त्सना करता हूँ!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-35220520503673440682010-08-12T20:28:34.839+05:302010-08-12T20:28:34.839+05:30यह सैडिस्टिक अप्रोच निंदनीय है.यह सैडिस्टिक अप्रोच निंदनीय है.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-56881600696169184452010-08-12T19:49:17.498+05:302010-08-12T19:49:17.498+05:30इन खबरों को पढ़ कर विचार आता है कि हम क्या 63 वर्ष...इन खबरों को पढ़ कर विचार आता है कि हम क्या 63 वर्ष पहले आजाद हो चुके थे? या अभी तक गुलाम हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com