tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post2990711396315228573..comments2023-10-29T13:18:36.222+05:30Comments on घुघूतीबासूती: कचरा फैलाऊ हम...............................घुघूती बासूतीghughutibasutihttp://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-71476853646327335232012-07-19T00:31:23.690+05:302012-07-19T00:31:23.690+05:30अजय साहनी जी, आपने बात की गम्भीरता को समझा, खुशी ह...अजय साहनी जी, आपने बात की गम्भीरता को समझा, खुशी हुई। कचरा कचरा ही रहेगा चाहे वह काला, गोरा, बूढ़ा, जवान, अमीर, गरीब कोई भी फैलाए और वह उतना ही भद्दा, अस्वच्छ, दुर्गन्धमय व हानिकारक होगा फैलाने वाला जो चाहे हो।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-77044922689429001922012-07-18T21:44:07.345+05:302012-07-18T21:44:07.345+05:30शायद यह बहस यंहा ख़त्म भी हो जाये पर क्या यह गलत न...शायद यह बहस यंहा ख़त्म भी हो जाये पर क्या यह गलत नहीं है ? पंडित ललित मोहन जी यह गरीबी और अमीरी की बात नहीं है लेखिका का विचार एक सभ्य और साफ सुथरे भारत के पक्ष में है यह बात हर हाल में जरुरी है कि हम अपने देश को साफ सुथरा रखें यंहा पर सिर्फ और सिर्फ यही बात लागू होती है । हम लोग आरम्भ से ही इन बातों की उपेक्षा करते रहे हैं मात्र इसी कारण से आज देश के लोगों के अन्दर इतनी हठधर्मिता आ गयी है कि हर गलत बात को वह सही ठहराने में निपुण हो गए हैं,<br />यंहा तक कि अगर कोई उन बातों पर देश का ध्यान भी दिलाये तो वंहा आप जैसे लोग मीन मेख निकालने लगते हैं, जो लोग बाहर रह कर कमाते हैं दो पैसे बचाकर अपने बेटे या परिवार को भेजते हैं क्या आप उनको इस कारण से इस गंभीर विषय से अलग कर देंगे कि वे गरीब हैं ? <br />ऐसा क्यों है कि हमें जो काम नहीं करना चाहिए उसे करने में अपनी श्रेष्ठता समझते है, सार्वजानिक स्थान पर कूड़ा करकट नहीं करना चाहिए तो वह करते हैं आखिर क्यों ?<br />मैंने तो वह जगह देखी नहीं क्या मै उस शहर में ही नहीं रहता पर जंहा भी रहता हूँ वंहा के हालात इससे अलग नहीं हैं । मै कोई कडवी बात नहीं लिखना चाहता हूँ पर सारे देश में अजीब सा परिवर्तन आ गया है, हमें यह सब सोचना ही होगा वर्ना हम अपने देश के समृद्ध भूतकाल को भी बिसार देंगेAjai Sahanihttps://www.blogger.com/profile/00545496172481586757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-2944761369759256322012-07-01T20:30:42.013+05:302012-07-01T20:30:42.013+05:30जो कचरा फैला रहे है हम में से ही तो है हम दूसरों प...जो कचरा फैला रहे है हम में से ही तो है हम दूसरों पर उंगली उठाने के बजाय अपनी गिरेबान में झाकते .डिग्रियां समेटने का मतलब यह नहीं की हम पढे लिखे है अगर ऐसा होता तो कचरे पर बहस न होती .कुछ नियम हम अपने लिए भी तो बना सकते है जैसे हम अपने आसपास कचरा नहीं करेंगे और जो कर रहे है उन्हे बार बार याद दिलाएंगे क़ि वे गलत कर रहे है आखिर देश और ये जमीन तो हमारी अपनी है न .......Reena Panthttps://www.blogger.com/profile/00567958984543097787noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-46474793003183410452012-06-27T07:40:26.302+05:302012-06-27T07:40:26.302+05:30हम अपनी गलतियाँ न मानने के आदी हैं...हम अपनी गलतियाँ न मानने के आदी हैं...Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-19129226203749840122012-06-26T18:22:01.800+05:302012-06-26T18:22:01.800+05:30हाय लोग इतना खाते क्यों हैं? यही बात मुझे भी समझ ...हाय लोग इतना खाते क्यों हैं? यही बात मुझे भी समझ नहीं आती। जहां खाया वहीं फेका। बहुत अच्छा आलेख।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-38049266229954060462012-06-24T18:05:21.921+05:302012-06-24T18:05:21.921+05:30पंडित ललित मोहन Kagdiyal जी,
मेरा ब्लॉग सबके पढ़ने ...पंडित ललित मोहन Kagdiyal जी,<br />मेरा ब्लॉग सबके पढ़ने टिपियाने के लिए है। यदि टिप्पणी विषय पर होगी और भाषा भद्र हो तो वह ब्लॉग पर सबके पढ़ने के लिए वहाँ रहेगी ही। टिप्पणी सदा वाह वाह कहती ही होगी ऐसा तो कोई नियम नहीं है। मेरे ब्लॉग के लिए किसी सदस्यता की आवश्यकता नहीं है।<br />मुझे यदि थोड़े सी आलोचना से समस्या होती तो फिर मैं ब्लॉग पर आती ही क्यों? आती भी तो वहाँ सबके टिप्पणी करने की सुविधा क्यों रखती? आप निश्चिन्त होकर जो गलत लगे उसे गलत कहिए। ब्लॉग लिखने का उद्देश्य ही यह है कि पाठक चिन्तन करें और विषय पर चर्चा और बहस करें।<br />आप आए आपका आभार। भविष्य में भी आएँ, आपका स्वागत है।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-62268073647448062822012-06-21T11:24:19.156+05:302012-06-21T11:24:19.156+05:30शायद अनजाने में आपके ह्रदय को दुखा बैठा.किन्तु यदि...शायद अनजाने में आपके ह्रदय को दुखा बैठा.किन्तु यदि आप एक बार अपने लेख का अवलोकन करें तो देखिये आपने कहीं भी ये स्पष्ट नहीं किया की वो कचड़ा फ़ैलाने वाले कार ,मोटर-साईकिल से आते हैं .आपके शब्दों में बार बार "फेरीवालों" शब्द की पुनरावृत्ति हो रही थी.मैं किसी भी प्रकार का प्रदूषण फ़ैलाने वालों के पक्ष में कदापि नहीं हूँ,किन्तु जब सारे इल्जामो का ठीकरा इन्ही कमजोर वर्ग के सिर पर फोड़ा जाता है तो मेरा ह्रदय द्रवित हो जाता है. ये वो लोग हैं जो अपने मौलिक अधिकारों तक से वंचित व अपरिचित हैं और हम सबसे अधिक् कर्तव्यों के प्रति प्रतिबध्ह्ता भी इन्ही से चाहते हैं.और जहाँ जहाँ भी ऐसा होते देखता हूँ मेरा ह्रदय भावुक हो जाता है और इसी भावुकता में कभी कभी अपने ही लोगों के अहम् को ,उनके उच्च होने के अधिकारों से छेड़खानी कर बैठता हूँ . जबकि जानता हूँ की -: <br /> सबहु सहायक सबल के कोऊ न निबल सहाय<br />पवन जगावत आग तें और दीपक देत बुझाय. <br /> आपकी बिना आज्ञा के एक तो आप के ब्लॉग में घुसपैठ कर बैठा और बिना सदस्यता के आपके लेख के प्रतिकूल टिपण्णी भी कर बैठा ,जरा हिम्मत तो देखिये मेरी. क्षमा प्रार्थना के साथ साथ आपकी सजा व आपके सदस्यों के कोप भाजन का पात्र बनने के लिए ह्रदय को मजबूत कर चुका हूँ.ज्योतिषाचार्य ललित मोहन कगड़ियाल,,https://www.blogger.com/profile/03756695984315268386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-79135539275899578532012-06-21T11:23:52.855+05:302012-06-21T11:23:52.855+05:30This comment has been removed by the author.ज्योतिषाचार्य ललित मोहन कगड़ियाल,,https://www.blogger.com/profile/03756695984315268386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-2118391648966574212012-06-20T02:07:26.967+05:302012-06-20T02:07:26.967+05:30पंडित ललित मोहन Kagdiyal जी,
आपका कटाक्ष सर आँखों ...पंडित ललित मोहन Kagdiyal जी,<br />आपका कटाक्ष सर आँखों पर। आपको शायद जानकर दुख होगा कि प्रायः जो खा रहे होते हैं वे देखने में तो गरीब नजर नहीं आते। अनजाने में आपने अच्छे खाते पीते लोगों की तरफदारी कर दी। यहाँ खाते पीते दोनों अर्थों में, प्रत्यक्ष तो खा पी ही रहे होते हैं और खाते पीते इसलिए भी क्योंकि प्रायः मोटरसायकिल या कार किनारे पर लगाकर ही आते हैं। देखने में अच्छे कपड़े पहने हुए ये लोग यदि गरीब हैं तो फिर गरीबी रेखा को बहुत बहुत ऊपर करना होगा। <br />मुझे यह भी समझ नहीं आया कि कचरा फैलाना गरीबों की मजबूरी क्यों माना जा रहा है? इस पावन कार्य में हमारा पूरा समाज गरीबी, अमीरी, जाति धर्म जैसी बातों से ऊपर उठकर एकजुट होकर लगा रहता है।<br />मित्र, जो वर्ग आपको अभिजात लग रहा है वही बहुतों को दीन हीन लगता होगा। अमीरी गरीबी तुलनात्मक भी हो सकती है किन्तु कचरा फैलाने या न फैलाने का नियम एक एब्सोल्यूट है। उसी प्रकार किसी स्थान पर फेरीवालों को अनुमति होना या न होना भी। बन्धु, जिस प्रेम से आप फेरीवालों व कचरा फैलाने वालों की तरफदारी को तत्पर हैं वह सराहनीय है। यदि सभी इतनी आदर्श सोच रखने लगें तो सड़कों पर चलना ही दूभर हो जाएगा। अभी तक तो अधिकतर फुटपाथ फेरीवालों को ही अर्पित हैं। ये फेरीवाले दो महत्वपूर्ण काम करते हैं एक तो अपना स्वयं का धन्धा करने का और दूसरे लोगों को सामान उपलब्ध कराने का। तो फिर एक राष्ट्रीय नीति होनी चाहिए कि सड़क के दोनों तरफ फुटपाथ और उनके किनारे फेरीवालों के लिए स्थान। और शायद अगल बगल का स्थान इस काम से फैले कचरे के लिए।<br />आपने सही कहा कि दूर खड़े होकर नुक्ताचीनी करना ही मुझ जैसे जानते हैं। मुझमें तो जरा भी साहस नहीं है कि वहीं खड़े किसी पुलिस वाले से शिकायत करूँ। क्योंकि अधिक संभावना तो यही है कि वह भी आपकी तरह सोचेगा और सैर करने जैसे अक्षम्य अपराध करने वाली की शिकायत वह भी जो क्षुधापूर्ती करने के पावन काम में फैलने वाले कचरे की छोटी सी समस्या को लेकर हो, सुनने का कष्ट क्यों करेगा?<br />मैं कितना कचरा फैलाती हूँ इसका अनुमान आपको शायद है ही नहीं। प्लास्टिक व पॉलीथीन से अपने स्तर पर मेरा युद्ध जारी रहता है। हो सके तो मेरे ब्लॉग की तरफ फिर कभी भी आइएगा। एक दो लेख और भी इससे मिलते जुलते विषय पर लगभग तैयार पड़े हैं। एक कचरे व कचरा बीनने वालों पर भी।<br />आप आए अच्छा लगा, आपके विचार जाने। मेरी गलतियों व भूलों की तरफ मेरा ध्यान ले जाने के लिए भी आभार। <br />हो सके तो अपना पूरा नाम अपने लेखों या अपने परिचय में देवनागरी में भी लिखिए जिससे मुझे भी लिखने बोलने में सुविधा हो।<br />आभारसहित, <br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-12171282722638631852012-06-19T20:15:28.904+05:302012-06-19T20:15:28.904+05:30वाह घुघूती जी,क्या नब्ज पकड़ी है आपने भूखे लोगों की...वाह घुघूती जी,क्या नब्ज पकड़ी है आपने भूखे लोगों की.कमबख्तों को अक्ल ही नहीं है की जब आबादी इतनी अधिक बढ ही रही है तो ये आखिर पैदा ही क्यों हो रहे हैं.जब इनके पास किसी बड़े होटल में बैठ कर खाने के पैसे नहीं हैं तो क्यों ये अपनी भूख दो रुपये के चने या पांच रुपये की पाव खाकर अपनी मिटाने की कोशिश कर रहे हैं.वहीँ सागर में डूब कर आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते.पर क्या करें बिचारे दूर कहीं उनके भूखे बच्चे इस आस पर हैं की पिता अपना पेट काटकर ,खुद कम खाकर उनके लिए दो रुपये भेजेगा.पर उनको नहीं मालूम की उनकी भूख कुछ अभिजातीय वर्ग की सैर में खलल डाल रही है.यही अभिजातीय वर्ग जब दुकान से दस रुपये की ब्रेड लेता है तो उसे पन्नी में डाल कर देने को कहता है. हर चीज उसे पोली पैकिंग में चाहिए. आप बड़ी बड़ी कंपनियों के उन सामानों का बहिष्कार क्यों नहीं कर देते जो सामान प्लास्टिक की पैकिंग में देते हैं.कुछ ख़ास लोगों को अपना टार्गेट बनाने की बजाय आप वहां के सफाई विभाग को क्यों नहीं पकड़ते. क्यों आप लोकल ऑथोरिटी को नहीं कहते की इन चाट ठेले वालों को कोई ऑफिस में बैठने वाला रोजगार दे दें.जब राजा बादशाहों का जमाना था तो उनके अकेले के रहने के लिए कई कई महल हुआ करते थे.और जब वो सैर को निकला करते थे तो आमो-ख़ास सब को सड़क पर निकलने की मुनाही थी. कास ये समय फिर से आ पता तो आप की सभी समस्याओं का हल ही निकल जाता.आप भाग्यशाली हैं की ईश्वर की आप पर रहमत है की आप रोज खा पी कर घूमने की गुंजाइश रखती हैं .कई लोग दुनिया में ऐसे है जो भूखा सो रहे हैं.अब आप उनके घूमने पर भी पाबन्दी लगा दीजिये.अपने बच्चों को देने वाले चिप्स चोकलेट पर भी लगा दीजिये.और हर उस चीज पर पाबन्दी लगा दीजिये जिस से एक आम इंसान को राहत मिलती हो. जिस इलाके की आप बात कर रही हैं मैंने नहीं देखा है,मैं वहां से बहुत दूर रहता हूँ.पर क्यों नहीं आप वहां पर एक बोर्ड लगा देती की "नो एंट्री फॉर डॉग्स एंड गरीब ".यहाँ बैठ कर उन लोगों की बुराई (जो की शायद ही ब्लॉग के बारे में जानते हों )करने से बेहतर था की दो लोगों को हायर कर आप .उस कबाड़ को उठवा देते ,तो सभी को खुद ही संकेत मिल जाता.हमारे देश की कई कमियों पर आपके लेख और उससे सम्बंधित कमेंट्स में पढ़ा.इसमें एक बुराई और जोड़ लीजिये.हम बस दूर खड़े होकर नुक्ता चीनी करना जानते हैं.समस्या का हल करना नहीं.एक शेर अर्ज कर रहा हूँ माफ़ी के साथ.<br /> "रहने को नहीं छत वे महलों को खड़ा करते हैं<br /> ये वो जीवन हैं जो नालों में मरा करते हैं<br /> भूख से तड़प कर वे जिंदगी को सजा कहते हैं<br /> ये रईसों के चोंचले हैं जो गरीबी को मजा कहते हैं.ज्योतिषाचार्य ललित मोहन कगड़ियाल,,https://www.blogger.com/profile/03756695984315268386noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-80637680817165775612012-06-19T17:39:22.214+05:302012-06-19T17:39:22.214+05:30घुघुती जी,
इस जगह को कई बार फिल्मों में दिखाया ग...घुघुती जी,<br /><br /> इस जगह को कई बार फिल्मों में दिखाया गया है। <br />दरअसल पहले भी यहां कुछ फेरीवाले थे लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ फेरीवालों की भी अब तादाद बढ़ गई है।<br /><br /> एक दो बार तो मैं भी श्रीमती जी के साथ वहां घूमा हूँ...सेंग-चने टूंघते हुए टहलने का आनंद भी लिया है :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-60653465995796033422012-06-19T17:38:53.717+05:302012-06-19T17:38:53.717+05:30भारत में अक्सर लगता है कि लोगों का विश्वास है कि घ...भारत में अक्सर लगता है कि लोगों का विश्वास है कि घर में सफाई होनी चाहिये, फ़िर कूड़े को घर के बाहर या पीछे फ़ैंक दीजिये, चलेगा. एक ओर नहाना, स्वच्छ कपड़े पहनना, पूजा करना, दूसरी ओर मन्दिरों के बाहर भी हर ओर गिरा कूड़ा!Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-33310398509357320602012-06-19T01:10:27.602+05:302012-06-19T01:10:27.602+05:30hamari mansikata jab tak nahi sudharegi is desh ka...hamari mansikata jab tak nahi sudharegi is desh ka kuchh nahi ho sakta..<br />http://chahalpahal-kavita.blogspot.in/kavita vermahttps://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-13093603894790881192012-06-18T23:19:31.970+05:302012-06-18T23:19:31.970+05:30सब को अपने अपना स्तर पर सुधार करना होगा तभी कुछ हो...सब को अपने अपना स्तर पर सुधार करना होगा तभी कुछ हो सकता है ... <br /><br /><br /><a href="http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_18.html" rel="nofollow">इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी ... ब्लॉग बुलेटिन </a>शिवम् मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/07241309587790633372noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-86429635292998250982012-06-18T21:29:13.228+05:302012-06-18T21:29:13.228+05:30हर जगह कूड़ा फैला देख कर मन दुखी हो जाता है..हर जगह कूड़ा फैला देख कर मन दुखी हो जाता है..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-2297257785725020222012-06-18T21:28:04.429+05:302012-06-18T21:28:04.429+05:30यह समस्या हर एक देख रहा है उससे जूझ भी रहा है पर उ...यह समस्या हर एक देख रहा है उससे जूझ भी रहा है पर उपाय तो दिनेश राय जी का ही कारगर हो सकता है ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-44163222558660780632012-06-18T14:58:28.758+05:302012-06-18T14:58:28.758+05:30यही तो स्वतंत्र भारत का जन्म सिद्ध अधिकार है !!!!...यही तो स्वतंत्र भारत का जन्म सिद्ध अधिकार है !!!!!!!!!!!गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-2748790594253134712012-06-18T13:50:04.057+05:302012-06-18T13:50:04.057+05:30गन्दगी फैलाना तो यहाँ भी अपराध है और दिल्ली में १०...गन्दगी फैलाना तो यहाँ भी अपराध है और दिल्ली में १०० रूपये ज़ुर्माने की सजा है . लेकिन यहाँ की आबादी और पुलिसमेंन का अनुपात बहुत ज्यादा है . फिर भी इसे रोकने के लिए जनता को जागरूक होना पड़ेगा . स्कूलों में पढाया भी जा रहा है लेकिन आमिर बाप की औलाद पढ़ती भी कहाँ है .डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-21179036289556354762012-06-18T12:40:39.981+05:302012-06-18T12:40:39.981+05:30्यही तो कमी है हमारे देश मे कोई भी कानून सख्ती से ...्यही तो कमी है हमारे देश मे कोई भी कानून सख्ती से लागू नही होता वरना देश का नक्शा ही दूसरा होता विश्व पटल पर्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-23788273422808582882012-06-18T11:02:47.563+05:302012-06-18T11:02:47.563+05:30द्विवेदी जी, आपके सुझाव वाला नियम मुम्बई में पहले ...द्विवेदी जी, आपके सुझाव वाला नियम मुम्बई में पहले से ही है। देखिए।<br />Following introduction of the Greater Mumbai Cleanliness and Sanitation Byelaws 2006, it was essential for Municipal Corporation of Greater Mumbai (MCGM) to device a workable mechanism to ensure proper implementation of the byelaws. Thus, MCGM has innovated an initiative with Public-Private Partnership. MCGM has invited private security agencies to come forward take charge of few wards and deploy clean-up marshals at ward level. The clean-up marshals are specially trained with the basic information on byelaws and the basic know-how essential for doing their job in the field.<br /><br />The Litter Cops:<br /><br />The clean-up marshals are suppose to act as the watch dogs of MCGM who patrol all the areas within the ward to keep check on people littering the public places. They will be wearing the uniform as prescribed by MCGM and will be carrying Identity Cards with them. These marshals shall patrol the wards round the clock with special focus on chronic spots identified and they will fine the offenders who are found dirtying the city.<br /><br />Salient Features:<br /><br />Some of the salient features of the campaign are as follow;<br /><br />1. In order to ensure that the security agency will not indulge into wrong practices, fine tickets will be printed by the MCGM itself, along with tamper proof holograms on it.<br />2. In one area, only one security agency will be allowed to operate.<br />3. All the clean-up marshals working for implementation of Byelaws will have to wear uniform, as prescribed by the MCGM.<br />4. The revenue model offered to the security agencies is such that; they will share 50% of the fine amount collected in each ward and will deposit the rest 50% amount with the respective ward office of MCGM.<br />5. The money generated by MCGM through this campaign will be further diverted to the expenses various activities for Solid Waste Management in the city, such as; provision of dustbins etc.<br />6. It is expected that, the citizens, elderly, college students also take part in this campaign by working as clean-up marshals in their wards through the concerned security agencies.<br />7. In order to ensure the effective performance, MCGM has empowered the citizens to do the third party audit of this campaign at ward level. The Advanced Locality Management groups and the other citizens’ groups and the NGOs working in the same field shall take the onus of the campaign in their respective wards and shall work in close association with the concerned security agencies and the ward officials. They can help in spreading awareness on the byelaws in their locality and also can keep an eye on the chronic spots in their locality to see whether there is any improvement as a result of the campaign. <br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-39225132286719300432012-06-18T11:01:34.770+05:302012-06-18T11:01:34.770+05:30This comment has been removed by the author.ghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-65643761575669722492012-06-18T10:56:31.872+05:302012-06-18T10:56:31.872+05:30अंशुमाला, हम भी सदा अपना कचरा अपने साथ ढोते पाए जा...अंशुमाला, हम भी सदा अपना कचरा अपने साथ ढोते पाए जाते हैं।<br />और हमसे बीस मिनट दूर रहकर भी कभी मिलना ना हुआ? यह क्या बात हुई? मैं तो हर शाम सूर्यास्त होते होते वहाँ सैर व व्यायाम कर रही होती हूँ। शनि व रविवार को ही प्रायः नहीं जाती। यदि आपको कोई श्याम श्वेत बालों वाली, सलवार कुर्ते वाली, गले से बस्ते की तरह बायीं तरफ मोबाइल/कैमरा रखने वाला पर्सनुमा लटकाए कोई चश्मे वाली मोटी स्त्री व्यायाम करती नजर आए या तेज तेज चलती या मोबाइल पर बेटियों से बतियाती नजर आए तो हाय घुघूती कहकर देख लीजिएगा!<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-23730509246905670492012-06-18T10:45:59.688+05:302012-06-18T10:45:59.688+05:30प्रवीण शाह जी, आपने बिल्कुल सही कहा। हमारी मानसिकत...प्रवीण शाह जी, आपने बिल्कुल सही कहा। हमारी मानसिकता, नैतिकता इतनी गिर चुकी है कि उसे उठाना पहाड़ उठाने सा कठिन हो गया है। हम इतने गिर चुके हैं कि हमें अब अपनी कमियाँ नजर भी नहीं आती। जैसे कचरे व सड़ाँध के बीच रहकर हमारी नाक सड़ाँध से बेखबर जीना सीख गई है वैसे ही हम अनैतिक हो गए हैं व अनैतिकता के प्रति सहिष्णु भी। हम तभी नींद से जानते हैं जब रिश्वत या हेराफेरी कम से कम कुछ हजार करोड़ की हो, स्त्री को सरे आम नंगा किया जाए न कि बस उसे हैरान परेशान या थोड़ा बहुत पीटा छुआ जाए, सड़क पर भीख माँगते बच्चे हमें जगाते नहीं, हम तब उद्वेलित होते हैं जब कोई हमारे जैसे घर का बच्चा अगवा कर बेच दिया जाए। हम तो वे हैं जिनके समाज के चारों तरफ दर्पण भी लगा दिए जाएँ तो हम अपने बाल संवारने के अंदाज में अपनी पुरानी सभ्यता व ज्ञान की दुहाई देने लगेगें, कल का गौरव तो हमें दिखेगा किन्तु आज के अपने कोढ़ हमें तब भी नजर न आएँगे।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-67078010603542385202012-06-18T10:37:34.918+05:302012-06-18T10:37:34.918+05:30वैसे आप कल की बात तो नहीं कर रही होंगी कल तो बहुत ...वैसे आप कल की बात तो नहीं कर रही होंगी कल तो बहुत बारिश थी पर दो रविवार से तो हम भी सपरिवार वहा जा रहे है हो सकता है एक दूसरे के बगल से गुजरे भी हो पर हम दोनों ही एक दूसरे को पहचानते नहीं सो मिलने से रह गये :) |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38818012.post-13315422236417087492012-06-18T10:34:48.470+05:302012-06-18T10:34:48.470+05:30घुघूती बासूती जी
बीच का सुं...घुघूती बासूती जी<br /> बीच का सुंदरीकरण अभी नहीं हुआ है वो हमेसा से सुन्दर ही था बस फुटपाथ पर अब और अच्छे पत्थर लगा दिये गये है जब से ये नया सुंदरीकरण हुआ है वहा लगे सारे कचरा पेटी (डेस्ट बिन) हटा दिया गया है, क्यों, समझ से परे है , जबकि वहा पहले कई कचरापेटी हुआ करते थे और सभी उसी में कचरा फेकते थे किन्तु जब सड़क पर कचरापेटी होगा ही नहीं तो लोग क्या कर सकते है | ऐसा बहुत कम ही होता है की सामने कचरे का डब्बा हो और लोग यहाँ वहा कचरा फेके खासकर ऐसी जगह पर जो काफी साफ सुथरी रहती है | शायद यिजना बनाने वालो को वो कचरा पेटी उनके किये सुंदरी करण के बीच अच्छे नहीं लगते हो किन्तु जैसा की होता है की वो बाद का नहीं सोचते है की लोग कचरा सड़क पर फेकेंगे तो वहा का दृश्य कैसा होगा | अच्छा हो वहा पर जल्द ही कचरापेटी वापस रख दिया जाये क्योकि जैसे ही लोगों की आदत एक बार बन जाएगी कही भी कचरा फेकने की उस सी फेस पर उसके बाद आप लाख कचरे का डब्बा रखिये आप लोगों को सुधार नहीं पाएंगे |<br /> हम भी वहा से बस २० मिनट की दूरी पर ही रहते है और अक्सर वहा जाते है खासकर मानसून के दिनों में मुंबई में कोई भी सी फेस चाहे वो रेत वाले हो या इस तरह के पत्थर वाले वो लोगों के लिए घूमने फिरने की जगह होती है ना की बस टहलने की जगह निश्चित रूप से जब हम घर से बाहर निकलते है तो घूमने में खाना पीना भी शामिल होता है और मौसम मानसून का हो और साथ में बच्चे तो ये मुमकिन ही नहीं है की खाना पीना ना हो वो पिकनिक स्पाट जैसा है और लोग उसी के लिए वहा जाते है | मानसून के पूरे मौसम में आप को वहा हर शनिवार और रविवार को इस भीड़ का सामना करना ही होगा क्योकि ऐसी जगहों पर लहरे दीवारों पर टक्कर मार मार कर सड़क पर आती है जिसमे भींग कर लोग आन्नद लेने के लिए ही ऐसे समुन्द्र के किनारों पर जाते है | विश्वास कर सकती है तो करीये हम अब जब भी वहा जाते है मजबूरी में अपना कचरा अपने साथ घर तक लाते है क्योकि वहा कोई भी कचरे का डब्बा नहीं होता है उसे फेकने के लिए |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.com