tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post473470313745753006..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: बिटिया तो है फूल की डाली... पर पहले कर दो उसे गर्भ से खालीghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-5668013668690919822009-06-10T17:59:12.155+05:302009-06-10T17:59:12.155+05:30बेटा हो या बेटी, वे हमारे ही खून हैं. उन में से कि...बेटा हो या बेटी, वे हमारे ही खून हैं. उन में से किसी से भी मदद लेने में कोई बुराई नहीं है, कोई अंतर नहीं है.<br /><br />"मेरी समझ में बेटियों के बारे में ऐसे लेख व लोक गीत ही तो कन्या भ्रूणों की हत्या का कारण होते हैं।"<br /><br />कारण कुछ और है. कारण है एक बेटी होने पर एके औसत परिवार को उसके लिये आर्थिक दीवालिया कर देने वाली दहेज और उसके बाद के दान. लेख और लोगगीत समाज के इस "भय" के प्रतिबिंब मात्र हैं.<br /><br />जब तक देश में दहेज का शाप रहेगा, तब तक बेटियों को बेटों के समान नहीं देखा जायगा.<br /><br />सस्नेह -- शास्त्री<br /><br />हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है<br />http://www.Sarathi.infoShastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-24359440263465668942009-06-09T16:42:49.591+05:302009-06-09T16:42:49.591+05:30हमारे पुरुष प्रधान समाज की रूग्ण मानसिकता, मगर अफस...हमारे पुरुष प्रधान समाज की रूग्ण मानसिकता, मगर अफसोश कि कई बार इस घृणित कृत्य में महिलाये भी भागीदार रहती है !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-52395415035887674972009-06-09T14:12:37.356+05:302009-06-09T14:12:37.356+05:30sahi baat kahi hai aapane .....bahut khubsahi baat kahi hai aapane .....bahut khubओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-57125677809087606552009-06-09T00:29:49.157+05:302009-06-09T00:29:49.157+05:30उफ़्फ़ ! कैसे कैसे घृणित लोग हैं इस संसार में !उफ़्फ़ ! कैसे कैसे घृणित लोग हैं इस संसार में !Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-24582163199939805082009-06-08T23:11:51.755+05:302009-06-08T23:11:51.755+05:30ये सब घिनोने काम करने वाले लोग आज भी हैं ...जो स्त...ये सब घिनोने काम करने वाले लोग आज भी हैं ...जो स्त्री को बोझ, और पाँव की जूती समझते हैं ...सोचते ही नहीं कि उनके भी दिल है ...वो भी इंसान हैं ...बातें बड़ी बड़ी करवा लो बस उनसे ..पर जब खुद पर बात आती है तो उन्ही घिनोनी हरकतों पर आ जाते हैं ....<br /><br />मुझे सख्त नफरत है इन इंसानों से .....बेहतरीन लेख हैअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-59169696054168502742009-06-08T18:16:26.064+05:302009-06-08T18:16:26.064+05:30लड़का और लड़की ! लड़का तो एवरीथिंग ओके, लेकिन लड़की तो...लड़का और लड़की ! लड़का तो एवरीथिंग ओके, लेकिन लड़की तो बहुत सारे मगर, किन्तु, पर आदि इत्यादि... यह मानसिकता हमारे समाज में न जाने कब से फैली हुई है। लड़का और लड़कियों के भेद ने संतान का वर्गीकरण कर दिया है जो न सिर्फ मानसिकता में है, बल्कि रीति-रिवाज, काज-रोजगार से लेकर दैनिक गतिविधियों तक में शामिल है। इसमें कोई दोमत नहीं कि यह गलत और अनुचित है। और इस पाताल-जड़ मानसिकता का नाश होना ही चाहिए।<br />लेकिन यह दुर्भाग्य है कि लोग इस समस्या की गंभीरता को नहीं समझते है और इसे खत्म करने के लिए बहुत ही सतही बहस करते हैं। मसलन तरह-तरह के तर्कों से यह साबित करना कि लड़की किसी भी तरह लड़के से कम नहीं। "कंधा से कंधा मिलाकर ' जैसे मुहावरे तक गढ़ डाले गये हैं। मुझे लगता है कि लैंगिक भेद-भाव के इस अभिशाप को दूर करने का यह तरीका बेहद घटिया है। यह वास्तविकता से मुंह मोड़ने जैसा है। अरे भाई, लैंगिकता प्रकृति की रचना है। दोनों की अपनी-अपनी खासियतें हैं। इसमें कम-बेसी का सवाल आप क्यों घुसेड़ रहे हैं? दशकों से तो आप ऐसा कहकर थक गये, लेकिन समस्या यथावत रही या फिर बढ़ ही गयी और बढ़ती ही जा रही है।<br />यह भावनात्मक मुद्दा भी नहीं है, जैसा कि सैकड़ों महिलावादी लेखक कहते आ रहे हैं। आपका आलेख भी इसी दर्जे में हैं। यह विशुद्ध व्यवहारिक मुद्दा है और व्यवहारिकता से मुंह मोड़कर आप इस मुद्दे का हल नहीं खोज सकते। लड़के अपने लैंगिक-शारीरिक विशेषताओं के कारण खास हैं, तो लड़कियां भी अपनी लैंगिक विशेषताओं के कारण खास हैं। दोनों की सीमा है, जो प्रकृति ने निर्धारित की है। लोगों को यह समझाने की आवश्यकता है कि लड़के-लड़कियां होना आपके वश में नहीं है। और हर इंसान की हर तमन्ना पूरी नहीं होती। इस मामले में संतोष ही आपको राहत दे सकता है। संतान को संतान समझो, लड़का या लड़की नहीं। मेरे विचार समाधान सच को सामने रखकर ही निकलेगा न कि झूठा महिमामंडन करके।रंजीत/ Ranjithttps://www.blogger.com/profile/03530615413132609546noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-31511674240821827012009-06-08T06:34:20.111+05:302009-06-08T06:34:20.111+05:30यह दृष्टिकोण विकसित हो रहा है। समाज को इसे अपनाने ...यह दृष्टिकोण विकसित हो रहा है। समाज को इसे अपनाने में समय लगेगा। लेकिन नई परिस्थितियों में समाज के पास इस के सिवा कोई चारा भी नहीं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-66639404526102941442009-06-08T05:59:40.555+05:302009-06-08T05:59:40.555+05:30बहुत सधा हुआ सशक्त आलेख. साधुवाद!!बहुत सधा हुआ सशक्त आलेख. साधुवाद!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-4990811122384675942009-06-08T05:19:13.710+05:302009-06-08T05:19:13.710+05:30जनचेतना का विकास ही ऐसी अमानवीय मानसिकता और परम्पर...जनचेतना का विकास ही ऐसी अमानवीय मानसिकता और परम्पराओं को निर्मूल कर सकता है। इस दिशा में आपके प्रयास एक सार्थक पहल कहे जा सकते हैं। साधुवाद।Dr. Amar Jyotihttps://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-64156750526384580762009-06-08T02:37:42.863+05:302009-06-08T02:37:42.863+05:30नासिर जी, जिस जमाने की मैं बात कर रही हूँ वह तो आज...नासिर जी, जिस जमाने की मैं बात कर रही हूँ वह तो आज से लगभग 25 वर्ष पहले की है। तब तो शायद* यह सब नया नया था और शायद बहुत देर से ही पता लग पाता था।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-51845020502627401682009-06-08T02:36:42.770+05:302009-06-08T02:36:42.770+05:30नासिर जी, जिस जमाने की मैं बात कर रही हूँ वह तो आज...नासिर जी, जिस जमाने की मैं बात कर रही हूँ वह तो आज से लगभग 25 वर्ष पहले की है। तब तो शाaय्द यह सब नया नया था और शायद बहुत देर से ही पता लग पाता था।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-79768394395037947422009-06-08T01:56:20.565+05:302009-06-08T01:56:20.565+05:30बेटियों के बारे में ऐसी पोस्ट कम ही दिखती है। घुघ...बेटियों के बारे में ऐसी पोस्ट कम ही दिखती है। घुघूती बासूती जी आपको इसके लिए बधाई। ... काश हमें ऐसी पोस्ट लिखनी ही न पड़ती तो कितना अच्छा होता। बेटियों के बारे में हम जितने अधम और हिप्पोक्रेट हैं, शायद ही किसी और चीज के बारे में होंगे। <br />आपने विदाई गीतों का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया है, वह वाकई में बहुत अच्छा है। मैं गर्भपात वाली बात में सिर्फ एक तथ्या का इजाफा करना चाहता हूँ। <br />लिंग के बारे में आमतौर पर तीसरे महीने के बाद पता चलता है। तब तक गर्भपात कानूनी रूप से अवैध हो जाता है। यानी अगर कोई चौथे महीने के आसपास गर्भपात करा रहा है तो यकीन जानिए 99 फीसदी मामलों वह कन्या भ्रूण का गर्भपात है यानी लिंग चयनित गर्भपात। उम्मीद है, आगे भी इस विषय पर आपकी पोस्ट पढ़ने को मिलेगी।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/18225762942832911087noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-49014026501068475232009-06-08T01:26:54.039+05:302009-06-08T01:26:54.039+05:30बेटी और बेटे में भेदभाव किये बिना अपेक्षायें रखनें...बेटी और बेटे में भेदभाव किये बिना अपेक्षायें रखनें और व्यवहार करने में कुछ भी गलत नहीं है आखिर बेटी हो या बेटा वह अपनी सन्तान,अपना अंश ही तो है !<br />मैं बेटी/बेटे को 'व्यक्ति' मानने के बजाये 'संतान' कहना ज्यादा पसंद करूंगा ! <br /><br />हमारा दुर्भाग्य है कि हम नये संबंधों की शुरुवात ही 'व्यवसाय' से करते हैं ! आपके परिचित , व्यवसायी थे इसलिए फूलों की डाली और फलों के राजा का भेद समझते होंगे ! हर व्यवसायी यही करेगा ! व्यवसायी नफा नुकसान देखता है , रिश्ते नहीं ! मेरे ख्याल से ऐसे माता पिता बिरले ही होंगे जो व्यवसायी नहीं सिर्फ माता पिता होते है ! <br />अच्छे माता पिता को बेटी के नाम पर अपराधबोध क्यों होना चाहिए ?उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-35263526862098519022009-06-08T01:13:11.385+05:302009-06-08T01:13:11.385+05:30लड़कियों को हमेशा से ही पराया माना जाता रहा है. बच...लड़कियों को हमेशा से ही पराया माना जाता रहा है. बचपन से ही उन्हें "पराया धन", "तुम्हें तो एक दिन अपने घर जाना है" जैसे जुमले सुना सुनाकर बड़ा किया जाता है. कितनी तकलीफ होती होगी ना उन्हें अपने ही घर में पराया शब्द सुनकर......अरे जब जाना है तब जाना है, अभी से ही ऐसा ज़हर क्यों घोल रहे हो......??<br /><br />सशक्त आलेख......<br /><br />साभार<br /><a href="http://woyaadein.blogspot.com/" rel="nofollow">हमसफ़र यादों का.......</a>Anonymousnoreply@blogger.com