tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post649154054656543705..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: पाँच साल के बच्चे की फीस पाँच हजार और दो साल के बच्चे की सोलह हजार !ghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-46316145031885153192008-12-12T00:34:00.000+05:302008-12-12T00:34:00.000+05:30This comment has been removed by the author.ghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-59116219067847886292008-12-11T22:43:00.000+05:302008-12-11T22:43:00.000+05:30आप कुछ समझते तो हो नहीं...बस अपनी ही कहते जाते हो....आप कुछ समझते तो हो नहीं...बस अपनी ही कहते जाते हो....अरे भई ऐसे स्कूलों में किसी "ख़ास" तरह की शिक्षा दी जाती है ना...अब हमारे ही बूते के बाहर तो ये क्या करें....??"ख़ास"लोगों की शिक्षा ये होती है कि गरीब लोगों को "ख़ास"(निम्न)नज़र से देखो...हा..हा..हा..हा..हा..राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-20552611816718805792008-12-11T20:18:00.000+05:302008-12-11T20:18:00.000+05:30in kbari shoolon ko band karake, ek nationla educa...in kbari shoolon ko band karake, ek nationla education ki jarurat hai...ho sake to prachin Greek ki tarah....body ko kasrat aur aur dimag ko kavita dono chahiye...prachin bharat ka education system bhi behatar tha...Alok Nandanhttps://www.blogger.com/profile/08283190649809379160noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-19938079321282283472008-12-11T00:21:00.000+05:302008-12-11T00:21:00.000+05:30सोशयलिज़्म सोच से नहीँ आता घुघूती जी भारतीय समाज़ मे...सोशयलिज़्म <BR/>सोच से नहीँ आता घुघूती जी <BR/>भारतीय समाज़ मेँ,<BR/>वर्ग विशेष का अलगाववाद<BR/>कई तबकोँ मेँ जारी रहेगा ..<BR/>क्या कीजे ?<BR/>स स्नेह, <BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-723723695216083582008-12-10T23:25:00.000+05:302008-12-10T23:25:00.000+05:30primary ka master!!!kya bolu ???????????????????primary ka master!!!<BR/><BR/><BR/>kya bolu ????<BR/><BR/><BR/>???????????????प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-1759180893602956682008-12-10T21:35:00.000+05:302008-12-10T21:35:00.000+05:30अब क्या कहें। मैं तो सरकारी स्कूल का उत्पाद हूं। औ...अब क्या कहें। मैं तो सरकारी स्कूल का उत्पाद हूं। और सोचता हूं इतना खराब भी नहीं। <BR/>पर अब सरकारी स्कूल की शिक्षा शायद कुछ खास रही नहीं। समाज भी सक्षम नहीं लगता॥<BR/>कोई सार्थक पहल नहीं करता नजर आता। :(Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-39583038477663798402008-12-10T20:47:00.000+05:302008-12-10T20:47:00.000+05:30इन स्कूलों के बच्चों को जरुरत भी नहीं होती इंजीनिय...इन स्कूलों के बच्चों को जरुरत भी नहीं होती इंजीनियरिंग करने की... जो अभी सोलह हजार फीस दे सकता है उसके बच्चे भला इंजिनियर क्यों बनेंगे? हम लगभग सरकारी स्कूल में पढ़ते से ३५ रुपये की फीस पर... लेकिन शायद मेरे बच्चे वैसे स्कूल में न पढ़ें !ऐसे स्कूल के बच्चे १२ वीं के बाद सैट देते हैं हम तब जानते भी नहीं थे की ये क्या होता है... वो येल और प्रिंसटन में अप्लाई करते हैं. हमें तब आई आई टी से ज्यादा कुछ नहीं पता था. <BR/><BR/> समाज में हर जगह समानता असमानता है... पर प्रतिभा कहीं भी हो जीतती वही है... हाँ नृत्य, संगीत और घुड़सवारी ये सब करने का मौका बस सोलह हजार वालों को ही मिलता है.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-58815021485922822102008-12-10T20:41:00.000+05:302008-12-10T20:41:00.000+05:30आपने केवल दारुण-विसंगति ही उजागर नहीं की है, अपने ...आपने केवल दारुण-विसंगति ही उजागर नहीं की है, अपने आलेख के अन्तिम अनुच्छेद में एक सुन्दर सुझाव भी दिया है ।<BR/>आपके इसु सुझाव को मैं अपने मित्रों के बीच प्रस्तुत करुंगा । शायद बीज का काम कर जाए और इससे कोई अत्यधिक जनोपयोगी बात निकल आए ।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-8805226155436320822008-12-10T19:37:00.000+05:302008-12-10T19:37:00.000+05:30ताऊ से सहमती जताते हुये कि स्कूल भी तो स्टेटस सिम्...ताऊ से सहमती जताते हुये कि स्कूल भी तो स्टेटस सिम्बल में आता है...और जो अफोर्ड कर सकते हैं तो क्यों न करेंगौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-50262432083661719722008-12-10T18:26:00.000+05:302008-12-10T18:26:00.000+05:30बचे-खुचे सरकारी स्कूलों को बचा-खुचा बरबाद करने में...बचे-खुचे सरकारी स्कूलों को बचा-खुचा बरबाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है पंचायती राज… जहाँ कि मध्यान्ह भोजन में जमकर घोटाले हो रहे हैं… किसी को भी पढ़ाई से कोई लेना-देना नहीं है, शिक्षक को खानसामा बना दिया गया है, जबकि सरपंच को अपना "हिस्सा" पहले चाहिये…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-25482794121353966012008-12-10T16:02:00.000+05:302008-12-10T16:02:00.000+05:30मसीजीवी जी, अप्रैल में जब आई थी तो आपके घर फोन यही...मसीजीवी जी, अप्रैल में जब आई थी तो आपके घर फोन यही सोचकर किया था कि या तो आप लोग हमारे अतिथि बनेंगे या हमें बनाएँगे । परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया, सो अब जब भी दिल्ली जाती हूँ चुपचाप जाती हूँ और चुपचाप लौट आती हूँ । हाँ, इस बार भी दिल्ली ही गई थी । वैसे अब तो द्वारका का मकान खाली कर दिया है तो अब केवल अतिथि बन सकती हूँ, बना नहीं सकती । आपने सुनहरा अवसर खो दिया !<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-90246696408159180332008-12-10T15:35:00.000+05:302008-12-10T15:35:00.000+05:30पढें- मेलबान- मेजबानपढें- मेलबान- मेजबानमसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-49242569214476579822008-12-10T15:34:00.000+05:302008-12-10T15:34:00.000+05:30आपके इन भोजों के मेलबानों की प्रोफाइल ने डरा दिया,...आपके इन भोजों के मेलबानों की प्रोफाइल ने डरा दिया, सोचा था कभी आपको निमंत्रित करेंगे पर आप तो 5 से 16 हजार की फीस देने वालों के घर का (ही) आतिथ्य स्वीकारती हैं :)) हम तो इलीजि़बल नहीं ठहरते।<BR/><BR/>दरिद्रता कोई ऐसा मूल्य नहीं है जिसे दर्प से दिखाया जाए पर इस किस्म की अमीरी में एक निश्िचत अश्लीलता है।<BR/><BR/>यह अति संपन्न स्कूल अपने अध्यापकों को कितना वेतन देते होंगे...अगर सरकारी स्कूलों जितना देते हों तो गनीमत समझें।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-12161780550729326212008-12-10T11:38:00.000+05:302008-12-10T11:38:00.000+05:30आज सब अच्छी से अच्छी शिक्षा अपने बच्चो को देना चाह...आज सब अच्छी से अच्छी शिक्षा अपने बच्चो को देना चाहते हैं ! कुछ के लिए स्कुल भी स्टेटस सिम्बल हैं ! बड़ा अहम् मुद्दा है !<BR/><BR/>राम राम !ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-12211177694010314222008-12-10T11:06:00.000+05:302008-12-10T11:06:00.000+05:30सब अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से खर्च कर रहें है. क...सब अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से खर्च कर रहें है. कुछ शान बनाए रखने के लिए भी खर्च करते है. बच्चा आगे जा कर वही बनेगा जैसी उसकी प्रतिभा होगी.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-55706648578298528772008-12-10T10:44:00.000+05:302008-12-10T10:44:00.000+05:30सही कह रही है आप।स्कूलो की फ़ीस हैरान कर देने वाली ...सही कह रही है आप।स्कूलो की फ़ीस हैरान कर देने वाली हो गई है,ये भी सच है कि वे किसी को प्रवेश लेने के लिये बुलाते नही है,मगर इतनी फ़ीस की तुलना मे कम फ़ीस लेने वाले स्कूल के नतीज़े उनसे कम अच्छे नही होते।शिक्षा अब व्यवसाय का रूप ले चुकी है,इस्लिये भारी भरकम फ़ीस ली जा रही है और सक्षम लोग सुविधा के हिसाब से अपने बच्चो को वहा पढा रहे है।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-3487339393030600392008-12-10T10:38:00.000+05:302008-12-10T10:38:00.000+05:30[हमारे छात्रों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत हर वर्ष इन्ज...[हमारे छात्रों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत हर वर्ष इन्जीनियरिंग कॉलेज में दाखिला पा जाता है । ]<BR/><BR/>घुघूती जी, अभिभावकों द्वारा मोटी फीस भर देने से ही बच्चे संस्कारवान नहीं हो जाते. मैं भी सरकारी स्कूल में पढ़ा हूँ. घर नजदीक होने के कारण स्कूल की चाबी मेरे पास ही होती थी. सुबह नौ बजे बारी बारी से सभी बच्चे झाडू लगाते थे. आज तो बच्चे अपने घर में भी झाडू नहीं लगा सकते.नीरज मुसाफ़िरhttps://www.blogger.com/profile/10478684386833631758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-45674493826976000912008-12-10T10:35:00.000+05:302008-12-10T10:35:00.000+05:30वैसे यहा पर जिन लोगो के बच्चे पढ़ते है. वे ये फीस ...वैसे यहा पर जिन लोगो के बच्चे पढ़ते है. वे ये फीस देने में सक्षम है.. फिर स्कूल वाले ज़बरदस्ती भी नही करते.. लोगो की अपनी सोच है महँगे स्कूलो में अपने बच्चो को पढ़ाना.. हालाँकि मेरे भतीजे भी ऐसी ही स्कूल में पढ़ते है.. पर भईया इसकी फीस आसानी से दे सकते है.. इसलिए.. <BR/><BR/>हालाँकि उनकी फीस बहुत ज़्यादा होती है.. इस बात से मैं इनकार नही करता.. आपका लेख वाकई विचारणीय हैकुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-67491488535126935152008-12-10T06:54:00.000+05:302008-12-10T06:54:00.000+05:30तुरंत तो कुछ नहीं कह रहा हूं। ब्ल वक्त सिर्फ़ यही क...तुरंत तो कुछ नहीं कह रहा हूं। ब्ल वक्त सिर्फ़ यही कि आपके तर्कों में एक द्वविधा दिखायी दे रही है। <BR/>"मुझे समझ नहीं आ रहा कि सोलह हजार की फीस वाले स्कूल गलत हैं या सही । मैं उनपर अपने विचार कैसे थोप सकती हूँ ? यदि मुझे वे बेहद मंहगे लगते हैं और इसलिए गलत तो मेरी कामवाली को मेरे कम्प्यूटर का दाम व मेरे टेलिफोन व नेट का खर्चा गलत लगता होगा । सामाजिक न्याय, वे बच्चे जिन्हें स्कूल जाने का सौभाग्य नहीं मिलता आदि के बारे में सोचती हूँ । परन्तु ऐसे में क्यों नहीं मैं उनके बारे में सोचती जिन्हें सर छिपाने को छत नहीं मिलती ? जितनी जगह मेरा कम्प्यूटर, प्रिंटर व टी वी घेरे है उतनी जगह में तो किसी का बिस्तरा लग जाए । कितनी विलासिता सही है और कितनी गलत ? फिर विलासिता की परिभाषा भी तो व्यक्तिगत है। जो मुझे आवश्यक लगता है वह किसी के लिए विलासिता है।"<BR/>तकनीक की जरूरत और उसके इस्तेमाल/उपभोग के हिसाब से सोचे तो जरा।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-13510781756570065592008-12-10T06:30:00.000+05:302008-12-10T06:30:00.000+05:30सरकारी स्कूलों के हाल पर सुनें...मेरे आफिस के बगल ...सरकारी स्कूलों के हाल पर सुनें...<BR/><BR/>मेरे आफिस के बगल में लड़कों के लिये सरकारी स्कूल है. वहां हफ्ते में सिर्फ 2 दिन शिक्षक आते हैं. रोजाना बच्चे क्लास में सिर्फ उधम करते हैं. सीखते कुछ नहीं. यह उनके समय और जीवन की बर्बादी है.<BR/><BR/>मैंने Human resources Ministry की साइट पर जाकर लिखा. दिल्ली शि़क्षा विभाग की साइट पर जाकर यहां के शिक्षा विभाग के कई लोगों को ई-मेल भी की. लेकिन असर कोई नहीं हुआ.CGhttps://www.blogger.com/profile/01338787191916748749noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-11130619206342734082008-12-10T06:27:00.000+05:302008-12-10T06:27:00.000+05:30महानगरों में स्कूल चलाना धंधा बन चुक है. दिल्ली मे...महानगरों में स्कूल चलाना धंधा बन चुक है. दिल्ली में सरकार ने स्कूलों से कहा कि छुट्टी के बाद गरीब बच्चों को पढ़ाओ, तो स्कूलों ने खानापूर्ती के लिये 15-20 बच्चों को दो घंटो के लिये बिठा लिया. उनके लिये टीचर्स की व्यवस्था तक ढंग से नहीं की गई.<BR/><BR/>यह मैंने अपनी आंखों से दिल्ली में एक पब्लिक स्कूल में बिताये अपने एक साल में देखा. उससे पहले भोपाल में एक मिशनरी स्कूल में था, जहां गुरुजन सच में बच्चों के लिये चितिंत रहते थे.<BR/><BR/>शायद शिक्षा की सच्ची values अब कुछ ही स्कूलों में बचीं हैं.CGhttps://www.blogger.com/profile/01338787191916748749noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-45436838175845125582008-12-10T00:32:00.000+05:302008-12-10T00:32:00.000+05:30आपकी बात ठीक है कि कुछ बच्चे तो स्कूल ही नहीं जा प...आपकी बात ठीक है कि कुछ बच्चे तो स्कूल ही नहीं जा पाते और कुछ अपनी अधिक आमदनी के कारण ज़्यादा फीस वाले स्कूल में भेजना अपनी शान समझते हैं। लेकिन सरकार भी तो अपने स्कूलों का स्तर नहीं सुधार रही इसीलिये प्राईवेट स्कूलों की दादागिरी हर जगह चल रही है। और हम हम तो चलते हैं हवा के साथ।Prakash Badalhttps://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.com