tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post3230446749421968073..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: बुरुंश के फूलghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-54290302008505829942017-08-07T19:11:32.408+05:302017-08-07T19:11:32.408+05:30यादों से लबरेज़ ...पता नहीं कहाँ क्या खो गया ...इसे...यादों से लबरेज़ ...पता नहीं कहाँ क्या खो गया ...इसे पढ़ते पढ़ते मैं खुद कहीं खो गया ...अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-46534231767316619182010-08-10T10:27:51.586+05:302010-08-10T10:27:51.586+05:30मन भारी हुआ जा रहा है.मन भारी हुआ जा रहा है.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-46724156794965229912010-08-08T19:39:35.807+05:302010-08-08T19:39:35.807+05:30आपके हर एक शब्द में जड़ें छूटने की पीड़ा दिखती है ...आपके हर एक शब्द में जड़ें छूटने की पीड़ा दिखती है और आख़िरी लाइनों ने तो भावुक कर दिया जाने क्यों शायद शाम है इसलिए---<br />काश, यह आर्द्रता आँखों की<br />सोख लेता फूल बुरुंश का<br />लगता कि उसने माफ़ किया<br />हिमालय की इस परित्यक्त बेटी को।muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-81035291777435889712010-08-08T11:34:43.735+05:302010-08-08T11:34:43.735+05:30बुज़ुर्गों ने पहाड कब छोडा, पता नहीं मगर मैंजब से ब...बुज़ुर्गों ने पहाड कब छोडा, पता नहीं मगर मैंजब से बरेली छोड्कर पिट्सबर्ग बसा हूँ, अपने को पूरा पहाडी ही समझता हूँ। घर के आंगन में सफेद और लाल रोडोडेंड्रॉन लगे हैं। सफेद वाले को बुरुंश कहा जा सकता है या नहीं, मालूम नहीं। शब्द से परिचय शिवानी की कहानियों के द्वारा हुआ था, झाडी से परिचय बोंसाई के शौक के दौरान हुआ और जब यहाँ अपना घर लिया तो यह पौधे पहले से लगे हुए थे। कभी चित्र लगाता हूँ कुछ और चित्रोंके साथ (अकेले चित्र के साथ पोस्ट नहीं लगा सकता - आप सरीखी काव्य-प्रतिभा नहीं है मुझमें)Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-91755724187115407992010-08-07T13:43:48.385+05:302010-08-07T13:43:48.385+05:30दीदी जी, मैंने आपकी कुछ कविताये पढ़ी बहुत ही रचनात...दीदी जी, मैंने आपकी कुछ कविताये पढ़ी बहुत ही रचनात्मक है भावनात्मक कलेवर सभी में दिल को छू जाता है " माँ " कविता तो दिल को छू गयी और इसकी परिणिति में एक नई कविता ने जन्म लिया शायद उस कविता में माँ के सामान के साथ आपने नारी की विवशता, कमजोरी या मजबूरी को दर्शाने की कोशिश की है इससे तो माँ की महता कम हो जायगी न !शेष मेरे ब्लॉग पर आकर " माँ एक शब्द नहीं" को पढ़ कर अपना आशीर्वाद जरूर दीजयेगा .गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-29318985968305901102010-08-07T02:05:01.350+05:302010-08-07T02:05:01.350+05:30ओह...बुरुंश..वॉव...ओह...बुरुंश..वॉव...शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-62881700715923365912010-08-06T18:06:30.427+05:302010-08-06T18:06:30.427+05:30वर्षों से यह बुरुंश मुझे सताता
मेरे सपनों में भी ब...वर्षों से यह बुरुंश मुझे सताता<br />मेरे सपनों में भी बिन फूलों<br />बिन रंगों के आता?<br /><br />मन का दर्द उभर आया है इस कविता में...कितना कुछ छूट जाता है...एक जगह बदलते ही और हम ज़िन्दगी भर उस से जुडी यादों को मिस करने लगते हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-2440957540737700532010-08-05T12:47:23.089+05:302010-08-05T12:47:23.089+05:30वाह...कमाल की रचना है आपकी...बधाई...सच कहा हमारी अ...वाह...कमाल की रचना है आपकी...बधाई...सच कहा हमारी अपनी भाषा ही अब परायी हो गयी है...<br />आप खोपोली आने वाली थीं क्या हुआ?<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-78236862685560115022010-08-04T20:43:59.453+05:302010-08-04T20:43:59.453+05:30माँ , इजा, अम्मा अब मॉम हो गई
दी, दीदी, दिदम अब सि...माँ , इजा, अम्मा अब मॉम हो गई<br />दी, दीदी, दिदम अब सिस हो गई<br />मौसी, कैंजा, काकी, जेठजा आँट हो गईं<br />माँ, बन नानी तुम जब ग्रैनी हुईं तो<br />**********************************<br />क्यों नहीं बुरुंश को रोडडेन्ड्रन<br />कहना सीख लिया?<br /><br />सीखा होता तो क्यों<br />वर्षों से यह बुरुंश मुझे सताता<br />मेरे सपनों में भी बिन फूलों<br />बिन रंगों के आता?<br />काश, यह आर्द्रता आँखों की<br />सोख लेता फूल बुरुंश का<br />लगता कि उसने माफ़ किया<br />हिमालय की इस परित्यक्त बेटी को।<br /> <br /> -नराई स्पष्ट झलक रही है .hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-43506383379150371712010-08-04T20:34:46.101+05:302010-08-04T20:34:46.101+05:30बहुत ही सुन्दर रचना ! फूल को माध्यम बना कर आपने बड़...बहुत ही सुन्दर रचना ! फूल को माध्यम बना कर आपने बड़ी कुशलता से सांस्कृतिक बदलाव की मानसिकता की ओर संकेत किया है ! दिल को छू लेने वाली मर्मस्पर्शी रचना के लिये आभार !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-64546143578280500322010-08-04T18:32:53.833+05:302010-08-04T18:32:53.833+05:30बुरुंश ( बुरांश) के फूल वसंत कि सजीवता के प्रतीक ह...बुरुंश ( बुरांश) के फूल वसंत कि सजीवता के प्रतीक हैं. मैंने सुश्री महादेवी वर्मा के लेख प्रणाम , जो कि गुरुदेव रविंद्रनाथ को समर्पित है, में भी बुरुंश का उलेख पाया है . आपने पहाड़ों से आती सुगंध को बढ़ा दिया है. हाँ आपने अंत में हिमालय कि परित्य्यक्त बेटी को लिखा , ये कैसे हो सकता है कि हिमालय किसी बेटी को परित्यक्त करे जबकि हम स्वयं हिमालय को परित्यक्त कर रहे है . हिमालय शांत है आपका स्वागत करता है सदैव ..गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-53779095990520305942010-08-04T14:18:18.607+05:302010-08-04T14:18:18.607+05:30मन को गहरे छू गयी आपकी यह भावपूर्ण अभिव्यक्ति....म...मन को गहरे छू गयी आपकी यह भावपूर्ण अभिव्यक्ति....मन में दबा पड़ा कचोट कुछ और गहरा गया...<br /><br />सचमुच...कहाँ जा रहे हैं हम.... क्या यह शुभ है किसी भी तरह ....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-22152551613916812182010-08-04T08:18:32.454+05:302010-08-04T08:18:32.454+05:30जीवन में कुछ खोता है तो कुछ नया मिलता भी है. यह हम...जीवन में कुछ खोता है तो कुछ नया मिलता भी है. यह हमारा स्वभाव है कि हम उसे अत्यधिक याद करते हैं जो छूटता जाता है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जब आप उन यादों का पीछा करते हुए उसी स्थान पर पहुंचते हैं तो वे यादें आपको भूल चुकी होती हैं. ऐसे मे मन करता है कि व्यर्थ ही यहां तक आ गए..कम से कम इनके होने का भ्रम तो था..अब तो वह भी जाता रहा.<br />बुरांश के लालम लाल फूलों को कैसे भूला जा सकता है भला..!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-31017970128213601992010-08-04T07:03:37.297+05:302010-08-04T07:03:37.297+05:30बहुत शिद्दत से याद किया है आपने बुरूंश के फ़ूलों क...बहुत शिद्दत से याद किया है आपने बुरूंश के फ़ूलों को।<br />पढ़ा मैंने भी बहुत है, लेकिन आपकी तरह पहाड़ से संबंध नहीं रखता सो इनसे पहचान भी नहीं और इतना नोस्ताल्जिक भी नहीं होता। लेकिन ऐसी यादें या कहे बुरूंश के फ़ूल सबके पास अपने अपने होते हैं।<br />आभार स्वीकार करें।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-77799134444255570762010-08-03T23:52:35.997+05:302010-08-03T23:52:35.997+05:30रिश्ते की गर्माहट और मिठास बरसो से सुनते आये सम्बो...रिश्ते की गर्माहट और मिठास बरसो से सुनते आये सम्बोधनों में ही तो निहित है |नये संबोधन अपनापन की कमी अहसास कराते है |<br /> बुरुंश के फूलो की बहार तो लौहघट से मायावती जाते वक्त देखी थी |<br />बुरुंश के फूलो का जैम मायावती आश्रम में चखा था |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-14919224115606474982010-08-03T22:53:00.864+05:302010-08-03T22:53:00.864+05:30सीखा होता तो क्यों
वर्षों से यह बुरुंश मुझे सताता
...सीखा होता तो क्यों<br />वर्षों से यह बुरुंश मुझे सताता<br />मेरे सपनों में भी बिन फूलों <br />बिन रंगों के आता?<br />काश, यह आर्द्रता आँखों की<br />सोख लेता फूल बुरुंश का<br />लगता कि उसने माफ़ किया<br />हिमालय की इस परित्यक्त बेटी को।<br /><br /><br />यादो के गलियारे से निकलती दिल को छूती सुंदर अभिव्यक्ति.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-55154781913742080522010-08-03T21:17:41.732+05:302010-08-03T21:17:41.732+05:30burunsh ya buransh? alag-alag jagahon par alag-ala...burunsh ya buransh? alag-alag jagahon par alag-alag uchcharan.Is barsat ke mausam me yad bhee ayee to burunsh ki. Barshat me burunsh kanha khilta hai didi? Himalaya me is waqt kewal "brahmkamal" khilta hai. Han, phoolon ki ghati me hazaron rang, birange phool awashya khilte hain barsat me, bhanti-bhanti ke.<br /> Burunsh ke bahane aapne pahar ko yaad kiya, achcha laga. Kanhi se khoj khaj kar burunsh ke phool ki ek photo hee dal dete.<br />Kavita achchi lagi. <br />Pranam! Anekanek shubhkamnayen.शूरवीर रावतhttps://www.blogger.com/profile/14313931009988667413noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-76964246267780104932010-08-03T20:19:35.035+05:302010-08-03T20:19:35.035+05:30काश, यह आर्द्रता आँखों की
सोख लेता फूल बुरुंश का
ल...काश, यह आर्द्रता आँखों की<br />सोख लेता फूल बुरुंश का<br />लगता कि उसने माफ़ किया<br />हिमालय की इस परित्यक्त बेटी को।<br /><br />सब बदल गया है.....पर मन कि कोमल भावनाएं नहीं.....खूबसूरत प्रस्तुतिसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-12067219474613797932010-08-03T20:07:15.911+05:302010-08-03T20:07:15.911+05:30KUCH ALAG SE EHSAAS DETI RACHNAKUCH ALAG SE EHSAAS DETI RACHNAरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-53285168836950741802010-08-03T19:37:13.677+05:302010-08-03T19:37:13.677+05:30सच में, कहाँ से कहाँ बदलाव हो गया है।सच में, कहाँ से कहाँ बदलाव हो गया है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-31714650353377616162010-08-03T18:25:17.250+05:302010-08-03T18:25:17.250+05:30बहुत ही सशक्त भाव व्यक्त किये हैं आपने इस रचना के ...बहुत ही सशक्त भाव व्यक्त किये हैं आपने इस रचना के माध्यम से. बहुत शुभकामनाएं.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-5860221813271176482010-08-03T17:58:33.936+05:302010-08-03T17:58:33.936+05:30सीखा होता तो यह बुरुंश मुझे क्यों सताता ....
सच है...सीखा होता तो यह बुरुंश मुझे क्यों सताता ....<br />सच है कि भावनाएं नहीं होती जिनमे ज्यादा खुश और सुखी होते होंगे ...!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-13505762927336692062010-08-03T17:58:01.368+05:302010-08-03T17:58:01.368+05:30यादों मे खो गए ।यादों मे खो गए ।सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-56400090264085294392010-08-03T17:51:28.118+05:302010-08-03T17:51:28.118+05:30Rhododendron ko burush kahte hain ye pahli baar pa...Rhododendron ko burush kahte hain ye pahli baar pata chala!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-16724275249217220952010-08-03T17:44:57.254+05:302010-08-03T17:44:57.254+05:30यादों में खोई हुई कविता !यादों में खोई हुई कविता !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.com