tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post8160814200356367590..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: ब्लॉगवाणी में अपने ब्लॉग को लेकर मैं धर्मसंकट मेंghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-20346750288331888072007-08-19T13:31:00.000+05:302007-08-19T13:31:00.000+05:30घुघूती जी,हमें मान-सम्मान की चिंता किये बिना ही अप...घुघूती जी,हमें मान-सम्मान की चिंता किये बिना ही अपने लेखन को आगे बढाना हॆ.सुधी पाठक अच्छी रचना को अवश्य पसंद करते हॆ.विनोद पाराशरhttps://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-70580650020250617992007-08-15T22:21:00.000+05:302007-08-15T22:21:00.000+05:30मैने तो यही जाना है जीवन सारदूर रहे प्रशंसा का कार...मैने तो यही जाना है जीवन सार<BR/>दूर रहे प्रशंसा का कारोबार<BR/>जो है सच्चा मुरीद वह मौन रह मुसकाता<BR/>ये अलग बात है हमें पता नहीं पड़ पाता<BR/>शब्द वैभव भी तो एक तरह की माया<BR/>आज तक इसका मर्म कौन जान है पाया<BR/>प्रेमचंद,निराला,दिनकर,महादेवी थी जग जग की वाणी<BR/>तब कहाँ थे एग्रीगेटेर जो बताते कितना किया पसंद<BR/>वे तो लिखते रहे..लिखते गए स्वच्छंद<BR/>पसंद ना पसंद का छोड़ कर जंजाल<BR/>समय अपने आप लिखेगा यश गाथा समय के भालsanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-6379528567645774382007-08-15T21:57:00.000+05:302007-08-15T21:57:00.000+05:30are aap ko Bi cintaa hai...:)are aap ko Bi cintaa hai...:)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-35860913718410824582007-08-15T17:41:00.000+05:302007-08-15T17:41:00.000+05:30आप जागरूक ब्लॉगर हैं. मैं शुरु सॆ आपकॊ पढ़ता रहा हू...आप जागरूक ब्लॉगर हैं. मैं शुरु सॆ आपकॊ पढ़ता रहा हूं, क्यॊंकि पढना चाहता हूं. आप लिखिए क्योंकि आप लिखना चाहती हैं. शेष माया है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-79008182749826583802007-08-15T16:06:00.000+05:302007-08-15T16:06:00.000+05:30स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें।स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें।aarseehttps://www.blogger.com/profile/13270855138365991859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-28039913156729798852007-08-15T09:11:00.000+05:302007-08-15T09:11:00.000+05:30स्वतंत्रता दिवस की बधाईक्या इस सबसे कोई फर्क पड़ता...स्वतंत्रता दिवस की बधाई<BR/>क्या इस सबसे कोई फर्क पड़ता है ?<BR/><BR/>haan sameer ji nae jo kahaa hae mae bhi kar kae dekh chukii hunRachna Singhhttps://www.blogger.com/profile/15393385409836430390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-83538660498127753992007-08-15T08:01:00.000+05:302007-08-15T08:01:00.000+05:30बहुत से लेखकों की इसी तरह की समस्या नारद में भी थी...बहुत से लेखकों की इसी तरह की समस्या नारद में भी थी जब वह अकेला एग्रीगेटर था. इसी समस्या के चलते उसका काउंटर छिपा दिया गया था.<BR/><BR/>ब्लॉगवाणी में भी इसे छिपाया ही जाना चाहिए.<BR/><BR/>यकीन मानिए, किसी भी रचना की उत्तमता से उसके पाठकों की संख्या से कोई लेना देना नहीं होता. नहीं तो जादूमंतर पर ऊटपटांग लिखा हैरीपुत्र सर्वोत्कृष्ट रचना मान लिया जाता :)रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-57200503570504807882007-08-15T07:27:00.000+05:302007-08-15T07:27:00.000+05:30उन्मुक्त जी के इसी शर्मीलेपन पर तो हम रीझ जाते हैं...उन्मुक्त जी के इसी शर्मीलेपन पर तो हम रीझ जाते हैं. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-86764894464020690362007-08-15T06:53:00.000+05:302007-08-15T06:53:00.000+05:30सबसे पहले तो स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई !!...सबसे पहले तो स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई !!<BR/><BR/>पर क्या इस सबसे कोई फर्क पड़ता है ?mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-15586210571295484792007-08-15T06:39:00.000+05:302007-08-15T06:39:00.000+05:30आपको भी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें।समीर जी अपन...आपको भी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें।<BR/>समीर जी अपनी बात इतनी अच्छी तरीके से कहते हैं कि उस पर असहमति जताना मुश्किल होता है पर फिर भी ..<BR/>अभिव्यक्ति अपने लिये, अपनी पसंद पर होती है। लिखा उस पर जात है जो आपको पसन्द हो - अच्छा लगता है कि कोई और पसन्द करे पर यदि कोई पसन्द नहीं करता है तो कोई बात नहीं। <BR/>मेरे विचार से किसी भी एग्रेगेटर पर जाकर अपनी या किसी की भी प्रविष्टियां देखना ठीक नहीं। RSS फीड लीजिये और कंप्यूटर पर प्रविष्टियां प्राप्त कीजिये। <BR/>अपनी प्रविष्टियों पर पसन्द का या फिर देखने के लिये चटका लगाना ठीक नहीं। यह अपने मियां मिट्ठू बनने के समान है।उन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-78578806685702187372007-08-15T04:07:00.000+05:302007-08-15T04:07:00.000+05:30चिंता वाज़िब है आपकी!!अब जब गुरु ने ही आपको उपाय बत...चिंता वाज़िब है आपकी!!<BR/>अब जब गुरु ने ही आपको उपाय बता दिया है तो ये चेला क्या कहे अब!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-37558340915172150462007-08-15T03:44:00.000+05:302007-08-15T03:44:00.000+05:30घुघूती जीआपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई, ...घुघूती जी<BR/><BR/>आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई, शुभकामनायें एवं अभिनन्दन.<BR/><BR/>कभी पढ़ता था <B>निज सम्मान</B> के विषय में. निज सम्मान का विज्ञान बहुत सरल लगा था, न कोई विवाद और न ही कोई जटिलता. आज आपको चिन्तन में डुबा देख उसी विज्ञान का ख्याल सहसा हो आया. मुझे लगता है कि आईंदा बाद जब भी आप पोस्ट लिखें, तब पब्लिश का बटन दबाने के बाद ब्लॉगवाणी पर पहली पसंद भी दर्ज कर आवें. यहाँ भी सतर्कता की आवश्यक्ता है कि लिंक पर भी जरुर चटका लगा लेवें. कहीं ऐसा न हो जाये कि पढ़ा शून्य ने और पसंद किया १ ने. ऐसा मैने देखा है इसलिये अनुभव के आधार पर चेता कर अपने महान होने के कर्तव्य की पूर्ति कर रहा हूँ.<BR/><BR/>अभी भी आपका कार्य पूरा नहीं हुआ है. नारद पर भी अपना हिट काउन्टर कम से कम एक पर लाकर ही अन्य कार्य शुरु करें. <BR/><B><BR/>पहले करके देख लो, अपना निज सम्मान<BR/>तभी मिलेगा आपको, इस जग में भी मान.<BR/></B><BR/><BR/>यह <B>स्वामी समीरानन्द की सुक्ति</B> सांसदों और विधायकों की आचार संहिता के प्रथम पृष्ठ पर स्वर्णाक्षरों में दर्ज है, तभी तो वो घर से ही तिलक लगा कर और माला पहन कर निकलते हैं, आपने देखा होगा.<BR/><BR/>आप तो स्वयं विवेकी है. कम कहा है, ज्यादा समझियेगा और उड़न तश्तरी पर भी पसंदीदा का चिटका लगा दिजियेगा.<BR/><BR/>आभार, आपने इतने ध्यान से सुना और प्रवचन को आत्मसात करने का प्रण लिया.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-83762301476925369932007-08-15T03:43:00.000+05:302007-08-15T03:43:00.000+05:30घुघूति जी, कोई धर्म संकट नहीँ। दो कारण हैं इसके, म...घुघूति जी, कोई धर्म संकट नहीँ। दो कारण हैं इसके, मेरी राय में। पहला तो यह कि यह आवश्यक नहीं कि किसी ने कोई आलेख लिखा हो और वह स्वयं चिट्ठाकार को पसंद भी हो। इसलिये भी कोई लिख सकता है कि इसके लेखन, और चिट्ठाकरण मात्र से उसे संतोष और आनंद मिलता हो, न कि लेख के वास्तविक मसौदे से - वह उसे मात्र निरपेक्ष भाव से भी लिख सकता है। दूसरा यह कि अन्य कोई पढ़े, इसलिये भी चिट्ठाकर लिखे, या अनिवार्य रूप से यह अपेक्षा करे कि कोई उसे अवश्य ही पढ़े यह भी आवश्यक नहीँ। कोई स्वांत: सुखाय भी लिख सकता है।<BR/><BR/><BR/>तो आप बस स्वाभाविक रूप से चलने दें इनको। मेरी निगाह में यह कोई समस्या नहीँ।Rajeev (राजीव)https://www.blogger.com/profile/04166822013817540220noreply@blogger.com